जानें बनीं देवी मां महिषासुर मर्दिनी
श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह
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छिंदवाड़ा. नवरात्र के अवसर पर उमरढ़ में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में डॉ. पं नरेंद्र तिवारी ने गुरुवार को रम्भ करम्भ और महिषासुर की कथा सुनाई।
उन्होंने कहा कि महिषासुर पाप का रूप था और एक न एक दिन पाप का घड़ा भर जाता है तो उसका अंत निश्चित है। उन्होंने बताया कि दनु के दो पुत्र रम्भ और करम्भ ने अखंड तपस्या की इंद्र ने ग्राह्य का रूप धारण कर रम्भ का तो अंत कर दिया, लेकिन करम्भ ने तपस्या कर त्रिलोक पर विजय का वरदान ले लिया। उसे वरदान था कि जिस स्त्री पर उसका मन रम जाएगा उसी से पराक्रमी पुत्र प्राप्त होगा। काम भाव से ग्रस्त दानव की नजर महिषी पर पड़ी और वह गर्भवती हो गई। इसी समय एक महिष रम्भ पर टूट पड़ा और उसे मौत के घाट उतार दिया। करम्भ की चिता के साथ महिषी भी चिता में बैठ गई। महिषी के शरीर से महाबलि महिषासुर निकला तो रम्भ भी दूसरा रूप धारण कर चिता से रक्तबीज के रूप में बाहर आया। इन दोनों दैत्यों ने देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए। आहद देवताओं ने आदिशक्ति की वंदना की और आदिशक्ति ने दैत्यों के साथ भीषण संग्रमा में असुरों का संहार कर देवताओं को उनसे मुक्ति दिलाई। इसीलिए देवी का एक नाम महिषासुर मर्दिनी भी पड़ा। कथा सुनने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हंै।
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