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रुपए में कमजोरी आैर अर्थव्यवस्था के लिए भारत ये 10 करोड़ लाेग हैं जिम्मेदारी, जानिए राजकोषिय घाटे का पूरा गणित

पीएम आर्थिक सलाह समिति के सदस्य रतिन राॅय ने राजकोषिय घाटे को लेकर कहा है कि भारत के लिए कुछ आधारभूत परेशानियां है।

नई दिल्लीSep 21, 2018 / 04:17 pm

Ashutosh Verma

नर्इ दिल्ली। बीते कुछ समय से वैश्विक अर्थव्यवस्था में काफी उठापटक देखने को मिल रही है। भारत में भी डाॅलर के मुकाबले रुपए में कमजोरी आैर कच्चे तेल के दाम में इजाफा होने से राजकोषिय घाटा चिंताजनक स्तर पर है। वर्तमान में भारत सरकार के लिए ये सबसे बड़ी चिंता दिखार्इ दे रही है। हालांकि शुक्रवार को रुपए में हल्की रिकवरी देखने को मिली लेकिन इसी वक्त प्रधानमंत्री आर्थिक सलाह समिति (पीएमर्इएसी) के सदस्य रतिन राॅय ने राजकोषिय घाटे को लेकर कहा है कि भारत के लिए कुछ आधारभूत परेशानियां है। ध्यान देने वाली बात ये है कि दूसरे अर्थशास्त्रियों का भी यही मानना है।


10 करोड़ लाेग बने समस्या
इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए इंटरव्यू में रतिन राॅय ने कहा कि राजकोषिय घाटे का एक सबसे बड़ा कारण भारतीय आबादी का एक छोटा हिस्सा है। ये आबादी करीब 10 करोड़ लोगों की है जो चार पहिया वाहन, उच्च शिक्षा, सिविल एविएशन आैर मनोरंजन के लिए घूमने वालो में से है। इस अाबादी की आैसत खर्च सामान्य से अधिक है। हाल ही में रुपए में आर्इ कमजोरी को लेकर उन्होंने कहा कि, “भारतीय मैक्रोइकोनाॅमी में कुछ आधारभूत परेशानियां है जो हर बार वैश्विक संकट के दौरान भारत के लिए नासूर बन जाती हैं।” भारत की अमीर आबादी का कंज्प्शन डिमांड बिल्कुल अलग है। उनकी अधिकाय पसंद एेसी है जिनका भारत में उत्पादन ही नहीं होता है जैसे उच्च शिक्षा, एविएशन आैर मनोरंजन के लिए विदेशों में घूमना आदि।


सामानों के पार्ट्स आयात करने पर अधिक ध्यान दे रहा भारत
राॅय ने कहा कि मौजूदा समय में हमारा ग्रोथ पैटर्न एेसा है कि हमें भारत में बहुत सारी चाजों की जरूरत है, लेकिन हम उन्हीं सामानों का आयात करते हैं जिससे हम उन चीजों को बना सकें। इसमें इलेक्ट्राॅनिक्स अौर एयरक्राॅफ्ट जैसे सामान शामिल है। कुछ समय पहले तक कुछ एेसे सेक्टर्स थे जिनका कंज्प्शन डिमांड बहुत कम था। लेकिन आज वो सबसे महत्वपूर्ण हो गए है उदाहरण के तौर पर आप मोबार्इल फोन ही देख लीजिए। हम इन्हें भारतीय आबादी को सप्लार्इ करने में असमर्थ हैं।


राजकोषिय घाटे को कम करने के लिए बीते सप्ताह सरकार ने उठाए थे कर्इ कदम
अगर अासान भाषा में समझें तो इसका मतलब ये है कि पहले जिन उत्पादों आैर सेवाआें को व्यापार के रूप में नहीं देखा जाता था वो आज वास्तव में व्यापार बन चुके हैं। इनपर लगने वाले आयात शुल्क जरूरत से कहीं अधिक हैं। राॅय ने आगे कहा कि इसके लिए भारत को या तो आयात के दूसरे विकल्प तलाशने होंगे या फिर अपने निर्यात को बढ़ाना होगा। गौरतलब है कि पिछले सप्ताह ही सरकार ने इस विषय पर संज्ञान लेते हुए राजकोषिय घाटे को कम करने को लेकर कुछ अहम फैसले लिए थे। बताते चलें कि वित्त वर्ष 2019 के दूसरी तिमाही में राजकोषिय घाटा 2.4 फीसदी हो गया था।

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