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डिंडोरी

घोड़े की सवारी कर सड़क विहीन गांव में शिक्षक की अलख जगा रहे दिब्यांग शिक्षक

15 वर्षों से कर रहे ऊबड़-खाबड रास्ते में सफर

डिंडोरीJul 08, 2019 / 10:52 pm

Rajkumar yadav

Diving teacher awaiting teacher in a roadless village, riding a horse

Diving teacher awaiting teacher in a roadless village, riding a horse

शहपुरा. ग्रामीण छात्रों को शिक्षित करने की ललक व अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाने की चाह में एक शिक्षक पिछले १५ वर्ष से घोड़े से विद्यालय पहुंच रहा है। यह उसका कोई शौक नहीं बल्कि मजबूरी है। जिस गांव में वह पदस्थ है वहां का मार्ग पूरी तरह से ऊबड़-खाबड़ है और शिक्षक जन्म से ही विकलांग है। ऐसे में वह ऐसे मार्ग में वाहन से सफर कर नहीं सकते। जिसके चलते उन्होने घोड़े को ही अपनी सवार चुना और अब वह उसी से सफर कर विद्यालय पहुंचते हैं। हम बात कर रहे हैं डिंडोरी जिले के प्राथमिक शाला संझौला टोला में पदस्थ शिक्षक रतनलाल नंदा की। जिन्हें सड़क नहीं होने की वजह से घोड़ा खरीदना पड़ा था और वो उसी घोड़े पर बैठकर प्रतिदिन 14 किलोमीटर का लंबा सफर तय कर इलाके में शिक्षा की अलख जगाने का काम कर रहे हैं। शिक्षक रतनलाल नंदा जन्म से ही दिव्यांग हैं और वो जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर लुढरा गांव के निवासी हैं। गांव से 7 किलोमीटर दूर जिस स्कूल में वो पदस्थ हैं वहां तक पहुंचने के लिये सड़क ही नहीं है। जंगली व ऊबड़ खाबड़ रास्तों एवं नदी नालों को पार करके ही स्कूल तक पहुंचा जा सकता है। लिहाजा शिक्षक ने घोड़ा खरीद लिया।
प्राथमिक शाला संझौला टोला में पदस्थ दिव्यांग शिक्षक रतनलाल नंदा एक पैर से जन्म से ही विकलांग हैं। अपने कर्तव्यों को पूरा करने उन्होंने कभी अपनी दिव्यांगता को आड़े नहीं आने दिया, तमाम चुनौतियों को मात देते हुये घोड़े के सहारे वो प्रतिदिन स्कूल पहुंचकर बच्चों को पढ़ाते हैं ताकि नौनिहालों का भविष्य संवर सके। घर से स्कूल तक 7 किलोमीटर का दुर्गम सफर तय करने के लिये उन्हें घर से दो घंटे पहले निकलना पड़ता है और स्कूल की छुट्टी के बाद वो देर शाम घर पहुंच पाते हैं। शिक्षक और घोडा कितनी मुश्किलों को पार करके आवाजाही करते हैं यह उस मार्ग को देखकर बखूबी अंदाजा लगाया जा सकता है। सफर के दौरान कई बार ऐसे स्थान भी हैं जहां घोड़े की हिम्मत भी जवाब दे जाती है तब शिक्षक घोड़े का सहारा बनकर उसे पार लगाते हैं। शिक्षक ने बताया कि उन्होंने कइयों बार सड़क बनानेे की गुहार नेता और अधिकारीयों से लगाई है लेकिन अब तक किसी ने उनकी सुध नहीं ली है। जिले के जवाबदार अधिकारी और नेता अपनी नाकामियों को छिपाने शिक्षक की तारीफों के पुल बांध रहे हैं। इसमें कोई शक भी नहीं है कि शिक्षक रतनलाल सम्मान के वास्तविक हकदार हैं और उनके जज्बे को सभी सलाम करते हैं लेकिन स्कूल भवन की दुर्दशा,सड़क, बिजली और पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीवन यापन करने वाले ग्रामीणों की समस्या का निदान कौन करेगा यह एक बड़ा सवाल है। इसके अलावा जिस स्कूल में रतन लाल पदस्थ है उसका भवन भी जर्जर है जिसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।
इनका कहना है
संझौला टोला गांव के लोग शिक्षक रतनलाल की जमकर तारीफ़ करते हैं लेकिन खंडहर हो चुके भवन में लग रहे स्कूल एवं इलाके में मूलभूत सुविधाओं के अभाव को लेकर अपनी नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं।
दुक्खू सिंह, ग्रामीण संझौला टोला
समस्याए तो बहुत है मगर मैने कभी हिम्मत नहीं हारी है रास्ता नहीं होने से सभी परेशान है। शासन प्रसाशन को कई बार लिखित शिकायत भी दी गई पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई साथ ही स्कूल भवन भी जर्जर है।
रतनलाल नंदा, शिक्षकप्राथमिक शाला संझौला टोला
शिक्षक रतन लाल का कार्य सराहनीय है इनके द्वारा अभी चुनाव के समय भी मतदान करने के लिए विकलांग होने के बाद भी घर घर जाकर लोगो को जागरूक किया था। राघवेन्द्र मिश्रा, डीईओ डिंडोरी ।

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