केमिकल फर्टिलाइजर, इंसेक्टीसाइड, पेस्टीसाइड तथा वीडी साइड का पन्द्रह साल तक अंधाधुन उपयोग करने के बाद जमीन की हालत यह हो जाती है कि उर्वरकों की चाहे कितनी ही मात्रा दी जाए, फसल उत्पादन में वृद्धि नहीं होती। पंजाब, हरियाणा और दक्षिण भारत के कई इलाके इसका ज्वलंत उदाहरण है।
सहायक निदेशक कृषि विस्तार डॉ. शंकरलाल जाट ने बताया कि देसी खाद पर निर्भरता नहीं बढी तो आने वाले समय में जमीन की बंजरता बढ जाएगी और साथ ही रसायनिक उर्वरक युक्त उत्पादन सेहत के लिए भारी संकट पैदा करने वाला साबित होगा। रसायनिक उर्वरकों से जमीन को होने वाले नुकसान से सबक लेते हुए अमरीका, आस्ट्रेलिया तथा यूरोप में सेन्द्रिय खाद नेचुरल फर्टिलाइजर से निर्मित खाद्यान्न के बाजार विकसित हो चुके हैं।
सरकार की ओर से इस वर्ष रबी को लेकर यूरिया खाद की जो व्यवस्था की गई है, इसके अनुसार यूरिया की खपत में इस बार गंगानगर व हनुमानगढ प्रदेश में सबसे आगे रहेंगे। गंगानगर में रबी के सीजन में १.२८ लाख मैट्रिक टन व हनुमानगढ़ में ९४ हजार मैट्रिक टन यूरिया की खपत होने का अनुमान है। इसके अलावा जयपुर में ४९ हजार, टोंक में ३६ हजार ५००, अलवर में ७१ हजार ३००, बीकानेर में ६१ हजार, कोटा में ७८ हजार व चित्तौडग़ढ़ जिले में ६६ हजार मैट्रिक टन यूरिया की खपत होने का अनुमान है। विभाग ने इस अनुमान के हिसाब से ही यूरिया की व्यवस्था की है। इस तरह प्रदेश के सभी जिलों के लिए इस बार रबी के सीजन में १४ लाख मैट्रिक टन यूरिया की खपत होने का अनुमान लगाया गया है और इसी के हिसाब से व्यवस्थाओं को अंजाम दिया गया है।