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चित्तौड़गढ़

जैविक खेती को लेकर किसानों का नहीं बढ़ रहा रूझान

चित्तौडग़ढ़. कोरोना काल के बाद भले ही सबको यह समझ में आ गया हो कि खानपान में शुद्धाता जरूरी है लेकिन इसके बाद भी जैविक खेती को लेकर जिले में किसानों को रूझान कम है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि इसकी लागत अधिक और उपज कम होने से किसानों को अधिक आय नहीं मि पा रही है। ऐसे में किसान इस खेती से विमुख होता जा रहा है, हालाकि किसानों को इस खेती से जोडऩे के लिए कुछ संस्थाएं एवं कृषि विभाग काफी प्रयास कर रहा है फिर भी इसको लेकर पूरी सफलता नहीं मिल रही है।

चित्तौड़गढ़Nov 28, 2021 / 10:17 pm

Avinash Chaturvedi

 जैविक खेती

जैविक खेती को लेकर जिले में किसानों को रूझान कम है।

कृषि विभाग की ओर से पूरे नहीं हो रहे प्रयास

अविनाश चतुर्वेदी चित्तौडग़ढ़. कोरोना काल के बाद भले ही सबको यह समझ में आ गया हो कि खानपान में शुद्धाता जरूरी है लेकिन इसके बाद भी जैविक खेती को लेकर जिले में किसानों को रूझान कम है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि इसकी लागत अधिक और उपज कम होने से किसानों को अधिक आय नहीं मि पा रही है। ऐसे में किसान इस खेती से विमुख होता जा रहा है, हालाकि किसानों को इस खेती से जोडऩे के लिए कुछ संस्थाएं एवं कृषि विभाग काफी प्रयास कर रहा है फिर भी इसको लेकर पूरी सफलता नहीं मिल रही है। जिले में अब तक जैविक खेती करने वाले किसानों का आंकड़ा २०० के पार भी नहीं पहुंचा है।
जिले में एक अनुमान के अनुसार जैविक खेती से अभी तक करीब १५० किसान ही जुड पाए है। वे भी इसे पूरी तरह से अपनाने की प्रक्रिया को पूरी नहीं कर पा रहे है। इनमें से भी बाजार में उत्पाद केवल १५ प्रतिशत किसान ही बेच पा रहे है।
दस जिलों में २५० किसानों को जोड़ा
जैविक खेती को लेकटर स्वयं सेवी संगठन मानव विकास केन्द्र कट्स पिछले आठ साल से लगातार राजस्थान में काम कर रहा है लेकिन संगठन के लाख प्रयास के बाद भी दस जिलों में अब तक २५० किसानों को ही जैविक खेती से जोड़ पाया है।
मांग बढ़ी लेकिन आय नहीं
कोरोना काल में ज्यादा जैविक उत्पादों में सब्जियों की मांग अधिक रहती हैं। जबकि 6 प्रतिशत फलों, 13 प्रतिशत अनाज और 1 प्रतिशत जैविक मसालों की मांग रही है। उपभोक्ता जैविक उत्पाद खरीदने के लिए सीधे ही विक्रेताओं के पास आते हैं। पिछले दस महीनों में कोरोना महामारी के दौरान जैविक उत्पादों की बिक्री में वृद्धि हुई है, लेकिन आय में आंशिक वृद्धि हुई है।
यह जरूरी है
जैविक पदार्थों की खरीद एवं उत्पादन, दोनों के बीच सामन्जस्य बेहद जरूरी है। अभी किसानों का सीधे उपभोक्ताओं से सम्पर्क नहीं हो पा रहा है। उपभोक्ता अक्सर बिचौलियों के माध्यम से जैविक उत्पाद खरीदते हैं।
योजनाओं के प्रति भी रूझान कम
किसानों को जैविक खेती के लिए कृषि विभाग की ओर से कई योजनाएं संचालित हो रही है लेकिन प्रचार-प्रसार के अभाव में हर किसान तक इसकी जानकारी नहीं पहुंच पा रही है और इसके प्रति रूझान नहीं बढ़ रहा है।
इनकी हो रही जैविक खेती
जिले में वर्तमान में गन्ना, गेहूं, मक्का, सोयाबीन, मीठे पान, गराडृ, सीताफल, कालागेहूं, अमरूद,हरी सब्जियां मिर्ची,और नर्सरी में पपीता, टमाटर, अमरूद, नीबु, कटहल, मालटा की जैविक खेती हो रही है।
तीन साल में तैयार होता है खेत
कृषि विभाग के अधिकारी राजराम सुखवाल ने बताया कि जैविक खेती के लिए पूरी तरह से खेत तीन साल में तैयार होता है। ऐसे में किसान को जैविक खेती के लिए तीन साल तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। इस कारण भी किसान इस दिशा में काम करने से दूर भाग रहे है।
इनका होता है उपयोग
सुखवाल ने बताया कि जैविक खेती के लिए वमी कम्पोस्ट, केंचुएं की खाद, पत्तियों का अर्क, नीम का अर्क आदि का उपयोग होता है।

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