गौर करें तो पंजाब में सत्ता पारंपरिक रूप से शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस के बीच ही बदलती रही है। यहाँ विकल्प के तौर कोई अन्य पार्टी पंजाब की जनता को नहीं पसंद आई परंतु आम आदमी पार्टी ने यहाँ बदलाव के मुद्दे पर जोर दिया। जमीनी स्तर पर पंजाब की जनता के बीच पकड़ बनाना शुरू किया। धीरे-धीरे राज्य में कैप्टन अमरिन्दर सिंह के नेतृत्व वाली सरकार पर बादल के खिलाफ आरोपों में नरमी के कारण अकालियों के साथ गठजोड़ करने का आरोप लगाया गया था। इससे जनता के बीच ये धारणा बनी कि कांग्रेस और अकाली एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
इस बार पूरे पंजाब, खासकर मालवा के लोगों ने बदलाव के पक्ष में वोट किया। केजरीवाल ने इस बात पर जोर दिया कि 70 सालों तक अकाली दल और कांग्रेस को मौका दिया एक अवसर आम आदमी पार्टी को भी दें। आप का नारा भी यही था, “इस बार खावेंगे धोखा, भगवंत मान ते केजरीवाल नू देवांगे मौका (हम इस बार मूर्ख नहीं बनेंगे, भगवंत मान और केजरीवाल को मौका देंगे)”, ये नारा पूरे राज्य में गूंज उठा क्योंकि लोग कांग्रेस और अकाली दल से तंग आ चुके थे।
आम आदमी पार्टी संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने दिल्ली शासन मॉडल के जरिए पंजाब की जनता को लुभाने में सफल रहे। दिल्ली मॉडल के चार स्तंभों – सस्ती दरों पर गुणवत्तापूर्ण सरकारी शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी के कारण AAP मतदाताओं के साथ जुडने में सफल रही। राज्य में बिजली की ऊंची दरों से जनता परेशान थी, पानी की समस्या के अलावा स्वास्थ्य और शिक्षा की समस्या भी काफी अहम साबित हुई है आम आदमी पार्टी के लिए।
3. महिलाओं और युवाओं का समर्थन
आम आदमी पार्टी को उन युवा और महिला मतदाताओं का समर्थन मिला जिन्होंने एक नई पार्टी और ‘आम आदमी’ को अवसर देने का विकल्प चुना। राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने का केजरीवाल ने युवाओं के साथ “व्यवस्था को बदलने” और एक नए शासन को लाने का का वादा किया जो शिक्षा और रोजगार को बढ़ावा देगा। इसी तरह, राज्य में महिलाओं के खातों में प्रति माह 1,000 रुपये की राशि जमा करने के AAP का वादा भी काम कर रहा। हालांकि, कई लोगों का मानना था कि ऐसे लोकलुभावन वादे आमतौर पर तोड़े जाने के लिए किए जाते हैं, लेकिन तथ्य यह है कि आम आदमी पार्टी ने महिलाओं को एक अलग वोट बैंक के रूप में आकर्षित किया और यहाँ पितृसत्तात्मक राग को पीछे छोड़ दिया।
भगवंत मान की मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषणा से पार्टी को बाहरी टैग से छुटकारा पाने में मदद मिला। ये वो टैग था जो अकाली दल और कांग्रेस द्वारा आम आदमी पार्टी को दिया गया था। अपने राजनीतिक और सामाजिक व्यंग्य से कई पंजाबियों के दिल में जगह बनाने वाले लोकप्रिय कॉमेडियन भगवंत मान की छवि पारंपरिक राजनेता के विपरीत है। उनकी इस छवि ने उनकी जीत में अहम भूमिका निभाई। जब भगवंत मान का जमीन से जुड़ाव ही आम आदमी पार्टी की जीत में अहम भूमिका निभाने में सफल रहा।
5. कृषि आंदोलन और मालवा
आम आदमी पार्टी को कृषि आंदोलन का भी लाभ मिला है। एक साल तक चले कृषि आंदोलन ने केंद्र सरकार को तीनों कानूनों को वापस लेने के लिए विवश किया। कांग्रेस, अकाली दल और भाजपा तीनों पार्टियों के रुख से ही किसान खुश नहीं थे। ये निराशा आम आदमी पार्टी के लिए आशा की किरण बनी। 69 विधानसभा सीटों के साथ मालवा क्षेत्र में सबसे बड़े संघ बीकेयू (उगराहन) के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उगराहं का वो बयान जिसमें उन्होंने कहा कि इसने एक सवाल करने वाले मतदाता को जन्म दिया है, जिन्होंने नेताओं से पूछना शुरू कर दिया कि वो आजादी के 70 साल बाद भी वे गलियों और नालों से आगे क्यों नहीं देख पाए। आम जनता को AAP के पास इन सवालों का जवाब नजर आया और शायद ये एक वजह रही कि पंजाब की जनता ने आम आदमी पार्टी को एक अवसर दिया।
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