मॉनिटरिंग लिस्ट से भारत को किया बाहर
अमरीका के वित्त मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी देते हुए कहा है कि भारत को सूची से इसलिए बाहर किया गया है क्योंकि मॉनिटरिंग के दौरान इस प्रोसेस को तीन भागों में बांटा गया है औऱ इसमें से भारत केवल एक प्रोसेस में ही फिट बैठता है और बाकी प्रोसेस में भारत काफी पीछे है। इसलिए भारत को इस सूची से निकालने का निर्णय लिया गया है।
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सरकार ने बेचे रिजर्व
इसका पहला पैमाना अमरीका के साथ बायलैटरल सरप्लस है। 2017 में विदेशी मुद्रा भंडार की खरीद के बाद 2018 में सरकार ने लगातार रिजर्व बेचे। इससे विदेशी मुद्रा भंडार की कुल बिक्री जीडीपी की 1.7 फीसदी पर पहुंच गई। इसमें कहा गया है कि भारत के पास आईएमएफ मेट्रिक के हिसाब से पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है।
विदेशी मुद्रा क्रय में 2018 में दर्ज की गई गिरावट
रिपोर्ट के मुताबिक भारत और स्विटजरलैंड दोनों देशों के विदेशी मुद्रा क्रय में 2018 में गिरावट दर्ज की गई थी। ट्रेजरी रिपोर्ट के 40 पेज में कहा गया है, ‘स्विटजरलैंड और भारत दोनों ही को एकतरफा दखल देने का जिम्मेदार नहीं पाया गया है। इसीलिए इन दोनों देशों को निगरानी सूची से बाहर किया जाता है।’
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2018 में भारत को पहली बार किया शामिल
आपको बता दें कि भारत को पहली बार मई 2018 में यूएस ने करंसी मॉनिटरिंग लिस्ट में शामिल किया था। इसके साथ ही चीन,जर्मनी, जापान, साउथ कोरिया और स्विट्जरलैंड को भी शामिल किया गया था। दूसरी रिपोर्ट में ट्रेजरी ने कहा है कि भारत ने सुधार किया है और अगली रिपोर्ट में करंसी मैनिपुलेशन लिस्ट से इसका नाम हटा दिया जाएगा। वर्ष 2018 के पहले छह महीने में रिजर्व बैंक द्वारा की गई शुद्ध बिक्री से जून 2018 तक की चार तिमाहियों में विदेशी मुद्रा की शुद्ध खरीद कम होकर 4 अरब डॉलर यानी सकल घरेलू उत्पाद के महज 0.2 फीसदी पर आ गई।
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( ये न्यूज एजेंसी से ली गई है। )