स्वच्छता पर ग्रहण कहा जाता है कि जहां स्वच्छता होती है वहां ईश्वर का वास होता है परंतु मूल्यांकन करने पर हम पाएंगे कि जहां ईश्वर के वास का स्थान यानि धार्मिक स्थल होता है, वहां प्रदूषण का साम्राज्य कायम हो जाता है। उदाहरण के तौर पर गंगा यमुना की दुर्दशा का कारण काफी हद तक उसमें फेकी जाने वाली गंदगी पॉलीथिन वैगरह ही हैं। कुछ ऐसा ही हाल है धार्मिक स्थानों का जहां श्रद्धालु मत्था टेकने तो आते हैं लेकिन उस स्थान की सुचिता स्वच्छ्ता के प्रति गम्भीरता नहीं दिखाते और जिसका परिणाम ऐसे स्थानों पर सिर्फ कुछ भाग की साफ सुथरा रहता है। बाकी तो गंदगी की भेंट चढ़ जाते हैं। ऐसी ही तस्वीर है भगवान कामतानाथ पर्वत परिक्रमा मार्ग की जहां पॉलीथिन के साम्राज्य ने स्वच्छ्ता पर ग्रहण लगा दिया है।
बुंदेली सेना ने उठाया बीड़ा आमतौर पर ऐसे मुद्दों पर सबसे पहले धरना प्रदर्शन ज्ञापन का दौर शुरू होता है और फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है लेकिन बुन्देली सेना बिना किसी हो हल्ला के अपनी धरोहरों को प्रदूषणमुक्त करने के भागीरथी अभियान में जुटी है। बुन्देली सेना ने भगवान कामतानाथ परिक्रमा मार्ग को प्रदूषणमुक्त करने का 15 दिवसीय अभियान चलाया है जिसके तहत परिक्रमा मार्ग सहित आस पास के महत्वपूर्ण स्थलों को पॉलीथिन मुक्त करना है। सेना के जिलाध्यक्ष की अगुवाई में कार्यकर्ता और स्थानीय निवासी इस अभियान में जुटे हैं। जिलाध्यक्ष
अजीत सिंह का कहना है कि श्रद्धालु यदि अपने धार्मिक स्थलों की स्वच्छता के विषय में जागरूक हो जाएं तो यह स्थिति ही न उत्पन्न हो। परिक्रमा मार्ग को स्वच्छ सुंदर बनाने का प्रयास पहले स्वयं से शुरू किया गया है, धीरे धीरे लोग भी साथ आने लगे हैं। 15 दिवसीय अभियान के तहत प्रयास किया जाएगा कि क्षेत्र को पॉलीथिन मुक्त बनाया जाए। श्रद्धालुओं से भी आग्रह किया जा रहा है कि वे ऐसी कोई भी प्रदूषित वस्तु धार्मिक स्थल पर न फेकें जिससे वहां की पवित्रता स्वच्छता सुंदरता पर दाग लगे। हम सब की जिम्मेदारी पहले है स्वच्छता को लेकर बाद में प्रशासन और सरकार की।
सुसुप्तावस्था में जिम्मेदार इन सबके बीच ज़िम्मेदार गहरी नींद में इन समस्याओं को लेकर। पवित्र मन्दाकिनी नदी में प्रदूषित नाले गिर रहे हैं लेकिन प्रशासन आंखे मूंदे बैठा है। बुन्देली सेना के जिलाध्यक्ष ने बताया कि नदी में गिरने वाले नालों को लेकर उन्होंने उच्चाधिकारियों को कई बार ज्ञापन सौंपा है अब देखना है कि संज्ञान कब तक लिया जाता है। बहरहाल सेना की इस पहल में स्थानीय लोग भी अब जुड़ने लगे हैं जो अच्छा संकेत है।