अक्षय तृतीया विशेष : सोना खरीदते समय करें ये 10 काम, हमेशा आप पर रहेगी मां लक्ष्मी की कृपा 1.भगवान परशुराम को
विष्णु जी का छठा अवतार माना जाता है। उनका जन्म 6 उच्च योगों में हुआ था। इसलिए ये पराक्रम के धनी माने जाते हैं।
2.भगवान परशुराम ऋषि जमदग्नि और रेणुका की चौथी संतान हैं। पुराणों के अनुसार परशुराम ने अपने पिता के कहने पर अपनी मां का वध कर दिया था। 3.दरअसल उनकी मां रेणुका हवन के लिए नदी से जल लेने गई थीं। मगर तभी वो तट पर अप्सराओं और देवराज इंद्र की लीलाओं को देखकर वहीं खड़ी रह गईं। हवन में सही समय पर जल ना लाने से ऋषि जमदग्नि नाराज हो गए और उन्होंने अपने पुत्रों को रेणुका का वध करने का आदेश दिया।
4.परशुराम के बाकी दोनों भाईयों ने ये आदेश मानने से इंकार कर दिया। जबकि परशुराम ने अपने खड़ग से अपनी मां की जान ले ली। इससे उनके पिता बहुत प्रसन्न हुए और उनसे कोई तीन वरदान मांगने को कहे थे।
5.पिता की बात सुनकर पहले वरदान में परशुराम ने उनसे उनकी मां को दोबारा जीवित करने की मांग की। जबकि दूसरे वरदान में उन्हें अपनी मां को मारने की बात भूलने और तीसरे वरदान में अपने दोनों भाईयों को होश में लाने का वर मांगा। ऋषि ने उनकी सभी इच्छाएं पूरी की।
गणेश जी की पूजा करते समय भूलकर भी न करें ये 10 गलतियां, आ सकती हैं मुसीबतें 6.मगर अपनी मां की जान लेने के चलते मातृ हत्या का पाप लग गया। इस दोष से छुटकारा पाने के लिए परशुराम ने भगवान शिव की साधना शुरू की थी। वे उन्हें अपना गुरू मानते थे।
7.भगवान परशुराम बचपन से ही क्रोधी स्वभाव के रहे हैं। इसका उदाहरण अक्सर देखने को मिलता रहा है। उनके गुस्से का शिकार एक बार गणेश जी को भी होना पड़ा था। दरअसल परशुराम अपने आराध्य भोलेनाथ से मिलने कैलाश पहुंचे थे मगर उस वक्त वे ध्यान कर रहे थे।
8.पिता शिव का ध्यान भंग न हो इसके लिए गणेश जी ने परशुराम को उनसे मिलने से रोक दिया था। तभी परशुराम क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने फरसे से गणेश जी का दांत तोड़ दिया।
9.इससे पहले भी भगवान परशुराम ने अपने माता-पिता के अपमान का बदला लेने के लिए 21 बार पूरी धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था। दरअसल जा सहस्त्रार्जुन ने अपने बल और घमंड के कारण लगातार ब्राह्राणों और ऋषियों पर अत्याचार कर रहा था। इस दौरान उन्होंने परशुराम के पिता को भी अपमानित किया था। इसी का बदला लेने के लिए परशुराम ने ये कदम उठाया था।
10.भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्राण कुल में हुआ था, लेकिन उनका व्यवहार क्षत्रियों जैसा था। वे अपने आराध्य शिव जी की तरह ही न्यायप्रिय थे।