इस बीच बसपा ने 20 सीटों पर ऐसी सोशल इंजीनियरिंग की है कि इन मुकाबला बेहद ही दिलचस्प हो गया है। गौरतलब है कि जाट बहुल्य वाले इस इलाके में जाटव वोटों का भी अच्छा खासा दखल है। 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा की सीटें भले ही बेहद कम हो गई थी लेकिन वोट प्रतिशत में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया। 2012 में यह करीब 26 प्रतिशत था तो 2017 में यह 22.25 पर आ गया। ऐसे में दलित सीटों का स्विंग कई नेताओं की किस्मत बदलने को तैयार है।
छपरौली सीट किसानों की शपथ ने चुनावी समर को बेहद पेंचीदा बना दिया है। छपरौली टिकैत घराने की दबदबे वाली सीट का गढ़ है। यहां बगावत की ध्वनि ने हवा का रूख बदल दिया है। भाजपा ने तीनों सीटों के लिए अलग अलग रणनीति पर काम किया है। सपा गठबंधन यहां अजगर (अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत) रणनीति के साथ दंगल में है तो भाजपा ने अति पिछड़ों, वैश्य, गुर्जर और अन्य वर्गों को साधने में लगी है।
पेठों के लिए मशहूर और दलितों की राजधानी कहा जाने वाला आगरा यूं तो भगवा रंग में रंगा है। दलितों को साधने के लिए भाजपा ने पूर्व राज्यपाल बेबीरानी मौर्य को आगरा ग्रामीण से उतार दिया है। दलितों का वोट हासिल करने के लिए बसपा सुप्रीमों मायावती भी रैली कर चुकी हैं। बांह से रानी पक्षालिका ने उतरकर चुनावी समर के समीकरण को दिलचस्प बना दिया है।
अयोध्या तो झांकी है…मथुरा,काशी बाकी है के नारों से गर्माने की कोशिश की बीच मथुरा का रंग बहुत नहीं बदला है। आठ बार से विधायक श्याम सुंदर शर्मा मांठ से तो मंत्री श्रीकांत शर्मा का मथुरा से मैदान में हैं।पांचों सीटों पर भाजपा, बसपा और गठबंधन का मुकाबला है।
तालों और तकरीरों के लिए मशहूर अलीगढ़ राजा महेंद्र प्रताप सिंह के विरासत के रूप में तब्दील होने के लिए बेचैन है। मुस्लिमों के गढ़ अलीगढ़ में बसपा ने रजिया खान को टिकट देकर सपा गठबंधन के जफर अलाम को टक्कर देने की कोशिश की है। भाजपा ने यहां मुक्ताराज को उतारा है। अतरौली से कल्याण सिंह की विरासत संभाल रहे मंत्री संदीप सिंह की भी परीक्षा है। अतरौली को छोड़ छह सीटों पर मुकाबला गठबंधन और बसपा के बीच दिख रहा है। भाजपा अन्य पर स्थिति त्रिकोणीय बना रही है।