इस यूनिट में अलग-अलग साइज के टैंक बनाए गए हैं। इन टैंकों के माध्यम से अलग-अलग तरह के स्पानों को रखे जाने की व्यवस्था है। साथ ही पूरे समय में पानी का शुद्धीकरण भी किया जाता है ताकि मछली की बीट से पानी सुरक्षित रह सके। इसमें पांच तरह की व्यवस्था है। पहली ड्रम फिल्ट्रेशन की, दूसरा चिप फिल्ट्रेशन की, तीसरा डिगैसिंग, चौथा ओजोनाइजेशन और पांचवां डिसाल्व ऑक्सीजन मशीन।
इस यूनिट की विशेषता है कि इसे केवल मोबाइल के माध्यम से आपरेट किया जा सकता है। दिन-रात मिलाकर मेंटेनेंस के लिए केवल तीन लेबर लगते हैं। अगले साल वे सोलर एनर्जी इंस्टाल करेंगे तो बिजली बिल से भी बचत हो जाएगी।
यह मॉडल एक ऐसे देश इजराइल से आया है जहां के लोग एक-एक बूंद पानी बचाकर खेती करते हैं। रत्नाकर ने बताया कि यदि एक एकड़ में मछली पालन करें तो कम से कम साढ़े चार फीट पानी का स्तर रखना होगा। इसमें बेहिसाब पानी लगेगा। इस पद्धति में पानी रिसाइकल होता रहता है।