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छिंदवाड़ा

अनूठा प्रेम: सैकड़ों वर्ष पुरानी आदिवासियों की एक खास परम्परा की ओर आकर्षित हो रहे लोग, जानिए क्या है वजह

आदिवासियों में पहले से 750 पेड़ों को पूजने की परम्परा, अब मौसम चक्र में परिवर्तन से आधुनिक समाज का भी जुड़ाव

छिंदवाड़ाAug 15, 2019 / 09:50 am

prabha shankar

छिंदवाड़ा. जमीन पर पौधा लगाते ही प्रकृति से अनूठा रिश्ता बन जाता है। तब से पेड़ बनने की यात्रा तक देखभाल और सुरक्षा का संकल्प आत्मिक रूप से रक्षाबंधन बन जाता है। आदिवासियों की यह परम्परा अब आधुनिक समाज में विकसित होने लगी है। बदलते मौसम चक्र से तापमान में वृद्धि और अनियमित बारिश से चिंतिंत पर्यावरणविदों से लेकर समाजसेवियों ने गुरुवार को स्वतंत्रता दिवस के साथ आ रहे रक्षाबंधन पर पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधने का बीड़ा उठाया है।
जिले की 22 लाख की आबादी में 37 फीसदी की भागीदारी रखने वाले आदिवासी समाज को प्रकृतिप्रेमी कहा जाता है। इस समाज में मौजूद 750 गोत्र के हिसाब से इतने ही पेड़ और जीवों को देवी-देवताओं के रूप में पूजने की परम्परा रही है। रक्षाबंधन पर यह समाज पेड़ों को रक्षासूत्र बांधकर उनकी सुरक्षा का संकल्प लेता आया है। इसके चलते भूभाग का 29.73 प्रतिशत हिस्सा वन आच्छादित है। पिछले कुछ साल से विकास की आंधी में पेड़ों की कटाई से पूरा मौसम चक्र प्रभावित होता आया है। गर्मी में 46 डिग्री तक पहुंचे तापमान ने पूरे समाज को चिंतित कर दिया है। इसके चलते ही इस साल सरकारी और सामाजिक स्तर पर बड़ी संख्या में पौधे लगाए गए। अब इन पौधों की सुरक्षा कर पेड़ बनाने की आदिवासियों की परम्परा पूरे समाज में दिखने लगी है। रक्षाबंधन के मौके पर समाज के सभी वर्ग इन पेड़-पौधे को भाई-बहन मानते हुए रक्षा सूत्र बांधेंगे और उनकी सुरक्षा का संकल्प लेंगे। बच्चे, महिलाएं और युवा इस परम्परा का निर्वाह करने में उत्साहित दिखाई दे रहे हैं।

ग्लोबल वार्मिंग के चलते बिगड़ते मौसम चक्र से पूरा समाज चिंतित है। हर किसी के मन में पर्यावरण को सुरक्षित करने पौधे लगाने और उनकी सुरक्षा का संकल्प आ गया है। रक्षाबंधन पर सभी पर्यावरण प्रेमी पेड़ों को रक्षासूत्र बांधेंगे और सुरक्षा का प्रण लेने दूसरों को प्रेरित करेंगे।
विनोद तिवारी, पर्यावरणविद्।
आदिवासी समाज में 750 गोत्र के हिसाब से इतने ही पेड़ और जीव देवी-देवताओं के रूप में पूजे जाते हैं। इसलिए उन्हें प्रकृति प्रेमी कहा जाता है। रक्षाबंधन पर रक्षा सूत्र बांधने की परम्परा रही है। यह खुशी की बात है कि आदिवासियों की इस परम्परा को पूरा समाज स्वीकारने लगा है।
विजय सिंह कुसरे,समाजसेवी।

भाई-बहनों के बीच प्रेम के रिश्ते का नाम ही रक्षाबंधन है। पर्यावरण की रक्षा की दिशा में समाज अपने आसपास मौजूद पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधकर उनकी सुरक्षा कर लें तो मौसम चक्र अपने आप सुधर जाएगा।
-रविन्द्र सिंह कुशवाहा, वृक्षमित्र

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