प्लान अगले 30 साल के लिए बनाया गया है। यह स्वीकृति से पहले ही 18 साल पिछड़ गया है। यह प्लान 2001 में तैयार कर लागू कर लिया जाना था, लेकिन 13 साल देरी से वर्ष 2013 में इस पर काम शुरू किया गया। तीन साल में यानि वर्ष 2016 में इसका मसौदा तैयार हुआ। संयुक्त संचालक, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग एसके बांगड़े ने बताया कि मास्टर प्लान पर मिले दावा-आपत्तियों का निराकरण कर डायरेक्टोरेट को भेजा गया है। वहां इस पर काम चल रहा है। अब प्लान को फिर से जिला स्तरीय समिति में रखा जाएगा। जिसमें मिलने वाले सुझावों के आधार पर प्लान में सुधार किया जाएगा। फिर स्वीकृति के लिए शासन को भेजा जाएगा।
प्लान के मसौदे पर अब तक दो बार जिला स्तरीय रिव्यू कमेटी की बैठक हो चुकी है। आपत्तियों को लिए दो बार प्लान का सार्वजनिक प्रकाशन किया जा चुका है। पहली बार प्लान पर 1155 आपत्तियां की गई थी। दूसरी बार 1207 आपत्तियां आई। दूसरी बार मिले आपत्तियों का सितंबर २०१८ में निराकरण कर प्लान सुधार के लिए डायरेक्टर ऑफिस भेजा गया था।
रिव्यू कमेटी और आम लोगों की आपत्तियों पर सुनवाई के बाद प्लान डायरेक्टर आफिस भेज दिया गया था। अफसरों के मुताबिक पिछली गड़बडिय़ों को देखते हुए डायरेक्टर खुद संशोधनों की पड़ताल कर रहे थे। इसके बाद प्लान स्वीकृति के लिए सीधे शासन को भेजने की योजना थी।
टाउन प्लानिंग के अफसरों के मुताबिक आपत्तियों के अलावा रिव्यू कमेटी की बैठक में कई सुझाव आए थे। इन सुझावों के आधार पर प्लान पर डायरेक्टर ऑफिस में सुधार किया जा रहा था। अब प्लान फिर से जिला स्तरीय कमेटी के सामने रखा जाएगा। इस पर समिति का सुझाव लेकर फिर से सुधार किया जाएगा।
योजनाबद्ध तरीके से विकास में बाधा, सरकार को सुविधाएं उपलब्ध कराने में दिक्कत।
शहर के अंदर कहां पर क्या बनाया जाए, इसकी बेहतर कार्ययोजना नहीं।
लोगों की जरूरत के अनुसार आवासीय भूमि नहीं
कृषि व ग्रीन बेल्ट बन रहेअघोषत आवासीय क्षेत्र।
लैंड यूज बदलने में देरी से अवैध मकानों के निर्माण हो रहा।
निर्माण के लिए ले-आउट स्वीकृति में खासी परेशानी।
खेल मैदान, कम्यूनिटी हॉल आदि बनने के लिए जमीन नहीं।
हथखोज व रसमड़ा के बाद नया औद्योगिक क्षेत्र नहीं।
व्यापारिक व वाणिज्यिक स्थल विकसित नहीं हो रहे।