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चित्तौड़गढ़

हिंगवानिया में भी पशु बलि परम्परा समाप्त

बलि के लिए लाए गए भैंसे को तिलक व माला पहना कर अमरिया छोड़ा चित्तौडग़ढ़. आकोला. चितौडग़ढ़ जिले के ताणा पहाड़ स्थित चामुण्डा माता मंदिर में रविवार को 700 वर्ष पुरानी पशु बलि परम्परा के समाप्त करने के बाद सोमवार को क्षेत्र के एक ओर गांव हिंगोनिया के ग्रामीणों ने सकारात्मक निर्णय करते हुए अहिंसा परमो धर्म को अपनाते हुए चामुंडा माता मंदिर में पशु बलि करने की 675 वर्ष की परंपरा को समाप्त करने का एक मत से निर्णय किया।

चित्तौड़गढ़Oct 27, 2020 / 11:22 pm

Avinash Chaturvedi

हिंगवानिया में भी पशु बलि परम्परा समाप्त

हिंगवानिया में भी पशु बलि परम्परा समाप्त

चित्तौडग़ढ़. आकोला. चितौडग़ढ़ जिले के ताणा पहाड़ स्थित चामुण्डा माता मंदिर में रविवार को 700 वर्ष पुरानी पशु बलि परम्परा के समाप्त करने के बाद सोमवार को क्षेत्र के एक ओर गांव हिंगोनिया के ग्रामीणों ने सकारात्मक निर्णय करते हुए अहिंसा परमो धर्म को अपनाते हुए चामुंडा माता मंदिर में पशु बलि करने की 675 वर्ष की परंपरा को समाप्त करने का एक मत से निर्णय किया।
जानकारी के अनुसार भूपालसागर क्षेत्र की गुंदली ग्राम पंचायत क्षेत्र के हिंगवानिया गांव के बेड़च नदी के तट पर स्थित चामुंडा माता मंदिर में भी पिछले 675 वर्षों से पशु बलि परम्परा का निर्वहन किया जा रहा था। यहां पर नवरात्र विसर्जन पर भैसे की बलि दी जाती थी। ताणा पहाड़ पर स्थित चामुंडा माता मंदिर में रविवार को 700 वर्ष पुरानी पशु बलि परम्परा को समाप्त करने के निर्णय हुआ था। इससे प्रेरणा लेते हुए हिंगवानिया के पूर्व राज परिवार के शक्तिसिंह, पूर्व सरपंच प्रतापसिंह भाटी सहित सम्पूर्ण ग्रामवासियों ने सकारात्मक लेते हुए मंगलवार को ६५७ वर्ष पुरानी पशु बलि की परंपरा को समाप्त करने का निर्णय लिया। इसी के तहत सोमवार को बेड़च नदी के तट पर स्थित चामुंडा माता मंदिर में नवरात्र विसर्जन पर वर्षो पुरानी पशु बलि नहीं करते हुए इस परम्परा को समाप्त कर दिया गया। यहां पर बलि के लिए लाए गए भैंसे की तिलक व माला पहना कर उसे अमरिया छोड़ दिया गया।

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