2.इस गुफा की खोज त्रेतायुग में हुई थी। इसका पता सबसे पहले सूर्य वंश के राजा ऋतुपर्णा ने लगाया था। वो एक हिरण का पीछा करते हुए यहां तक पहुंचे थे। इस गुफा को पाताल भुवनेश्वर गुफा के नाम से भी जाना जाता है।
3.एक अन्य धार्मिक ग्रंथ के अनुसार त्रेतायुग के बाद द्वापर युग में भी इस गुफा का रहस्य सामने आया था। उस दौरान महाभारत के युद्ध के कई सालों बाद जब पांडव राजपाट छोड़कर स्वर्ग जा रहे थे।
4.बताया जाता है कि इस गुफा में चारों युगों के प्रतीक के रूप में चार पत्थर मौजूद है। इनमें एक पत्थर कलयुग का भी है। ये पत्थर धीेरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। माना जाता है कि जिस दिन यह कलियुग का प्रतीक पत्थर दीवार से टकरा जायेगा उस दिन कलियुग का अंत हो जाएगा।
5.पत्थरों के अलावा इस गुफा में भगवान गणेश का कटा हुआ सिर भी मौजूद हैं। जिसकी रक्षा 33 कोटि देवी-देवता कर रहे हैं। बताया जाता है कि पांडव यहां से गुजरते वक्त गणेश से जाने की अनुमति लेने आए थे।
6.धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक गुफा में भगवान गणेश का सिर होने की बात कलयुग में गुरु आदिशंकराचार्य ने बताई थी। उनके खोज के मुताबिक यहां गौरी पुत्र गणेश का सिर एक पत्थर के रूप में विराजमान है। जिसके उपर 108 पंखुड़ियों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल के रूप की एक चट्टान है।
7.इस ब्रह्मकमल से पानी निकलता है जो भगवान गणेश के शिलारूपी मस्तक पर गिरती हैं। जबकि सिर से होते हुए पानी की दिब्य बूंद गणेश जी के मुख से निकलती हुई दिखती है। मान्यता है कि यह ब्रह्मकमल भगवान शिव ने ही यहां स्थापित किया था।
8.माना जाता है कि यह गुफा कैलाश पर्वत तक जाती है। जबकि कुछ विद्वानों के अनुसार इस गुफा का एक छोर पाताल तक मौजूद है। ये गुफा बहुत बड़ी और गहरी होने के चलते इसके अंदर तक कोई नहीं जाता है। लोगों के दर्शन के लिए केवल इसका ऊपरी हिस्सा ही खोला गया है। जबकि शेष गुफा में लोहे की जंजीरें पड़ी हुई हैं।
9.ये गुफा कला की दृष्टि से भी बहुत श्रेष्ठ है। इसकी चट्टानों में शेषनाग के फनों की तरह उभरी संरचनाएं हैं। मान्यता है कि धरती इसी पर टिकी हुई है। इसके अलावा गुफा की छत पर एक धन की आकृति नजर आती है। साथ ही गुफा के भीतर मुड़ी गर्दन वाला हंस एक कुण्ड के ऊपर बैठा दिखाई देता है।
10.पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार माता पार्वती ने अपने मैल से गणेश जी को बनाया था। उनकी आज्ञा का पालन करते हुए गणेश ने भगवान शिव को रोकने की कोशिश की थी। तभी क्रोध में आकर शिव ने गणेश का मस्तक अपने त्रिशूल से उनका मस्तक काट दिया था।