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#patrikaCoronaLATEST : लॉकडाउन के चलते दो महीने की फीस वापस कर सकते हैं स्कूल, पढ़ें पूरी डिटेल्स

#patrikaCoronaLATEST : कोरोनावायरस संक्रमण के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए जहां सभी स्कूल अगले आदेश तक बंद है। ऐसे में निजी स्कूलों द्वारा उस अवधि में ली गई फीस को लेकर…

Mar 28, 2020 / 08:03 pm

Deovrat Singh

school fees

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#patrikaCoronaLATEST : कोरोनावायरस संक्रमण के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए जहां स्कूल, कॉलेज सहित पूरा देश लॉकडाउन की स्थिति में है। ऐसे में व्यापारी वर्ग, मध्य वर्ग और गरीब पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है। इस आर्थिक परिस्थितियों में स्कूल राहत की खबर दे सकते हैं। गुजरात स्टेट स्कूल मैनेजमेंट फेडरेशन दो महीने की फीस लौटाकर एक मिसाल पेश कर सकता है।
गुजरात स्टेट में फेडरेशन के तहत शहरों में कुल 3,700 से ज्यादा स्कूल रजिस्टर्ड हैं। इनमें से 70 फीसदी स्कूलों को सरकारी सहायता मिलती है। बाकी सेल्फ फाइनैंस्ड खुद पर निर्भर हैं। ये सभी स्कूल जल्द ही अभिभावकों को ये खुशखबरी दे सकते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार फेडरेशन के प्रेसिडेंट भास्कर पटेल ने बताया कि ‘जो पैरंट्स अपने बच्चों का दाखिला सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में कराते हैं, उनकी आय बहुत सीमित होती है। चूंकि दो महीने क्लास नहीं चलेंगी और स्कूल परीक्षाओं का आयोजन नहीं करेंगे तो इस पर पैसा खर्च नहीं होगा। स्कूल बंद रहने की वजह से बिजली बिल कम होगा और रखरखाव का चार्ज भी कम होगा। स्कूल के पास स्टाफ का वेतन देने के लिए फंड्स है। इसलिए हमने अप्रैल और मई की फीस लौटाने का प्रस्ताव रखा है।’ पटेल उस्मानपुरा स्थित अरोमा स्कूल के ट्रस्टी हैं। सेल्फ फाइनैंस्ड स्कूलों की फीस हजारों में होती है जबकि सहायता प्राप्त स्कूलों की फीस कम होती है।
शिक्षाविद किरित जोशी ने कहा, ‘यह अच्छा विचार है लेकिन हम सिर्फ ऊपरी खर्च ही बचा पाएंगे। स्कूलों को बंद रहने की स्थिति में भी टीचर्स और स्टाफ की सैलरी देनी पड़ेगी। मेरे ख्याल से काफी फीस वसूलने वाले सेल्फ फाइनैंस्ड स्कूलों के पैरंट्स को फीस को दान कर देना चाहिए ताकि वायरस के खिलाफ लड़ाई मजबूती से लड़ी जा सके। उनके लिए दो महीने की फीस कुछ मायने नहीं रखती है।’
एक स्कूल के ट्रस्टी ने बताया कि कोई भी ऐलान करने से पहले इस आइडिया पर अहमदाबाद स्कूल मैनेजमेंट कमिटी के साथ चर्चा करना होगा। उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘हमारे स्कूल में करीब 15,00 से 1,600 छात्र पढ़ते हैं जो लोअर मिड्ल क्लास और गरीब वर्ग से हैं। हमारी फीस 500 रुपये महीने है। अगर हम पैरंट्स को एक हजार रुपये वापस दे देंगे तो इससे उनको काफी मदद मिलेगी। लेकिन कोई भी फैसला लेने से पहले हमें इसके सारे पहलुओं पर गौर करना होगा।’
वहीं ज्यादातर पैरंट्स की फीस वापस लेने में दिलचस्पी नहीं है। उनका मानना है कि स्कूल उनको फीस लौटाने की बजाय बच्चों के सिलेबस पूरा करने पर ध्यान दे। उनका कहना है कि बच्चों की पढ़ाई पर असर नहीं पड़ना चाहिए। कुछ पैरंट्स का कहना है कि ऐसे समय में हमें स्कूल के साथ खड़े रहना चाहिए।

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