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धौलपुर

आजादी के 70 साल बाद भी डांग प्यासा… पयालन कर रहे ग्रामीण

– जिले के सरमथुरा क्षेत्र के कई गांवों में छाई वीरानी, कुछ लोग कर रहे चौकीदारी

– घरों में ताला लटका ग्रामीण पशुओं के साथ रिश्तेदारों के यहां पहुंचे

– डांग में सरकारें केवल वादे तक सीमित, पेयजल योजना की दरकार

धौलपुर. मई की शुरुआत से पहले धौलपुर जिले में कई क्षेत्रों में पानी का संकट गहरा गया है। यहां डांग क्षेत्र के कई गांव ऐसे भी हैं, जहां पानी केवल बरसात के दिनों में ही उपलब्ध है। गर्मी की दस्तक के साथ डांग के कई गांवों से बड़ी संख्या में ग्रामीण व पशुपालक पलायन कर जाते हैं। पीछे

धौलपुरMay 02, 2024 / 11:44 am

Naresh

आजादी के 70 साल बाद भी डांग प्यासा... पयालन कर रहे ग्रामीण Villagers are still thirsty even after 70 years of independence...
  • जिले के सरमथुरा क्षेत्र के कई गांवों में छाई वीरानी, कुछ लोग कर रहे चौकीदारी
  • घरों में ताला लटका ग्रामीण पशुओं के साथ रिश्तेदारों के यहां पहुंचे
  • डांग में सरकारें केवल वादे तक सीमित, पेयजल योजना की दरकार
धौलपुर. मई की शुरुआत से पहले धौलपुर जिले में कई क्षेत्रों में पानी का संकट गहरा गया है। यहां डांग क्षेत्र के कई गांव ऐसे भी हैं, जहां पानी केवल बरसात के दिनों में ही उपलब्ध है। गर्मी की दस्तक के साथ डांग के कई गांवों से बड़ी संख्या में ग्रामीण व पशुपालक पलायन कर जाते हैं। पीछे से गांवों में सन्नाटा पसरा रहता है। कुछ रह जाते हैं जो केवल चौकादारी करते हैं। ऐसी स्थिति से सरमथुरा उपखण्ड के डांग क्षेत्र के कई गांवों के लोगों को दो-चार होना पड़ रहा है। उपखंड के गौलारी, मदनपुर व धौन्ध पंचायत समेत कई पंचायतों में आजादी के 70 साल भी पानी की एक बड़ा मुद्दा है। हालांकि, पार्वती बांध से डांग में पेयजल लाइन से पानी पहुंचा है लेकिन ऐसे गांवों की संख्या सीमित है। हाल ये है कि इलाके में ज्यादातर जलस्रोत जवाब दे चुके हैं। बोरिंग और हैडपंप पानी की जगह हवा छोड़ रहे हैं। इलाके के गौलारी पंचायत के चंदनपुरा, अहीरकी, झल्लूकीझोर, महुआ की टोकरा व बल्लापुरा गांव के करीब 50 परिवार मवेशी सहित पलायन कर चुके हंै। डांग क्षेत्र में स्थिति इस कदर भयाभय है कि मदनपुर पंचायत के बरूअर व विजलपुरा के ग्रामीण पोखर का पानी छानकर दैनिक क्रिया में उपयोग कर रहे हैं।
गर्मी में कर जाते हैं पलायन

सरमथुरा तहसील के गांव बरूअर में ग्रामीण पानी की कमी के चलते मार्च माह से ही पशुओं के साथ पलायन कर जाते हैं। गांव में करीब 25 से 30 घर हैं। ज्यादातर परिवार मार्च के अंत तक रिश्तेदारी या परिचितों के दूर-दराज वाले स्थानों पर चले जाते हैं। पीछे से घरों में घर में एक व्यक्ति रह जाता है जो रखवाली करता है। अगस्त में जब बरसात शुरू होने लगती है तो ये वापस घर लौटने लगते हैं।
सैकड़ों पशु पर गर्मियों में एक कप दूध तक नहीं

डांग के ज्यादातर गांवों में ग्रामीण पशुपालन पर निर्भर हैं। एक-एक घर में 20 से 25 भैंस और दुधारू गाय हैं, जिसे बेच कर ग्रामीण भरण-पोषण कर रहे हैं। गर्मी में जहां एक कप दूध तक नहीं होता जबकि बरसात और सर्दियों के दिनों में दूध की कमी नहीं रहती है। एक गांव से करीब ढाई से तीन हजार लीटर तक दूध कलेक्शन होता है। पथरीला इलाका होने से यहां फसल के साथ चारा भी नहीं होता है। इस वजह से पशुपालक पलायन करने पर मजबूर होते हैं।
70 साल में भी नहीं बदली स्थिति

बरूअर क्षेत्र निवासी भाई बदन सिंह और भरत सिंह बताते हैं कि साहब…70 साल से वह पानी की इसी स्थिति से जूझ रहे हैं। वे कहते हैं पानी की समस्या से चलते 7 से 8 दिन बाद में वह स्नान कर पाते हैं। पानी किल्लत के चलते यहां कोई इन गांवों में आता तक नहीं है।

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