अपनी व अपनों की चिंता में आत्मा को भूले
जैन आचार्य रत्नसेन सूरिश्वर ने कहा कि मूर्ख व्यक्ति मूर्खता के कारण इच्छित अर्थ की पूर्ति करने वाले चिंतामणी रत्न को पाकर भी हार जाते हैं।
अपनी व अपनों की चिंता में आत्मा को भूले
तिरुपुर. जैन आचार्य रत्नसेन सूरिश्वर ने कहा कि मूर्ख व्यक्ति मूर्खता के कारण इच्छित अर्थ की पूर्ति करने वाले चिंतामणी रत्न को पाकर भी हार जाते हैं। वैसे ही हमारी आत्मा भी धर्म रूपी रत्न को पाकर भी प्रसाद के कारण उसे हार जाती है। आचार्य सोमवार को सुविधिनाथ जैन संघ आराधना भवन में धर्म सभा को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि मनुष्य पुण्य की इतनी कमाई अल्प समय में कर सकता है जो देवता अपने असंख्य काल में भी नहीं कर सकते। धन, स्वजन व शरीर की चिंता में मनुष्य अपनी आत्मा को भूल जाता है। वह आत्मा, परलोक व मोक्ष के बारे में विचार ही नहीं करता। रोग आत्मा व शरीर को भी छेड़े। शरीर के रोग मिटाने के लिए कई त्याग कर देते हेैं लेकिन आत्मा के रोग निवारण को भूल जाते हैं। उन्होंने कहा कि शरीर को कितना ही संवारा जाए इसके भीतर गंदगी होने के कारण क्षणभर में सारी गंदगी बाहर आ जाती है। शरीर की नश्वरता को देख आत्मा को शुद्ध करने का प्रयास करना चाहिए।शरीर के बाहर के दुश्मनों की पहचान आसान होती है लेकिन आत्मा के दुश्मनों की पहचान करना मुश्किल होता है। काम, क्रोध, मद, लोभ, मान और हर्ष आत्मा के दुश्मन है। आग में आहूति के लिए कितना ही इंधन डाला जाए वह तृप्त नहीं होती ऐसे ही पांच इंद्रियों के भोग की आग कभी शांत नहीं होती। यही संसार में परिभ्रमण का भी कारण है। आत्मा में इन बातों की पहचान नहीं होने तक विचलित रहते हैं लेकिन समयकत्व रत्न प्राप्त होने पर विशेष प्रार्थना करनी चाहिए।
आज शंखेश्वर
भाव यात्रा
मंगलवार को शंखेश्वर पाश्र्वनाथ जैन मंदिर में सुबह ९.१५ बजे शंखेश्वर की भावयात्रा होगी।
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