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छिंदवाड़ा

दिव्यांग छात्रा ने सेल्फस्टडी कर बनाया यह रिकार्ड, मिसाल देते है लोग

गांव में बदहाल चिकित्सा सेवा इसलिए बनना है डॉक्टर, ग्रामीणों की चिंता और कुछ करने के जज्बा ने बनाया काबिल

छिंदवाड़ाJul 22, 2018 / 11:36 am

Dinesh Sahu

This recording, made by Selvstadi by the student, gives examples.

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छिंदवाड़ा. किसी के लिए सेवा भाव मन में लाना आज के समय में कम ही देखने को मिलता है, लेकिन कुछ एेसे भी हैं जिनकी पहचान ही समर्पण भाव होता है। बिछुआ विकासखंड के ग्राम गोनावाड़ी निवासी छात्रा सोनाली पिता कोमल पवार दोनों पैर से दिव्यांग है।
दिव्यांगता प्रमाण-पत्र बनवाने शनिवार को वह जिला अस्पताल पहुंची थी। छात्रा ने बिना कोचिंग के कक्षा दसवीं में 80.08 प्रतिशत अंक प्राप्त कर गांव को गौरवांवित किया है।
दिव्यांग छात्रा ने सेल्फस्टडी कर कक्षा दसवीं में पाए 80 प्रतिशत अंक

छात्रा ने बताया कि गांव में लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पाती है। इलाज के लिए लोग परेशान होते रहते हैं। वह स्वयं भी इस पीढ़ा से गुजर रही है। इसी समस्या के निदान के लिए वह डॉक्टर बनना चाहती है। छात्रा के हौसले को देखते हुए पिता भी काफी उत्साहित हंै। परिवार का माली हालत होने के बावजूद भी वह बेटी के सपनों को पूरा करना चाहते हं।

मिडिल कक्षाओं की घर में की पढ़ाई


सोनाली कक्षा छठवीं में पढ़ती थी, उस समय अचानक उसके शरीर में बदलाव आने से पैरों का स्वरूप बदल गया। इसके कारण वह बिना किसी सहारे के चल नहीं पाती है। इसलिए पिता को स्कूल नहीं भेजने का फैसला लेना पड़ा, लेकिन छात्रा अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी। इसलिए उसने बिना स्कूल गए कक्षा छठवीं, सातवीं व आठवीं का अध्ययन घर में किया। हालांकि परीक्षा देने के लिए वह परिजन की मद्द से स्कूल जाती थी। वर्तमान में वह कक्षा ग्यारहवीं की नियमित छात्रा है तथा बस से स्कूल आती-जाती है।

बहुउद्देशीय समाज सेवा संस्थान करता मदद


बताया गया कि दिव्यांगों की मदद के लिए बहुउद्देशीय समाज सेवा संस्थान, नागपुर हमेशा तत्पर रहता है। संस्था के सदस्य स्वयं के खर्च पर दिव्यांगों की चिकित्सकीय जांच के लिए छिंदवाड़ा लेकर आते एवं लेकर जाते हैं। साथ ही आवश्यक मदद भी करते हंै। ब्लॉक समन्वयक विष्णु टांडेकर, गजानंद कडवे, शेषराव भोजने, जयराम वर्मा, गणेश सरयाम आदि ने सहयोग दिया।

इलाज में अब तक 5 लाख हुए खर्च


पिता कोमल पवार ने बताया कि बेटी की तबीयत बिगडऩे पर उन्होंने कई जगह इलाज कराया, लेकिन बच्ची के हालत में सुधार नहीं हो सका। उन्होंने बताया कि अब तक इलाज पर पांच लाख रुपए खर्च हो चुके है। खेती-किसानी के जरिए परिवार का पालन-पोषण करते हैं। बेटी को डॉक्टर बनाने के लिए वे हरसंभव प्रयास करेंगे।

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