scriptकुपोषण के खिलाफ जंग में करोड़ों खर्च, फिर भी जिले में 7 हजार से ज्यादा बच्चे अब भी कुपोषित | More than 7 thousand children still malnourished, see is full detail | Patrika News

कुपोषण के खिलाफ जंग में करोड़ों खर्च, फिर भी जिले में 7 हजार से ज्यादा बच्चे अब भी कुपोषित

locationधमतरीPublished: Oct 11, 2021 12:59:00 am

Submitted by:

Ashish Gupta

कुपोषण दूर करने जिले में हर महीने करीब एक करोड़ रुपए खर्च किया जा रहा है, इसके बावजूद कुपोषण का अभिशाप दूर नहीं हो सका। अभी भी जिले में 7 हजार से ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं।

malnutrition

malnutrition

धमतरी. कुपोषण दूर करने जिले में हर महीने करीब एक करोड़ रुपए खर्च किया जा रहा है, इसके बावजूद कुपोषण का अभिशाप दूर नहीं हो सका। अभी भी जिले में 7 हजार से ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं। इनमें 15 सौ से ज्यादा ऐसे बच्चे हैं,जो गंभीर रूप से कुपोषित हैं। इन्हेंं सुपोषित करने शासन अनेक योजनाएं चला रही है, लेकिन अधिकारियों की उचित मानिटरिंग नहीं होने से आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों को पर्याप्त पूरक आहार नहीं मिल रहा। ऐसे में धमतरी जिले को कुपोषण से मुक्ति दिलाने की शासन-प्रशासन के सामने कड़ी चुनौती है।
धमतरी जिले को सालों बाद भी कुपोषण के अभिशाप से छुटकारा नहीं मिल पाया है। जिले के 1102 आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों को खेल-खेल में शिक्षा देने के साथ ही उन्हें कुपोषण से दूर रखने पूरक पोषक आहार देने समेत विविध योजनाएं चलाई जा रही है। इसके बावजूद जिले मे 7 हजार 809 बच्चे कुपोषित हैं। इनमें 1537 बच्चे तो गंभीर रूप से कुपोषित है।
उल्लेखनीय है कि कुपोषण को दूर करने के लिए धमतरी जिला को पहली छैमाही में पूरक पोषण आहार योजना के तहत 6 करोड़ 50 लाख रुपए का आबंटन मिला था। इसके अलावा महतारी जतन योजना में 26 लाख रुपए मिला। इसके अलावा अभी हाल ही में मुख्यमंत्री पोषण अभियान के तहत 1 करोड़ 40 लाख रुपए का मांग प्रस्ताव शासन को और भेजा गया हैं।
गौरतलब है कि नए वित्तीय वर्ष के तहत मिले साढ़े 6 करोड़ रुपए से हर महीने एक करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होने के बावजूद कुपोषण के खिलाफ जंग में अपेक्षित लाभ नहीं मिल रहा। हर महीने बच्चों के लिए रेडी-टू-ईट, भोजन आदि में एक बड़ी राशि खर्च हो रही है। महिला एवं बाल विकास विभाग ने कुपोषण मुक्ति अभियान को सिर्फ आंगनबाड़ियों में कार्यकर्ताओं के भरोसे छोड़ दिया है। नियमित रूप से आंगनबाड़ी केन्द्रों की मानिटरिंग नहीं होने से अधिकांश कार्यकर्ता और सहायिका अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा रहे हैं, जिसके चलते शासन द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ बच्चों को नहीं मिल रहा है।
पत्रिका टीम ने शहर में संचालित आंगनबाड़ियों में जाकर बच्चों की उपस्थिति की पड़ताल की, तो देखा कि शहर के ज्यादातर आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों की उपस्थिति काफी कम थी, जबकि रजिस्टर में दर्ज संख्या ज्यादा है। शासन की ओर से रजिस्टर में दर्ज संख्या के अनुरूप ही रेडी टू ईंट समेत अन्य पूरक आहार भेजा जा रहा है,जबकि मौके पर बच्चों की 50 फीसदी भी उपस्थिति नहीं रहती। ऐसे में शेष बच्चों का पूरक आहार की खपत के गणित को समझा जा सकता है।

कर रहे हैं गोलमाल
उल्लेखनीय है कि कुपोषण को दूर करने गर्म भोजन परोसने प्रति बच्चे 5 रुपए 50 पैसे रोजाना खर्च किया जाता है। बीते छह महीने में महिला एवं बाल विकास विभाग करीब 6 करोड़ रुपए खर्च कर चुका हैं। विभाग की ओर से आंगनबाडिय़ों में पूरक आहार सप्लाई करने की जिम्मेदारी महिला समूह को दी गई है। वे निर्धारित समय में चावल, दाल, सब्जी, रेडी-टू-ईट समेत अन्य सामग्री उपलब्ध करा देते हैं। आंगनबाड़ियों में बच्चों की अनुपस्थिति कम होने के बाद भी कुछ कार्यकर्ता, उपस्थिति ज्यादा बताकर राशन में गोलमाल करते हैं। वे नियमित रूप से आंगनबाड़ी नहीं आने वाले बच्चों को लाने का प्रयास नहीं करते हैं। इसके चलते बच्चे सामान्य स्तर पर नहीं आ रहे हैं।

सिर्फ की जा रही खानापूर्ति
छोटे बच्चों को कुपोषण से मुक्ति दिलाने के लिए राज्य सरकार की ओर से पूरक पोषण आहार, मुख्यमंत्री बाल संदर्भ योजना, मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान संचालित है। पालक रामकुमार शर्मा, राजाराम वट्टी, रमेश साहू का कहना है कि हर साल इस पर करोड़ों रुपए खर्च कर दिया जाता हैं, लेकिन डीपीएम समेत सेक्टर अधिकारियों को मानिटरिंग की फुर्सत नहीं मिल रही है। आंगनबाड़ी केन्द्रों में परोसे जा रहे पूरक पोषण आहार की गुणवत्ता तक देखा नहीं जा रही है। यही वजह है कि जिले के अधिकांश सेक्टरों में सुपोषण अभियान को गहरा झटका लगा हैं।

पालकों की उदासीनता पड़ रही भारी
उल्लेखनीय है कि जिले के 1102 आंगनबाड़ी केन्द्रों की निगरानी के लिए राज्य सरकार ने बच्चों के पालकों, वार्ड पार्षद, पंच तथा ग्राम विकास समिति के प्रमुखों को जिम्मेदारियां दी है, लेकिन इनकी उदासीनता भी कुपोषण मुक्ति अभियान पर भारी पड़ रही हैं। पालकों को आंगनबाड़ी केन्द्र पहुंचकर यह देखने की फुर्सत नहीं है कि उनके बच्चे जो गर्म भोजन समेत पूरक आहार ले रहा है, उसकी गुणवत्ता कैसी है। यदि पालक और पार्षद-पंच, ग्रामवासी जागरूकता दिखाकर मानिटरिंग करेंगे तो 6 महीना, सालभर में कुपोषण से जंग जीत सकते हैं। इसके लिए लोगों को आगे आना चाहिए।

यहां ज्यादा गंभीर कुपोषित बच्चे
जिले में कुपोषण के मामले में कई ऐसे गांव हैं, जहां सर्वाधिक गंभीर कुपोषित बच्चे हैं। इनमें धमतरी-एक में 50, धमतरी-दो में 60, मोंगरागहन में 42, अंवरी में 53, कुरूद ग्रामीण में 40, मंदरौद में 43, नारी में 46, करेली बड़ी में 77, मगरलोड में 40, मेघा में 46, मोहंदी में 42, डोंगरडूला में 67, डोंगरडूला-दो में 47, केरेगांव में 41, नगरी दो में 44 तथा नगरी ब्लाक के सांकरा सेक्टर में सर्वाधिक 91 गंभीर कुपाषित बच्चे हैं।

डीपीएम एमडी नायक ने कहा, जिले में कुपोषण मुक्ति के लिए विभाग ने पूरी ताकत झोंक दी है। पहली छैमाही में साढ़े 6 करोड़ रुपए मिला था। गर्म भोजन के लिए प्रति बच्चे 5 रुपए 50 पैसे खर्च किया जाता है।

फैक्ट फाइल
जिले में आंगनबाड़ी-1102
बच्चों की दर्ज संख्या-57 हजार 591
कुपोषित बच्चे-7 हजार 809
गंभीर कुपोषित-1 हजार 537
एक बच्चे पर प्रतिदिन खर्च- करीब 8 रुपए
छह महीने में खर्च- 6 करोड़ 50 लाख

(अब्दुल रज्जाक रिजवी की रिपोर्ट)

ट्रेंडिंग वीडियो