हरभजन सिंह ने टीम इंडिया के लिए वर्ष 1998 में डेब्यू किया था। हालांकि डेढ़ साल बाद ही उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया था। उस वक्त अनिल कुंबले टीम इंडिया के स्टार स्पिनर थे। कुंबले की गैर मौजूदगी में ही दूसरे स्पिनर्स को मौका मिलता था। ऐसे में मौका न मिलने की वजह से और टीम से बाहर होने के कारण हरभजन सिंह काफी निराश हो गए थे। इसी दौरान हरभजन सिंह के पिता का देहांत हो गया था। इसके बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी हरभजन सिंह के कंधों पर आ गई थी। हरभजन सिंह के परिवार में पांच बहनें और मां थी। वहीं हरभजन सिंह के पास न तो नौकरी थी और ना ही उन्हें टीम में जगह मिल रही थी। ऐसे में उन्होंने परिवार चलाने के लिए क्रिकेट छोड़ ट्रक ड्राइवर बनने का फैसला कर लिया था।
हरभजन सिंह कनाड़ा जाकर ट्रक चलाना चाहते थे। वहीं बहनों ने हरभजन सिंह को ऐसा करने से रोक लिया। बहनों ने उन्हें क्रिकेट पर ज्यादा मेहनत करने के लिए कहा। इसके बाद हरभजन सिंह ने वर्ष 2000 में रणजी 2000 रणजी ट्रॉफी में कमाल का प्रदर्शन करते हुए 5 मैचों में 28 विकेट चटकाए।रणजी में उनके बेहतरीन प्रदर्शन को देखते हुए वर्ष 2001 में टीम इंडिया में उनकी वापसी हुई और फिर हरभजन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
कुंबले के चोटिल होने के बाद वर्ष 2001 में उन्हें टीम इंडिया में जगह मिली। इसी दौरान ऑस्ट्रेलियाई टीम भारत दौरे पर टेस्ट सीरीज के लिए आई थी। इस टेस्ट सीरीज में हरभजन ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों पर कहर बनकर टूटे थे। सीरीज का पहला मैच टीम इंडिया हार गई थी। इसके बाद दूसरे टेस्ट मैच में हरभजन ने 13 और तीसरे टेस्ट में 15 विकेट चटकाए। इस सीरीज में हरभजन सिंह ने कुल 32 विकेट लिए थे। इसी सीरीज में वह टेस्ट में हैट्रिक लेने वाले पहले भारतीय क्रिकेटर बने। उनके शानदार प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें ‘टर्बोनेटर’ नाम मिला।