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दंतेवाड़ा

छत्तीसगढ़ : बस्तर की महिलाओं को मिला रोजगार, इमली से हो रही बंपर कमाई

– दंतेवाड़ा की इमली ( famous Bastar tamarind) हजारों लोगों की आजीविका का कारण बना हुआ है। आदिवासियों के एक बड़े वर्ग की रोजी-रोटी इमली है। यहां वन विभाग ग्रामीणों को इससे आर्थिक लाभ भी दे रहा है।

दंतेवाड़ाDec 13, 2020 / 09:29 pm

CG Desk

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दंतेवाड़ा। छत्तीसगढ़ की बस्तरिया इमली (famous Bastar tamarind) की मांग दक्षिण भारत में सबसे अधिक है। इमली की क्वालिटी अच्छी होने के कारण बाजार में काफी अधिक मात्रा में खरीदी बिक्री की जा रही है। इमली ने गांव के महिलाओं के चेहरे में मुस्कान भी भर दी है। स्व सहायता समूह (Self help group) की महिलाएं इन दिनों इमली से आत्म निर्भर हो रही हैं। वन विभाग की ओर से महिलाओं को इमली उपलब्ध करवाई जाती है। महिलाएं इससे बीज और रेशा अलग कर इसकी पैकिंग करती हैं जिससे इनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है।
आस पास के गांव जैसे तोंगपाल, तुकानार, सोनारपाल, लोहंडीगुड़ा, बीजापुर, गीदम, भैरमगढ़ के लोग मंडी में ला रहे हैं। बता दें बस्तर की इमली से कैंडी और अन्य खाद्य सामग्री बनाई जाती है। इसीलिए बस्तरिया इमली की दक्षिण भारत में सबसे अधिक मांग है।
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आर्थिक स्थिति हो रही मजबूत
पैकिंग करने के बाद यहां बने पैकेट (famous Bastar tamarind) को वन विभाग में समूह की महिलाएं जमा कराती हैं, जहां से इनकी ब्रिकी की जाती है। इमली से बीज निकालने के लिए महिलाओं को 5 रुपए प्रति किलो और पैकिंग के लिए 1 रुपए का भुगतान वन विभाग करता है। दिनभर में 5 से 10 किलो इमली को फोड़कर उसे पैकिंग करने का काम किया जाता है। इससे अच्छी-खासी आमदानी हो रही है।
क्षेत्र में इमली की रिकॉर्ड तोड़ खरीदी
महिलाओं ने बताया कि इस काम से उनकी और परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक हुई है। रोजगार मिलने से वे काफी खुश हैं। दंतेवाड़ा जिले में इस बार गर्मी के सीजन में लघु वनोपज इमली की रिकार्ड तोड़ खरीदी की है। जिले में समर्थन मूल्य पर 3.44 करोड़ रुपए की कुल 11 हजार क्विंटल इमली ग्रामीणों से खरीदी गई। पहली बार जिले में इतने बड़े पैमाने पर इमली की विभागीय खरीदी हो सकी है।इसके पहले ग्रामीण स्थानीय व्यापारियों और कोचियों को औने-पौने दाम पर इमली की बिक्री करते थे, जिसमें उन्हें प्रति किलो बमुश्किल 15 से 20 रुपए दाम ही मिल पाता था।
इमली के लिए प्रसिद्ध बस्तर अंचल का दंतेवाड़ा
जहां हजारों लोगों की आजीविका इमली के कारोबार पर निर्भर है। आदिवासियों के एक बड़े वर्ग की रोजी-रोटी इमली है। यहां वन विभाग ग्रामीणों को इससे आर्थिक लाभ भी दे रहा है।

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