scriptसहारनपुर में रोजी-रोटी का संकट: समस्याएं जस की तस, ध्रुवीकरण का कितना असर? क्या वाकई बन गया स्मार्ट सिटी? | Saharanpur job crisis Problems as it is, effect of polarization | Patrika News
चुनाव

सहारनपुर में रोजी-रोटी का संकट: समस्याएं जस की तस, ध्रुवीकरण का कितना असर? क्या वाकई बन गया स्मार्ट सिटी?

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 का आगाज़ हो चुका है। सभी पार्टियां अपनी अपनी तैयारियों में लगी हुई हैं। ऐसे में पत्रिका डॉट कॉम ने सहारनपुर में जाकर समझा लोगों का दर्द और क्या चाहती है जनता। या कितना होगा ध्रुवीकरण का असर?

Nov 25, 2021 / 03:11 pm

Dinesh Mishra

Saharanpur File Photo
पत्रिका न्यूज़ नेटवर्क
सहारनपुर. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 का आगाज हो चुका है। ऐसे में पत्रिका ने ग्राउंड ज़ीरो पर जाकर समझा जनता का दर्द और कितना हुआ विकास? पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रमुख शहर और जिला है सहारनपुर। यह उत्तराखंड और हरियाणा से सटे होने के साथ अपनी खास भौगोलिक स्थिति के कारण प्रमुख व्यापारिक केंद्र भी है। यहां की काष्ठ कला विश्व प्रसिद्ध है। सुंदर नक्काशी वाली लकडिय़ां विदेशों में, खासतौर पर अमरीका, लंदन, सिंगापुर जैसे देशों को सप्लाई होती हैं।
विधानसभा चुनाव नजदीक आने पर सहारनपुर में भी सियासी पारा चढ़ा हुआ है। शहर से कस्बों और गांवों तक लोग राजनीतिक दलों और नेताओं का भविष्य अपनी-अपनी समझ और आंकड़ों से तय करते मिलते हैं। लोगों की बातों से पता चलता है कि यहां स्थानीय समस्याओं पर धार्मिक और जातीय ध्रुवीकरण हावी है। मेरठ, मुजफ्फरनगर की तरह सहारनपुर में भी कानून-व्यवस्था बेहतर होने की बात लोगों ने कही। लेकिन, शहर में समस्याओं के अंबार की तरफ भी लोगों ने इशारा किया।
बिना डर के व्यापार करते हैं, लेकिन अधिकारियों ने योजनाओं का मज़ाक बनाकर रखा
सहारनपुर शहर के मुख्य बाजार नेहरू मार्केट के व्यापारी राजकुमार बताते हैं कि बिजली व्यवस्था सुधर गई है। अब व्यापारी देर रात तक दुकानें बिना भय के खोलते हैं। लेकिन, नगर निगम की लापरवाही से शहर में टूटी सड़कों, गंदगी आदि समस्याएं नहीं सुलझ रही हैं। जिला प्रशासन और नगर निगम कोई भी ऐसी छोटी छोटी समस्याओं को सुनने या इनका समाधान करने के लिए तैयार नहीं है।
चाय वाले से लेकर घरेलू महिला तक सब महंगाई से परेशान
घंटाघर चौराहे पर मिले चेतन ने कहा कि महंगाई बढऩे से परिवारों की बचत पर बुरा असर पड़ा है। हां, इतना जरूर है कि शहर की कानून-व्यवस्था सुधरने से संतोष है। सहारनपुर में रेलवे स्टेशन के पास चाय बेचने वाले नाजिम लॉकडाउन के बाद से रोजी-रोटी पर पड़े असर से काफी परेशान दिखे। नाजिम ने बर्तन दिखाते हुए कहा कि पहले 5 किलो दूध की चाय निकल जाती थी, अब दो किलो दूध की ही खपत हो रही है। कमाई कम हो गई और 80 रुपए किलो तो टमाटर मिल रहा। गरीब आदमी क्या करे?
जाम से पूरा शहर परेशान वादा आज भी वादा ही है
अग्रसेन पार्क पर केले बेच रहे शोभनाथ गड़रिया बहुत मुखर होकर कहते हैं कि सहारनपुर में सिर्फ हिंदू-मुस्लिम चल रहा है।
सहारनपुर घंटाघर चौराहे पर मिले रामवीर ने कहा कि सहारनपुर स्मार्ट सिटी के लिए चुना गया है। स्मार्ट सिटी बनाने के लिए कई प्रमुख सड़कें खोद दी गई हैं। काम की रफ्तार सुस्त होने से लोगों को आवागमन में दिक्कत हो रही है। सुरेंद्र ने बताया कि परिवहन निगम के दोनों बस अड्डे शहर के अंदर हैं। बसों के शहर के अंदर से गुजरने के कारण आए दिन जाम की समस्या लोग झेलते हैं। शहर से बाहर दिल्ली रोड पर बस अड्डे खुलवाने का वादा आज तक वादा ही रहा।
स्मार्ट सिटी की लिस्ट में नाम, लेकिन फिसड्डी
मुनव्वर हसन ने बताया कि शहर में पार्किंग का अभाव है। व्यापारियों और खरीदारों को दुकान के सामने गाडिय़ां लगाने की मजबूरी है, जिससे सड़कों पर चलना मुश्किल होता है। प्रदीप शर्मा ने कहा कि स्मार्ट सिटी योजना में सहारनपुर के चुने जाने से शहर की सूरत संवरने की उम्मीद बढ़ी है। अगर, शहर के चारों ओर वादे के मुताबिक मिनी रिंग रोड बन जाए तो वाहनों का सिटी से होकर गुजरना बंद हो जाए। कचरे के निस्तारण के लिए एक डंपिंग ग्राउंड की भी जरूरत है।
व्यापारी कपिल देव ने बताया कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट पर चले रहे काम के लिए सड़कों के खुदने से व्यापार पर भी असर पड़ा है। अंदर की सड़कें गड्ढों में तब्दील हो गई हैं। स्मार्ट सिटी में सड़कों को बनाने का तरीका भी स्मार्ट होना चाहिए। लेकिन स्मार्ट के नाम पर हर जगह कई सालों से सिर्फ सड़कें खोदकर रखी हुई हैं। सफाई-व्यवस्था भी ठीक नहीं है। दुकानों और भवनों के टैक्स में नगर निगम ने बेतहाशा वृद्धि की है। सहारनपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर देवबंद पड़ता है। यहां पर इस्लामिक शिक्षा का दुनिया में मशहूर केंद्र दारुल उलूम भी है।
2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा परचम लहरा चुकी है। देवबंद में मिले हसन ने कहा कि उनकी कौम के लोग इस चुनाव में एकजुट हैं। कौम का हित देखकर ही वोट करेंगे। देवबंद के ही संजीत ने कहा कि चुनावी मुद्दे कुछ भी हों, यहां ध्रुवीकरण भी हो रहा है। किसान रामवीर ने कहा कि एमएसपी पर सरकारी केंद्रों पर आम किसान फसलें नहीं बेच पाते हैं। बिचौलियों से निजात दिलाने के लिए सरकार को कुछ ठोस करना होगा। सरकार को 25 रुपए नहीं, कम से कम सौ रुपए गन्ना का रेट बढ़ाना चाहिए।

1997 में मंडल घोषित सहारनपुर में कुल सात विधानसभा क्षेत्र हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में नकुड़, देवबंद, रामपुर मनिहारन और गंगोह में भाजपा की जीत हुई थी, जबकि सहारनपुर शहर सपा, सहारनपुर देहात और बेहट पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था। वर्ष 1996 से 2012 तक विधानसभा चुनावों में सहारनपुर बसपा का गढ़ हुआ करता था, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा की सभी सीटों पर हार हुई थी।

Home / Elections / सहारनपुर में रोजी-रोटी का संकट: समस्याएं जस की तस, ध्रुवीकरण का कितना असर? क्या वाकई बन गया स्मार्ट सिटी?

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो