अत्यधिक कफ बनना या कफ के साथ खून आना, गला बैठना, सांस लेने में तकलीफ होना, सीने में दर्द और बिना किसी कारण के वजन घटना। आमतौर पर इनमें से कुछ लक्षण मौसम के बदलाव से भी होते हैं। लेकिन जिन्हें दवा लेने के बावजूद फायदा न हो या हर बार कफ के साथ खून आए तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
1 . फेफड़े में अनियमित कोशिका का निर्माण जिसके लिए सर्जरी करते हैं।
2-3. सीने में कोशिका का बनना या कोशिका का फेफड़ों से सीने में फैलाव। इसमें सर्जरी, कीमोथैरेपी के अलावा जरूरतानुसार रेडियोथैरेपी भी देते हैं।
4. कोशिका के ट्यूमर में बदलाव का अन्य अंगों जैसे लसिका ग्रंथि, दिमाग, लिवर, एड्रनिल गं्रथि पर असर। कीमोथैरेपी, ओरल टारेगेटेड थैरेपी, इम्यूनोथैरेपी और रेडिएशन थैरेपी से इलाज करते हैं।
रोग की पहली स्टेज में पहचान से 80 फीसदी मरीजों का इलाज संभव है। इसके लिए हर स्तर पर अलग-अलग तरह की जांचें होती हैं। तीन तरह से रोग की पहचान करते हैं –
1. प्राइमरी स्टेज : चेस्ट एक्स-रे और सीटी स्कैन।
2. सेकंड्री स्टेज : ब्रॉन्कोस्कोपी, ईबस (एंडोब्रॉन्कियल अल्ट्रासाउंड) या बायोप्सी।
3. एडवांस्ड स्टेज : पूरे शरीर का पैट सीटी स्कैन, मीडियास्टीनोस्कोपी (मुंह से सांस नली के जरिए इंस्ट्रूमेंट को डालकर फेफड़ों की स्थिति का पता लगाते हैं) और एमआरआई।
धूम्रपान व शराब के साथ पैसिव स्मोकिंग व केमिकल युक्त खानपान से दूर रहें। खानपान में लो फैट और हाई फाइबर जैसी चीजों के अलावा ताजे फल व सब्जियां खाएं। साबुत अनाज इस कैंसर की आशंका को घटाते हैं। रोजाना 1-2 घंटे की एरोबिक एक्सरसाइज करें।