पैकिंग करने के बाद यहां बने पैकेट (famous Bastar tamarind) को वन विभाग में समूह की महिलाएं जमा कराती हैं, जहां से इनकी ब्रिकी की जाती है। इमली से बीज निकालने के लिए महिलाओं को 5 रुपए प्रति किलो और पैकिंग के लिए 1 रुपए का भुगतान वन विभाग करता है। दिनभर में 5 से 10 किलो इमली को फोड़कर उसे पैकिंग करने का काम किया जाता है। इससे अच्छी-खासी आमदानी हो रही है।
महिलाओं ने बताया कि इस काम से उनकी और परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक हुई है। रोजगार मिलने से वे काफी खुश हैं। दंतेवाड़ा जिले में इस बार गर्मी के सीजन में लघु वनोपज इमली की रिकार्ड तोड़ खरीदी की है। जिले में समर्थन मूल्य पर 3.44 करोड़ रुपए की कुल 11 हजार क्विंटल इमली ग्रामीणों से खरीदी गई। पहली बार जिले में इतने बड़े पैमाने पर इमली की विभागीय खरीदी हो सकी है।इसके पहले ग्रामीण स्थानीय व्यापारियों और कोचियों को औने-पौने दाम पर इमली की बिक्री करते थे, जिसमें उन्हें प्रति किलो बमुश्किल 15 से 20 रुपए दाम ही मिल पाता था।
जहां हजारों लोगों की आजीविका इमली के कारोबार पर निर्भर है। आदिवासियों के एक बड़े वर्ग की रोजी-रोटी इमली है। यहां वन विभाग ग्रामीणों को इससे आर्थिक लाभ भी दे रहा है।