गर्मी में कर जाते हैं पलायन सरमथुरा तहसील के गांव बरूअर में ग्रामीण पानी की कमी के चलते मार्च माह से ही पशुओं के साथ पलायन कर जाते हैं। गांव में करीब 25 से 30 घर हैं। ज्यादातर परिवार मार्च के अंत तक रिश्तेदारी या परिचितों के दूर-दराज वाले स्थानों पर चले जाते हैं। पीछे से घरों में घर में एक व्यक्ति रह जाता है जो रखवाली करता है। अगस्त में जब बरसात शुरू होने लगती है तो ये वापस घर लौटने लगते हैं।
सैकड़ों पशु पर गर्मियों में एक कप दूध तक नहीं डांग के ज्यादातर गांवों में ग्रामीण पशुपालन पर निर्भर हैं। एक-एक घर में 20 से 25 भैंस और दुधारू गाय हैं, जिसे बेच कर ग्रामीण भरण-पोषण कर रहे हैं। गर्मी में जहां एक कप दूध तक नहीं होता जबकि बरसात और सर्दियों के दिनों में दूध की कमी नहीं रहती है। एक गांव से करीब ढाई से तीन हजार लीटर तक दूध कलेक्शन होता है। पथरीला इलाका होने से यहां फसल के साथ चारा भी नहीं होता है। इस वजह से पशुपालक पलायन करने पर मजबूर होते हैं।
70 साल में भी नहीं बदली स्थिति बरूअर क्षेत्र निवासी भाई बदन सिंह और भरत सिंह बताते हैं कि साहब…70 साल से वह पानी की इसी स्थिति से जूझ रहे हैं। वे कहते हैं पानी की समस्या से चलते 7 से 8 दिन बाद में वह स्नान कर पाते हैं। पानी किल्लत के चलते यहां कोई इन गांवों में आता तक नहीं है।