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पर्वाधिराज पर्युषण शोर्यता से संयम मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा देता

पर्वाधिराज पर्युषण शोर्यता से संयम मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा देता

रतलामSep 12, 2018 / 05:31 pm

harinath dwivedi

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पर्वाधिराज पर्युषण शोर्यता से संयम मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा देता

आचार्यश्री रामेश ने समता कुंज में अमृत देशना के दौरान कहा

रतलाम। हिम्मते मर्दा, तो मर्दे खुदा। संयम का मार्ग ऐसा ही है। इस पर चलने की हिम्मत जो व्यक्ति कर लेता है, उसे पीछे देखने की जरूरत नहीं पड़ती। संयम से तात्पर्य जो सहना दुष्कर हो, उसे सहने से है। कोशिश करने वालों की हार नहीं होती, इसलिए हर समय सहने की शक्ति विकसित करे। पर्वाधिराज पर्युषण शोर्यता से संयम के मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। यह विचार आचार्यश्री रामेश ने व्यक्त किए। समता कुंज में अमृत देशना के दौरान उन्होंने जीवन में यदि शिकायत पैदा हो, तो सहन करने की अपनी ताकत को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। आदित्य मुनिश्री ने बच्चों एवं युवाओं को धर्म-आराधना से जोडऩे का आव्हान किया। पंथकमुनिश्री ने कहा कि त्याग, तपस्या करने से आत्म शुद्धि होती है। पर्युषण के दौरान अधिक से अधिक यह भाव रखे और अपने जीवन को धन्य बनाए। राजनमुनि ने अंतगढ़ सूत्र का वाचन किया। नवदीक्षित महासतीश्री समूह ने भजन प्रस्तुत किया। इस अवसर पर विजय कुमार सांड ने 49 तथा सुरेश छाजेड़ ने 30 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। संचालन चंदनमल पिरोदिया ने किया। गौतममुनि महाराज ने समाजजनों से उत्क्रांति से स्वयं जुडऩे के बाद अन्य समाजों को भी जोडऩे का आव्हान किया।

खर्चीली शादी पर वाद-विवाद स्पर्धा
उत्क्रांति से प्रेरित होकर खर्चीली शादी पर वाद-विवाद स्पर्धा का आयोजन किया गया। इसमें समाजजनों ने उत्साह से भाग लेकर अपने विचार रखे। स्पर्धा के दौरान चातुर्मास संयोजक महेंद्र गादिया, श्री संघ अध्यक्ष मदनलाल कटारिया, मंत्री सुशील गौरेचा, विजय बाफना, विनोद मूणत, राहुल जैन, अजय घोटा, प्रितेश गादिया, राकेश मोगरा आदि उपस्थित रहे। संचालन सोनू मूणत, प्रीति मूणत द्वारा किया गया।

जन्म वाचन महोत्सव मनाया, लगाई सपनाजी की बोलिया

रतलाम। अलकापुरी जैन श्री संघ द्वारा भगवान महावीर का जन्म वाचन महोत्सव बहुत ही धूमधाम से मनाया गया। अलकापुरी श्रीसंघ की विशेष विनंती पर रतलाम में विराजित आचार्य बंधु बेलड़ी की अनुमति से मुनिराज ने भगवान का जन्म वाचन पाना पढ़ा। आचार्यश्री हर्ष तिलक सूरिश्वर की प्रेरणा से संघ में प्राप्त नए 14 सपनाजी व पालनाजी का लाभ प्रदान किया। जिसे भक्तजनों ने बहुत ही उत्साह से यह लाभ प्राप्त किया। महोत्सव प्रारंभ होने पर केसर के छापे लगाए गए व भगवान का मुनीम बनने का सोभाग्य जयंतीलाल जैन को प्राप्त हुआ। बाद में 14 स्वप्न व पालनाजी की बोलिया लगाई गई। संघ में हिम्मत गेलड़ा द्वारा कई वर्षों से मंदिर की सुचारु व्यवस्था करने हेतु दिलीप गेलड़ा की अनुमोदना की गई। साथ में पाठशाला में सक्रिय सहयोग देने हेतु आकांक्षा सकलेचा एवं कविता मेहता का अलकापुरी महिला मंडल अध्यक्ष सुनीता जैन द्वारा बहुमान किया गया। भगवान की आरती व मंगल दीवा के बाद समाज जन का स्वामी वात्सल्य सम्पन्न हुआ। अलकापुरी जैन मंदिर पर प्रतिदिन प्रभुजी की भव्य अंगरचना की जा रही है, जिसमें गर्विता गेलड़ा, सुनीता जैन, ममता बोहरा, गरिमा चोपड़ा, खुशी बोलिया आदि का सहयोग सराहनीय रहा। संघ में मीनाक्षी सियार, अंकित ललवानी, मंजु भंडारी की चल रही तपस्या की भी अनुमोदना की गई।

परमात्मा के चरित्र का अहोभाव से श्रवण करें- बन्धु बेलड़ी
रतलाम। बंधु बेलड़ी की निश्रा में पर्वाधिराज पर्युषण पर्व में भगवान महावीर स्वामी का जन्मकल्याणक उपरांत जीवन चरित्र का वर्णन हुआ। प्रभु के दिव्य चरित्र और महान उपदेशों को आत्मसात कर जीवन को धर्ममय बनाने की आचार्यश्री ने बात कही। श्री देवसुर तपागच्छ चारथुई श्रीसंघ के तत्वावधान में आचार्य श्री बन्धुबेलड़ी की निश्रा में कल्पसूत्र वाचन के छठे दिन भगवान श्री महावीर स्वामी के दिव्य चरित्र का वर्णन किया गया। इसके पूर्व आचार्य श्री और साधु साध्वी भगवंत की निश्रा में 14 सपना जी, अष्टमंगल और पालनाजी का चल समारोह लाभार्थी रखबचंद पृथ्वीराज भंडारी पेटलावदवाला के निवास से वाटिका पर पहुंचा। लाभार्थी परिवार के साथ समाजजनों ने कार्यक्रम में उत्साह के साथ हिस्सा लिया। जन्म कल्याणक के अवसर पर प्रवचन, पूजन, वन्दन और जिनालय में समाजजनों की भारी भीड़ उमड़ी। करमचंद मंदिर में प्रभु की विशेष अंग रचना को हजारों ने निहारा।

धर्म जागरण चातुर्मास के 52वें दिन आचार्य श्री ने कल्पसूत्र श्रवण करवाते हुए कहा कि परमात्मा के ज्ञान और शरण में आने से सर्व जीवों का कल्याण होता हैण् तीर्थंकर परमात्मा ने अवतरण ही कल्याण का निमित्त है। उन्होंने कहा कि सम्यक दर्शन से जीवन का सम्पूर्ण विकास होता है। परमात्मा की वाणी और चरित्र का अहोभाव से श्रवण करना चाहिए। बिना अहोभाव के श्रवण का लाभ नहीं मिलता है। गणिवर्य विरागचन्द्र सागर एवं पदमचन्द्र सागर ने भी व्याख्यान दिया। दिलीप भाई चेन्नई ने भी विचार रखे।

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