पहचान कैसे करते हैं?
चिकित्सक मरीज के लक्षणों के आधार पर इलाज करते हैं। मरीज मोटा है या पतला, उसके स्वास्थ्य व परिवार की मेडिकल हिस्ट्री, शरीर की संवेदनशीलता जैसी बातें जानने के बाद दवाएं और खुराक तय करते हैं।
होम्योपैथी में इलाज
होम्योपैथी में टीएसएच को नॉर्मल करने के लिए दवाएं दी जाती हंै। कुछ दवाएं ऐसी हैं जो सामान्यत: थायरॉइड के सभी मरीजों को दी जाती है। मरीज के व्यवहार, रहन-सहन, खानपान, तनाव, मोटापा, डायबिटीज, विशेष साल्ट लेने की आदत देखते हैं। हार्मोन असंतुलन बढ़ाने वाली व ज्यादा साल्ट वाली चीजें न लें। चाय, कॉफी और सॉफ्ट ड्रिंक्स का प्रयोग बंद करें। इनसे दवा का असर कम होता है। जल्दी सोएं व जल्दी उठें। 30-40 प्रतिशत मरीजों को पूरी तरह आराम मिल जाता है। मरीज दो पैथियों का इलाज मिक्स करने से बचें।
आयुर्वेद में इलाज
आयुर्वेद में मरीज को कंचनार, गुग्गल की दो-दो गोली खाने के बाद, पंचकोल चूर्ण खाने से पहले पानी व दूध में उबाल कर लें। चिकनी चीजों को लेने से बचें। कफ व मेद को बढ़ाने वाले आहार घी, तेल के प्रयोग से बचें। नियमित योग और व्यायाम करें। खाने में फ्रिज की व ठंडी तासीर वाली चीजें, बासी भोजन, जंक व फास्ट फूड न खाएं। दूध में मुलैठी, अदरक डाल कर पीएं। गर्भावस्था के दौरान ज्यादा थायरॉक्सिन की जरूरत होती है। आयोडीन की पर्याप्त मात्रा नहीं लेने से गर्भवती को थायरॉइड की समस्या होती है जो ज्यादातर बाद में चार से छह माह में ठीक हो जाती है।
एक्सपर्ट : डॉ. राजेश कुमार शर्मा, आयुर्वेद विशेषज्ञ, आयुर्वेद विवि, जोधपुर
एक्सपर्ट : डॉ. राजीव खन्ना, होम्योपैथी विशेषज्ञ, जयपुर
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