गौरतलब है कि राजस्थान पत्रिका के 20 फरवरी के अंक में ‘मां दुनिया छोड़ गई, पिता उन्हें, मासूम बने एक दूजे का सहाराÓ शीर्षक से बालिकाओं की दर्दभरी दास्तां प्रकाशित की गई। इससे सरकारी मशीनरी तो नहीं चेती, लेकिन सिकंदरा रोड के व्यापारियों ने बालिकाओं के घर पहुंचकर उन्हें संभाला।
बालिकाओं को घर के संचालन के लिए एक माह की रसद सामग्री एवं 1100 रुपए का आर्थिक सहयोग दिया। उल्लेखनीय है कि साढ़े तीन साल बालिकाओं की मां का निधन हो गया था, लेकिन कुछ दिन पिता के साथ रहने पर हिम्मत बंधी थी।
करीब 9 माह पहले पिता भी कमाने की कहकर घर से चले गए, लेकिन वापस नहीं लौटे। पिता कहां हैं, इस बारे में भी कोई जानकारी नहीं है। घर में कोई सार-संभाल करने वाला नहीं है। 13 वर्षीय आरती बैरवा ही अपनी दो छोटी बहनों 10 वर्षीय प्रीति 4 वर्षीय गुड्डो की देखभाल कर रही है।
गुड्डो को देख दिल पसीजा बालिकाओं के घर पहुंचे व्यापारियों का दिल चार वर्षीय गुड्डो को देख पसीज गया। व्यापारी सुदामाप्रसाद खण्डेलवाल, सत्यनारायण खण्डेलवाल, शिवचरण खण्डेलवाल, अनिल गुप्ता, नवल बड़ाया, चेतराम ठेकेदार, बृजमोहन बैरवा एवं राजू गुर्जर धपावन ने सहयोग किया।
वहीं कई धार्मिक एवं सामाजिक संगठनों ने भी पत्रिका कार्यालय पहुंचकर बालिकाओं की स्थिति के बारे में जानकारी ली। पार्षद बनवारीलाल बैरवा ने भी नगरपालिका कार्यालय पहुंच मासूम बालिकाओं को आर्थिक सहायता दिलाने एवं खाद्य सुरक्षा सूची में नाम जुड़वाने की मांग की।
http://rajasthanpatrika.patrika.com/story/dausa/three-innocent-girls-mother-left-the-world-s-sob-story-went-the-father-them-2488534.html