इस फाइनल मुकाबले में न्यूजीलैंड की टीम ने निर्धारित 50 ओवरों में आठ विकेट खोकर 241 रन बनाए थे। इसके जवाब में लक्ष्य का पीछा करते हुए मेजबान इंग्लैंड की टीम भी पूरे विकेट खोकर इतने ही रन बना सकी थी और मैच टाई हो गया। इसके बाद विश्व कप इतिहास में पहली बार सुपर ओवर खेला गया। सुपर ओवर में भी मैच टाई रहा। दोनों टीमें 15-15 रन ही बना पाई। इसके बाद अधिक बाउंड्री के आधार पर विजेता का फैसला किया गया और इस तरह इंग्लैंड क्रिकेट का नया विजेता बना।
जोस बटलर ने कहा कि विश्व कप का फाइनल लॉर्ड्स में खेला जा रहा था यह उनके लिए सौभाग्य की तरह था। पूरे फाइनल मैच के दौरान उन्हें यह डर सता रहा था कि अगर उनकी टीम हारी तो वह फिर कभी क्रिकेट नहीं खेल पाएंगे। यह जीवन में एक बार आने वाले मौके की तरह था। उन्हें लग रहा था कि अगर उनकी टीम हारी तो शायद उनके भीतर फिर बल्ला उठाने के लिए प्रेरणा नहीं बचेगी।
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बटलर को लीग स्टेज में भी सता रहा था डर
जोस बटलर ने कहा कि उन्हें सिर्फ फाइनल में ही नहीं, बल्कि लीग स्टेज पर भी घबराहट महसूस हो रही थी। खासतौर पर तब, जब भारत के खिलाफ मुकाबले से पहले उनकी टीम करो या मरो की स्थिति में पहुंच गई थी। भारत के खिलाफ मैच से पहले उनकी टीम संघर्ष कर रही थी और एक वक्त ऐसा भी आया था कि अगर हम भारत के खिलाफ हार गए तो सबकुछ खत्म। जबकि विश्व कप शुरू होने से पहले उन्हें सबसे बड़ा दावेदार माना जा रहा था। इसकी वजह यह थी कि पिछले चार सालों से वे अच्छी क्रिकेट खेल रहे थे। और अचानक ऐसा लगने लगा कि चार साल की मेहनत पानी में चला जाएगा। उन्हें इस बात का भी डर सता रहा था कि पता नहीं लोग उनके बारे में क्या-क्या कहेंगे। कैसी-कैसी बातें करेंगे। उन्हें चोकर्स कहकर बुलाया जाएगा।
बटलर ने खुलाया किया कि मन में इस तरह के आ रहे ख्यालात के कारण वह विश्व कप के दौरान टीम के मनोचिकित्सक डेविड यंग से भी मिले थे।