दूसरी बीमारियां भी –
विटामिन-डी शरीर के कई महत्वपूर्ण अंगों को ठीक तरह से संचालित करने में मदद करता है। इसकी कमी से रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी, मांसपेशियों में गड़बड़ी, लंबे समय तक शुगर लेवल बढ़े रहना, कोलोन, ब्रेस्ट व प्रोस्टेट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
कमी से बचें : शरीर के लिए जरूरी विटामिन-डी की 75 प्रतिशत मात्रा के लिए सूरज की सीधी रोशनी की जरूरत होती है। आजकल लोग त्वचा का रंग काला होने के डर से सूरज की रोशनी में कम जाते हैं जिससे विटामिन-डी की कमी होती जा रही है। इसके लिए जरूरी है कि रोजाना कम से कम 15-20 मिनट सूरज की रोशनी में जरूर रहें। सुबह 7-8 बजे का समय सबसे ज्यादा उपयुक्त होता है क्योंकि इस दौरान धूप तेज नहीं होती और वातावरण में प्रदूषण की मात्रा भी काफी कम होती है।
इसलिए जरूरी धूप : दूध, मशरूम व पनीर जैसे खाद्य पदार्थों में विटामिन-डी होता है लेकिन इसकी मात्रा काफी कम होती है जो शरीर की जरूरत को पूरा नहीं कर पाती।
दवाओं की जरूरत : हमारे शरीर में विटामिन-डी की मात्रा 50-60 नैनोग्राम (डीएल) होती है जब यह 30 नैनोग्राम (डीएल) से कम हो जाती है तो दवाओं के जरिए इसकी पूर्ति की जाती है।
कमी का असर –
मोटापा, किडनी संबंधी रोग, लिवर की समस्याएं और दूसरी अन्य मेडिकल स्थितियां जैसे साइटिक फाइबरोसिस और सिलियक रोग भी विटामिन-डी की कमी से होता है। जो रोगी एड्स/एचआईवी की दवाइयां लेते हैं उनमें विटामिन-डी की कमी होने का जोखिम रहता है।