ममता दीदी जीतंी तो पश्चिम बंगाल की सत्ता संभालने के साथ दिल्ली में भी विपक्षी राजनीति का नया केंद्र बनकर उभरेंगी। अंतर्कलह से जूझ रही कांग्रेस भले मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में रहे, लेकिन गैर-कांग्रेसी विपक्ष की राजनीति ममता बनर्जी के इर्द-गिर्द घूमती नजर आएगी।
भाजपा से अकेले मोर्चा लेकर ममता ने मतदाताओं का भरोसा जीता तो किसान आंदोलन की धार फिर तेज हो सकती है। कोरोना की दूसरी लहर से निपटने में केंद्र सरकार की विफलता की आवाज और मुखर होने के पूरे आसार हैं। इस सूरत में ममता दीदी के नेतृत्व में भाजपा को टक्कर देने के लिए विपक्षी दलों के मोर्चे की संभावना भी बनती है। भाजपा के साथ रहे कुछ दल भी इस मोर्चे के साथ जुड़ सकते है। इसके विपरीत अगर भाजपा पश्चिम बंगाल के किले में सेंध लगाने में सफल हो जाती है तो यह नरेंद्र मोदी – अमित शाह की सफलता को नए शिखर पर पहुंचाने वाला होगा। केंद्र की राजनीति में भाजपा को नई ऑक्सीजन तो मिलेगी ही, साथ ही यूपी समेत अन्य राज्यों में होने वाले चुनाव में उसके लिए संभावनाएं मजबूत होंगी।
नए समीकरणों की संभावना-
पश्चिम बंगाल के नतीजे शिवसेना, अकाली दल, वाइएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल और टीआरएस जैसे दलों के लिए चुनावी गठजोड़ के नए अवसर खोलने वाले होंगे। दिल्ली के साथ राज्यों की राजनीति में नए समीकरणों के बनने-बिगडऩे की संभावनाएं तेज होंगी।