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कहीं सूरत वाला भितरघात छत्तीसगढ़ में ना हो… इसके लिए बीजेपी – कांग्रेस ने बनाया स्पेशल टीम

दो चरण के चुनाव के बाद कांग्रेस-भाजपा भले ही अपने-अपने जीत के दांवे कर रहे हैं, लेकिन हकीकत में कुछ सीटों पर प्रत्याशियों को भितरघात का डर सता रहा है।

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Chhattisgarh Lok Sabha Election 2024: तीसरे चरण की 7 लोकसभा सीटों के लिए कांग्रेस-भाजपा अपनी पूरी ताकत लगाने की तैयारी में है। इस लिहाज से छत्तीसगढ़ में तीसरे चरण का चुनाव दिलचस्प हो सकता है। कांग्रेस-भाजपा के स्टार प्रचारकों के अलावा स्थानीय नेताओं का फोकस भी 7 सीटों पर रहेगा। दो चरण के चुनाव के बाद कांग्रेस-भाजपा भले ही अपने-अपने जीत के दांवे कर रहे हैं, लेकिन हकीकत में कुछ सीटों पर प्रत्याशियों को भितरघात का डर सता रहा है।

इससे निपटने के लिए कांग्रेस-भाजपा दोनों ने विशेष टीम बनाई है, तो भितरघात करने वालों पर नजर रख रही है और इसकी रिपोर्ट संगठन को भेज रही है। यहां कार्यकर्ताओं में पनप रहे असंतोष के बीच कांग्रेस और भाजपा जीत हासिल करने के लिए कई चुनौतियों से गुजरना होगा। हालांकि विधानसभा चुनाव में मिली ऐतिहासिक जीत के बाद प्रदेश में भाजपा कार्यकर्ताओं में ज्यादा उत्साह है।


प्रदेश में तीसरे चरण में रायपुर, दुर्ग, कोरबा, रायगढ़, सरगुजा, बिलासपुर और जांजगीर-चांपा सीट पर चुनाव होना है। इस सीटों पर कांग्रेस-भाजपा के बीच सीधे मुकाबले की िस्थति है। विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश के राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदलते रहे हैं। कांग्रेस में सबसे अधिक असंतोष उभर का सामने आया है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अनुशासन का डंडा खूब चलाया था। अब स्थिति यह है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता भाजपा का दामन थाम रहे हैं। इससे रोकने में कांग्रेस नाकाम साबित हुई है। अब कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए नेता ही परेशानी का बड़ा सबब बन गए हैं।

यहां दोनों दलों को अपनों से ज्यादा खतरा

भितरघात से कांग्रेस को नुकसान अधिक हो रहा है, लेकिन भाजपा भी इससे अछूती नहीं है। सरगुजा और कोरबा में भितरघात की आशंका जताई जा रही है। संगठन डैमेज कंट्रोल करने में जुट गया है। वहीं कांग्रेस को बिलासपुर और जांजगीर-चांपा में भितरघात का डर सता रहा है। यहां कांग्रेस ने डैमेज कंट्रोल करने के लिए लोकसभा चुनाव से पहले बिलासपुर के महापौर रामशरण यादव का निष्कासन रद्द कर दिया था।

कांग्रेस में टिकट वितरण से नाराजगी

कांग्रेस में लोकसभा चुनाव के प्रत्याशियों की घोषणा होने के बाद विरोध में स्वर सुनाई देने लगे थे। एक के बाद वरिष्ठ नेता पार्टी छोड़कर जाने लगे थे। इन्हें रोकने के लिए कांग्रेस ने संवाद और सपंर्क समिति भी बनाई थी। इसके बाद भी नेताओं का पार्टी छोड़ने का सिलसिला थाम नहीं है।


भाजपा में दलबदल से असंतोष

भाजपा में लगातार कांग्रेस नेताओं का प्रवेश हुआ। यह कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा के लिए भी थोड़ी परेशानी का कारण बन गया है। कांग्रेस से आए लोगों को महत्व मिलने से भाजपा के निष्ठावान कार्यकर्ताओं में थोड़ी मायूसी और नाराजगी है। कहीं-कहीं सोशल मीडिया में इसका असर भी दिख रहा है।



मंत्री और निगम-मंडल में नियुक्ति का इंतजार

भितरघात से बचने के लिए भाजपा शुरू से ही खास रणनीति के तहत काम कर रही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण एक मंत्री का पद खाली रहना है। वहीं दूसरी ओर आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए अभी तक निगम-मंडल के अध्यक्षों की घोषणा नहीं की गई है। इससे भाजपा नेताओं की महत्वकांक्षा बढ़ी हुई है।