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Chaitra Navratra 2022 : Day 6- देवगुरु बृहस्पति को नियंत्रित करने वाली युद्ध की देवी माता कात्यायनी नष्ट करती हैं रोग, शोक, संताप और भय

6th Day of Chaitra navratri 2022 : इस बार बन रहा है विशेष योग: विवाह का भी देती हैं वरदान: देवी मां की पूजा विधि, स्वरूप और कथा : कात्यायनी माता के यहां प्रकट होने का प्रमाण स्कंद पुराण में भी मौजूद हैं

भोपालApr 05, 2022 / 03:11 pm

दीपेश तिवारी

06 Day of chaitra Navratra 2022

06 Day of chaitra Navratra 2022

6th Day of Chaitra navratri 2022 : हिंदू कैलेंडर के चैत्र नवरात्रों की शुरुआत साल 2022 में 2 अप्रैल से हो चुकी है। वहीं इस बार इन नवरात्रों में न तो किसी तिथि का ह्रास है और न ही वृद्धि हुई है। ऐसे में इस बार गुरुवार, 07 अप्रैल 2022 को चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि यानि नवरात्र का छठा दिन रहेगा। इस दिन देवी मां कात्यायनी के पूजन का विधान है।
मान्यता के अनुसार देवी दुर्गा ने ही महिषासुर नामक राक्षस को मारने के लिए मां कात्यायनी के रूप में अपने छठें स्वरूप को धारण किया था। मां कात्यायनी को युद्ध की देवी भी कहा जाता है, क्योंकि माता का यह रूप काफ़ी हिंसक माना गया है।
बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करती हैं देवी कात्यायनी
ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कात्यायनी बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बृहस्पति के बुरे प्रभाव कम होते हैं।

 chaitra Navratra 2022-day 06

6th Day : Devi Maa Katyayani- नवरात्र में देवी का छठा (षष्ठी‌)रूप मां कात्यायनी के आशीर्वाद-
नवदुर्गा के नौ रूपों में से एक छठे कात्यायनी Goddess katyayni स्वरूप का यजुर्वेद के तैत्तिरीय आरण्यक में उल्लेख प्रथम किया गया है। वहीं स्कंद पुराण में उल्लेख है कि वे परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थी, जिन्होंने देवी पार्वती द्वारा दिए गए सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया।

माना जाता है कि एक ओर जहां देवी कात्यायनी रोग, शोक, संताप और भय का नाश करती हैं। जिनका विवाह नहीं हो रहा या फिर वैवाहिक जीवन में कुछ परेशानी हैं, तो उन्हें शक्ति के इस स्वरूप की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

विशेषकर जिन कन्याओं के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हें इस दिन मां कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हें मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।

ये है विवाह के लिए कात्यायनी मंत्र-
‘ऊॅं कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ! नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:।’

माना जाता है कि देवी मां कात्ययानी की उपासना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वहीं इससे उनके रोग, शोक, संताप और भय भी नष्ट हो जाते हैं।

देवी माता कात्यायनी का स्वरूप
देवी माता कात्यायनी को नौ देवियों में मां दुर्गा का छठा अवतार हैं। माता का यह स्वरूप करुणामयी है। देवी पुराण में कहा गया है कि कात्यायन ऋषि के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा।

माता कात्यायनी का शरीर सोने जैसा सुनहरा और चमकदार है। इनकी 4 भुजाएं हैं और यह सिंह की सवारी करती हैं। अपनी चार भुजाओं में से माता ने एक हाथ में तलवार और दूसरे में कमल का पुष्प धारण किया हुआ है, जबकि दाहिने दो हाथों से वरद और अभय मुद्रा धारण की हुईं हैं। देवी माता लाल वस्त्र में सुशोभित हैं।

कात्यायनी माता: पौराणिक मान्यताएं
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी कात्यायनी ने कात्यायन ऋषि के घर जन्म लिया था, इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा। कई जगह यह भी संदर्भ मिलता है कि वे देवी शक्ति की अवतार हैं और कात्यायन ऋषि ने सबसे पहले उनकी उपासना की, इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा।

Day 6 of chaitra Navratra 2022

कहा जाता है कि पूरी दुनिया में जब महिषासुर नामक राक्षस ने अपना ताण्डव मचाया, तब देवी कात्यायनी ने उसका वध कर ब्रह्माण्ड को उसके आत्याचार से मुक्त कराया। देवी माता ने तलवार आदि अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर दानव महिषासुर में घोर युद्ध किया। उसके बाद देवी माता के पास आते ही महिषासुर ने भैंसे का रूप धारण कर लिया। इसके बाद देवी ने अपने तलवार से उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी। देवी को महिषासुर मर्दिनी महिषासुर का वध करने के कारण ही कहा जाता है।

मां की पूजा विधि : नवरात्र के छठे दिन सबसे पहले कलश व देवी कात्यायनी जी की पूजा कि जानी चाहिए। यहां पूजा की शुरूआत में हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम करना चाहिए। फिर देवी के मंत्र का ध्यान करना चाहिए। अब देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की भी पूजा करें। वहीं श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए।

मां का भोग : इस दिन प्रसाद में मधु यानी शहद का प्रयोग करना चाहिए।

मंत्र – चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना।
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि।।

 

MUST READ :
1. माता कात्यायनी यहां हुईं थी अवतरित, स्कंद पुराण में है प्रमाण

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