एक साथ मिलकर कर सकते हैं तेल उत्पादक देशों पर पलटवार
भारत आैर चीन में तेल के बड़े बाजार का फायदा उठाकर ये तेल उत्पादक देश अपनी कमार्इ काे लगातार बढ़ा रहे हैं। एेसे में यदि ये दोनों देश एक से दूसरे हाथ मिला लेते हैं तो इन तेल उत्पादक देशों पर पलटवार करना अासान हो जाएगा। इस विषय से जुड़े कुछ जानकारोें का मानना है कि इन दोनों देशों की कम्बांइंड बास्केट साइज अपने आप में इतना बड़ा है कि ये दोनों मिलकर आेपेक देशों के वर्चस्व को खत्म कर सकते हैं। इन दोनों देशों के साथ अाने से बहुआयामी फायदा देखने को मिल सकता है। एक तरफ इससे भारत-चीन के अर्थव्यवस्था को एक बड़ा बूस्ट मिलेगा वहीं दूसरी तरफ घरेलू बाजार में तेल सस्ता होने आम जनता को भी काफी राहत मिलेगी।
एशियार्इ देशों को देना पड़ता है अधिक प्रिमियम
दुनियाभर में तेल व्यापार की बात करें तो माैजूदा समय में एशिायार्इ देशों को अमरीकी आैर यूरोपीय देशों की तुलना में कच्चे तेल के लिए अधिक कीमत चुकाना पड़ता है। फिलहाल एशियार्इ देशों को प्रति बैरल 6 डाॅलर अधिक कीमत चुकाना पड़ता है। जबकि यूरोपीय देशों को इससे कम कीमत चुकानी पड़ती है। एेसे में एशियार्इ देशों से प्रिमियम हटाने को लेकर एक लंबे समय से मांग चल रही है। भारत समेत कर्इ अन्य एशियार्इ देश इसे कम करने की मांग कर रहे हैं। इनकी मांग हैं की दुनिया के सभी देशों के लिए ये नियम एक समान होना चाहिए।
दुनिया का 17 फीसदी तेल खर्च करते हैं भारत-चीन
एेसे में भारत-चीन का इस मसले पर साथ आना इन दोनों देशों के घरेलू बाजार के लिहाज से सबसे अधिक फायदा हाेगा। एक तरफ आेपेक आैर नाॅन-आेपेक संघ तेल के उत्पादक देशों में शुमार हैं वहीं भारत आैर चीन इसके सबसे बड़े कंज्यूमर्स हैं। ये दोनों देश कुल मिलाकर दुनिया का 17 फीसदी कच्चे तेल की खपत करते हैं। यदि इन दोनों देशों को रिजर्व बेस मजबूत होतो हैं तो ये देश तेल खरीदने के लिए मोल-भाव कर सकते हैं जिससे तेल उत्पादक देशों का वर्चस्व भी खत्म हो जाएगा।