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Datta Jayanti 2021- दत्तात्रेय जंयती कब है? जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा

त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का एक रूप दत्तात्रेय की पूजा प्रदान करती है सुख, समृद्धि और वैभव

Dec 18, 2021 / 09:51 am

दीपेश तिवारी

Dattatreya Jayanti

Dattatreya Jayanti / datta Jyanti

हिंदू धर्म में मार्गशीर्ष का महीना अत्यंत खास माना गया है। इस महीने की पूर्णिमा तिथि को दत्त जयंती यानि दत्तात्रेय जंयती मनाई जाती है। ऐसे में इस साल 2021 में दत्त जयंती शनिवार, 18 दिसंबर को आ रही है। दत्तात्रेय को त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का एक रूप माना जाता है। मान्यता जाता है कि दत्तात्रेय को 24 गुरुओं ने शिक्षा दी थी।

दत्तात्रेय के नाम से ही दत्त संप्रदाय का उदय हुआ है। वैसे तो दत्त जयंती का महत्व पूरे देश में है, लेकिन दक्षिण भारत में इसका ज्यादा महत्व है। क्योंकि यहां दत्त सम्प्रदाय के बहुत से लोग हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से सुख, समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है।

शुभ मुहूर्त 2021
पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ: शनिवार, 18 दिसंबर को शाम 7:24 बजे से।
पूर्णिमा तिथि का समापन: रविवार, 19 दिसंबर को सुबह 10.05 बजे तक।

Blessings of lord vishnu and shiv

दत्तात्रेय की कथा
हिंदू धर्मगग्रंथों के अनुसार एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी अनुसूया के गुणों का परीक्षण करने के लिए पृथ्वी पर आए। तीनों देवता भेष बदलकर अत्रि मुनि के आश्रम पहुंचे और मां अनुसूया के सामने भोजन की इच्छा व्यक्त की। तीनों देवताओं ने उनके लिए नग्न भोजन करने की शर्त रखी। मां अनुसूया यह सुनकर भ्रमित हो गई।

इस पर मां अनुसूया ने ध्यान किया और देखा कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश उनके सामने साधु के रूप में खड़े हैं। माता अनुसूया ने अत्रि मुनि के कमंडल से जल लेकर तीनों साधुओं पर छिड़का। इसके बाद तीनों ऋषि शिशु बन गए। तब माता ने देवताओं को भोजन कराया।

जब तीनों देवताओं के बच्चे बन गए तो तीनों देवी पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी पृथ्वी पर पहुंच गईं और मां अनुसूया से क्षमा मांगी। तीनों देवताओं ने अपनी गलती स्वीकार कर ली और माता के गर्भ से जन्म लेने का अनुरोध किया। इसके बाद तीनों देवताओं ने दत्तात्रेय के रूप में जन्म लिया।

दत्तात्रेय का जन्म
मानयता के अनुसार दत्तात्रेय का जन्म बुधवार को मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन मृग नक्षत्र पर सायंकाल में हुआ था। इसलिए, सभी प्रमुख दत्ताक्षेत्रों के साथ-साथ जहां दत्त मंदिर है, इस दिन शाम के समय दत्त जन्म समारोह किया जाता है। इस अवसर पर कई ब्राह्मण परिवारों में मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी से एक पहले अनुष्ठान के रूप में दत्ता नवरात्र मनाया जाता है।

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साथ ही दत्त जयंती के अवसर पर ‘श्रीगुरुचरित्र’ पुस्तक का पाठ सामूहिक रूप से या घर पर व्यक्तिगत स्तर पर किया जाता है। दत्त जयंती के दिन जन्म समारोह के दौरान शाम को दत्त जन्म का कीर्तन भी होता है। दत्त जयंती दक्षिण में आंध्र, कर्नाटक और तमिलनाडु में भी मनाई जाती है।

पूर्व समय में शैव, वैष्णव और शाक्त तीनों ही संप्रदायों को एकजुट करने वाले श्री दत्तात्रेय का प्रभाव देश के अन्य राज्यों के मुकाबले महाराष्ट्र में ज्यादा है। दत्त संप्रदाय में हिन्दुओं के ही बराबर मुसलमान भक्त भी बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। तमिलनाडु में भी दत्तजयंती की प्रथा है।

दत्तात्रेय के यहां भी है मंदिर
: इं‍दौर स्थित भगवान दत्तात्रेय का मंदिर करीब सात सौ साल पुराना है।
: उत्तराखंड के चमोली जिले में ऊंचे पहाड़ों पर स्थित प्रसिद्ध अनुसूया मंदिर में भी दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। इस जयंती में पूरे राज्य से हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं।

श्री दतात्रेय भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार दत्तात्रेय, जो अत्रि-अनुसूया के पुत्र माने जाते हैं, का जन्म ब्रह्म-विष्णु-महेश के एक भाग के रूप में हुआ था। इन तीनों के अंश के रूप में दत्तात्रेय के त्रिमुखी और छह भुजाओं वाले देवता जनसाधारण के बीच लोकप्रिय हैं। तुकोबा ने दत्तस्वरूप को तीन सिर, छह भुजाओं के साथ प्रणाम किया है। लेकिन मूल रूप से पुराणों में दत्त को एकमुखी और दो तरफा या चतुर्भुज के रूप में वर्णित किया गया है।

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खास बात यह है कि दत्तोपासना में ध्यान के लिए त्रिमुखी दत्त और पूजा के लिए पादुका के गुणों को महत्व दिया गया है। नरसोबची वाडी, औदुम्बर, गंगापुर और सभी प्रसिद्ध दत्तक्षेत्री स्थापित पाए गए हैं।

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दत्तात्रेय जयंती पर क्या करें?
इस दिन कई भक्त गुरुचरित्र का पाठ करने के लिए एकत्र होते हैं। जो लोग किसी कारणवश ऐसा नहीं कर पाते हैं, उन्हें जितना हो सके दत्तात्रेय के नाम का जाप करना चाहिए। जिन लोगों ने गुरु मंत्र लिया है उन्हें गुरु से मिलना चाहिए और उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।

श्री दत्तात्रेय की उपासना विधि
इस दिन लाल कपड़े पर श्री दत्तात्रेय जी की प्रतिमा को स्थापित करने के पश्चात चंदन लगाकर, फ़ूल चढाकर, धूप, नैवेद्य चढ़ाकर उनकी दीपक से आरती उतारकर पूजा की जाती है।

मान्यता है कि इनकी उपासना तुरंत प्रभावी होकर शीघ्र ही साधक को उनकी उपस्थिति का आभास दिलाती है। साधकों को उनकी उपस्थिति का आभास सुगन्ध के द्वारा, दिव्य प्रकाश के द्वारा या साक्षात उनके दर्शन से होता है। भगवान दत्तात्रेय बड़ा ही दयालु माना जाता है।
योग के गुरु दत्तात्रेय
दत्तात्रेय को योग का गुरु माना जाता था। सभी के गुरु के रूप में पहचाने जाने वाले दत्तात्रेय ने स्वयं चौबीस गुरु बनाए। जानकारों के अनुसार कि यदि हम दत्तात्रेय जैसा व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हैं, तो इससे हमें अपने व्यक्तित्व को विकसित करने में मदद मिलेगी, समाज स्वस्थ होगा, इसमें कोई संदेह भी नहीं है।
दत्त मंदिर में कीर्तन आयोजन
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के गुरुदेव सेवा मंडल, दत्त मंदिर, अरेरा कॉलोनी में दत्त जयंती महोत्सव के अंतर्गत शुक्रवार को कीर्तनकार देवरसजी ने संत तुकाराम महाराज का अभंग नाम संकीर्तन साधना पर वर्णन किया, इसी विषय पर पंडित तथा संतो के महानुभावों के प्रमाण देते हुए विषय की विस्तृत जानकारी दी। इस मौके पर तबले पर श्रीकांत हिरवे तथा हारमोनियम पर भूपेश पाठक थे। इस अवसर गुणवंत कुलकर्णी, रवि शिंगवेकर , हिमांशु बोरकर आदि उपस्थित थे।
दत्तमन्दिर के सलाहकार संजय जोशी ने बताया कि मार्गशीर्ष पौर्णिमा के दिन 18 दिसम्बर शनिवार को दत्त जयंती महोत्सव मनाया जाएगा। दोपहर तीन से छह बजे तक श्रीदत्त जन्म कीर्तन मुकुंद बुआ, देवरस, नागपुर (महाराष्ट्र) द्वारा किया जाएगा।

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