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रिश्तों की सियासत: एक ऐसा लोकसभा क्षेत्र, जिसमें माता-पिता व बेटी सभी सांसद बने

कहीं पर माता-पिता व बेटी जीते हैं, कहीं पर माता-पिता व बेटा भी जीते हैं। मां-बेटे व मां-बेटी भी चुनाव लडकऱ लोकसभा तक पहुंचे। दादा-पोती तक संसद पहुंचे हैं।

जयपुरApr 23, 2024 / 11:21 am

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-कहीं बाप बेटे तो कहीं मां-बेटे बने सांसद, पति-पत्नी को भी मिला यह मौका
राजेश दीक्षित

जयपुर। इन दिनों राजस्थान में भी लोकसभा चुनाव चल रहे हैं। पहला चरण पूरा हो गया है। दूसरे चरण के लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव प्रचार चरम पर है। चुनावों की बात करें तो कुछ लोकसभा क्षेत्र तो ऐसे भी हैं,जहां एक ही परिवार के कई सदस्यों ने ही सांसद के चुनाव जीते हैं। कहीं पर माता-पिता व बेटी जीते हैं, कहीं पर माता-पिता व बेटा भी जीते हैं। मां-बेटे व मां-बेटी भी चुनाव लडकऱ लोकसभा तक पहुंचे। दादा-पोती तक संसद पहुंचे हैं।
माता-पिता-बेटी
जोधपुर लोकसभा क्षेत्र में ऐसा देखने को मिलता है। यहां सबसे पहले हनुमंत सिंह ने चुनाव लड़ा था। वे वर्ष 1951 में चुनाव जीते थे। इसके बाद इनकी पत्नी कृष्णा कुमारी ने वर्ष 1971 में चुनाव जीता। इन दोनों की बेटी चन्द्रेश कुमारी भी सांसद बनी। इन्होंने भी इसी सीट से वर्ष 2009 का चुनाव जीता था।
माता-पिता-बेटा
यह पायलट परिवार में देखने को मिलता है। सबसे पहले राजेश पायलट ने राजस्थान में अपनी राजनीतिक पहचान बनाई। राजेश पायलट ने 80 के दशक में राजस्थान की राजनीति में कदम रखा। इन्होंने सबसे पहले वर्ष 1980 में भरतपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीते। इसके बाद इंदिरा लहर में 1984 में दौसा लोकसभा क्षेत्र से मैदान में उतरे और जीत गए। वर्ष 1989 में चुनाव मैदान में उतरे थे। लेकिन जनता दल और भाजपा के गठबंधन के कारण ये हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद वे वर्ष 1991, 1996, 1998 और 1999 में चुनाव लड़े और जीते। इस तरह पायलट ने राजस्थान में छह चुनाव जीते। इनकी मौत के इनकी पत्नी रमा पायलट ने वर्ष 2000 में उपचुनाव जीता। इनके बेटे राजेश पायलट दौसा व अजमेर सीट से सांसद बन चुके हैं।
मां-बेटा
मां-बेटा सांसद बनने के मामले राजस्थान में दो जगह देखने को मिलते हैं। पहला है पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे और उनके पुत्र दुष्यंत सिंह। वसुन्धरा राजे झालावाड़ सीट से पांच बार सांसद रह चुकी हैं। वे वर्ष 1989 से 1999 तक सांसद रही। इसके बाद लोकसभा सीट की राजनीतिक विरासत बेटे को दे दी। वे वर्ष 2004 से लगातार सांसद हैं। ये चार बार जीत चुके हैं। इनके बेटे दुष्यंत सिंह इस बार पांचवी बार झालावाड़ सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसा ही अलवर लोकसभा क्षेत्र में देखने को मिला है। यहां महेन्द्र कुमारी वर्ष 1991 सांसद रही हैं तो इनके बेटे भंवर जितेन्द्र सिंह भी वर्ष 2009 में लोकसभा तक पहुंचे हैं। यहां रोचक बात यह भी है कि मां भाजपा से सांसद रही तो इनके बेटे कांग्रेस से सांसद बने थे।
पिता-पुत्र
पिता-पुत्र के सांसद बनने के भी दो मामले देखने को मिलते हैं। पहला बाड़मेर क्षेत्र से आने वाले मानवेन्द्र सिंह वर्ष 2009 में सांसद रह चुके हैं। इनके पिता जसवंत सिंह जसोल लम्बे समय तक राजनीति में रहे। वे रक्षामंत्री भी बने। इसी तरह चूरू लोकसभा क्षेत्र से वर्तमान कांग्रेस प्रत्याशी राहुल कस्वां खुद दो बार सांसद रहे हैं। इनके पिता रामसिंह कस्वां इसी सीट से तीन बार भाजपा से सांसद रहे थे।
दादा-पोती
नागौर लोकसभा सीट से वर्तमान भाजपा प्रत्याशी ज्योति मिर्धा एक बार सांसद रही हैं। वहीं इनके दादा नाथूराम मिर्धा लम्बे समय तक लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया है।

दादी-पोती
दिया कुमारी राजसमंद सीट से वर्ष 2019 में सांसद रही थी। इनकी दादी गायत्री देवी जयपुर लोकसभा सीट से तीन बार सांसद वर्ष 1962 से 1971 तक रही हैं।
भाई-भाई
-हरीश मीणा इस समय लोकसभा प्रत्याशी है। ये पूर्व में दौसा के सांसद रह चुके हैं। इनके भाई नमोनारायण मीणा भी संासद रहे हैं।

पति-पत्नी
-विश्वेन्द्र सिंह तीन बार भरतपुर लोकसभा सीट से सांसद रह चुके हैं। ये वर्ष 1989 में जनता दल के टिकट से सबसे पहले सांसद बने थे। इसके बाद वर्ष 1999 व 2004 में भाजपा से सांसद बने। इनकी पत्नी दिव्या सिंह भी 1996 में सांसद रही हैं।

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