जैविक खेती को लेकटर स्वयं सेवी संगठन मानव विकास केन्द्र कट्स पिछले आठ साल से लगातार राजस्थान में काम कर रहा है लेकिन संगठन के लाख प्रयास के बाद भी दस जिलों में अब तक २५० किसानों को ही जैविक खेती से जोड़ पाया है।
कोरोना काल में ज्यादा जैविक उत्पादों में सब्जियों की मांग अधिक रहती हैं। जबकि 6 प्रतिशत फलों, 13 प्रतिशत अनाज और 1 प्रतिशत जैविक मसालों की मांग रही है। उपभोक्ता जैविक उत्पाद खरीदने के लिए सीधे ही विक्रेताओं के पास आते हैं। पिछले दस महीनों में कोरोना महामारी के दौरान जैविक उत्पादों की बिक्री में वृद्धि हुई है, लेकिन आय में आंशिक वृद्धि हुई है।
जैविक पदार्थों की खरीद एवं उत्पादन, दोनों के बीच सामन्जस्य बेहद जरूरी है। अभी किसानों का सीधे उपभोक्ताओं से सम्पर्क नहीं हो पा रहा है। उपभोक्ता अक्सर बिचौलियों के माध्यम से जैविक उत्पाद खरीदते हैं।
किसानों को जैविक खेती के लिए कृषि विभाग की ओर से कई योजनाएं संचालित हो रही है लेकिन प्रचार-प्रसार के अभाव में हर किसान तक इसकी जानकारी नहीं पहुंच पा रही है और इसके प्रति रूझान नहीं बढ़ रहा है।
जिले में वर्तमान में गन्ना, गेहूं, मक्का, सोयाबीन, मीठे पान, गराडृ, सीताफल, कालागेहूं, अमरूद,हरी सब्जियां मिर्ची,और नर्सरी में पपीता, टमाटर, अमरूद, नीबु, कटहल, मालटा की जैविक खेती हो रही है।
कृषि विभाग के अधिकारी राजराम सुखवाल ने बताया कि जैविक खेती के लिए पूरी तरह से खेत तीन साल में तैयार होता है। ऐसे में किसान को जैविक खेती के लिए तीन साल तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। इस कारण भी किसान इस दिशा में काम करने से दूर भाग रहे है।
सुखवाल ने बताया कि जैविक खेती के लिए वमी कम्पोस्ट, केंचुएं की खाद, पत्तियों का अर्क, नीम का अर्क आदि का उपयोग होता है।