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पिता-बेटी के अनूठे रिश्ते की डोर को पेश करती ‘पीक’ छू जाएगी दिलों को

एक जमाना था जब हृषिकेश मुखर्जी की फिल्में आते ही पूरा परिवार एक साथ बैठकर उस फिल्म को शुरू से आखिर तक देखता था और कुछ ऐसा ही जादू लेकर आए हैं निर्देशक शूजित सरकार।

May 08, 2015 / 05:44 pm

एक जमाना था जब हृषिकेश मुखर्जी की फिल्में आते ही पूरा परिवार एक साथ बैठकर उस फिल्म को शुरू से आखिर तक देखता था और कुछ ऐसा ही जादू लेकर आए हैं निर्देशक शूजित सरकार। ये फिल्म पिता बेटी के बीच के अनूठे रिश्ते को पेश करती है। एक ऐसी बेटी जो अपने पिती के लिए कुछ भी कर जाने को तैयार हो। फिल्म दिल में घर कर जाने वाली है।
पहले विकी डोनर के द्वारा अनोखा संदेश दिया और एक बार फिर से लेखिका जूही चतुर्वेदी के साथ ही फिल्म ‘पीकू’ का निर्माण किया है।

कहानी
‘पीकू’ (दीपिका पादुकोण ) एक कामकाजी लड़की है, जो अपने 70 साल के बाबा भास्कर (अमिताभ बच्चन) के साथ दिल्ली के चितरंजन पार्क में रहती है, बाबा की देखभाल के साथ-साथ अपना काम करते हुए पूरी जिंदगी बाबा के आस पास न्यौछावर कर चुकी है। बाबा, जिन्हें पेट से जुड़ी कुछ समस्या है और इसी समस्या की चर्चा हर जगह होती रहती है। उसी बीच हिमाचल टैक्सी स्टैंड के मालिक राजा चौधरी (इरफान खान) का इस बनर्जी फैमिली में आगमन होता है और फिर शुरू हो जाती है दिल्ली से कोलकाता की यात्रा और कोलकाता में जाकर इस फिल्म की समाप्ति हो जाती है।

निर्देशन

शूजीत सरकार बहुत खूबसूरती से सभी चरित्रों को दृश्यों में मनमानी करने देते हैं। हर दृश्य में चरित्रों के बीच अद्भुत सामंजस्य दिखता है। नाटकीयता हावी नहीं होती। हिंदी फिल्मों में घर इतने भव्य और डिजाइनदार होते हैं कि नकली होने के साथ सेट का एहसास देते हैं। फिल्म के आर्ट डायरेक्ट और कॉस्ट्यूम डिजायनर ने कहानी के अनुरूप परिवेश और वेशभूषा पर ध्यान दिया है। डायरेक्टर शूजित सरकार की ये फिल्म भी विकी डोनर जैसा फ्लेवर देती है, लेकिन अलग तरह से जूही चतुर्वेदी की पटकथा और संवाद इतने बेहतरीन हैं कि फिल्म के किरदार जब भी स्क्रीन पर आते हैं, बस देखते ही रहने का मन करने लगता है। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने एक बार फिर से यह बता दिया कि उन्हें लिविंग लीजेंड क्यों कहते हैं। 70 साल के बंगाली किरदार को बच्चन साहब ने जीवंत कर दिया है। एक-एक संवाद सुनकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता की वो पात्र पूरी तरह से बंगाली नहीं है। चाहे वो ‘जोंजाल’ हो या ‘डिस्कास’, अमिताभ ने हरेक फ्रेम को सजीव बनाने में कोई कसार नहीं छोड़ी है।


अभिनय


शूजीत सरकार को हिंदी फिल्मों में सक्रिय उच्च कोटि के तीन कलाकार मिले हैं। अमिताभ बच्चन को हम ने इस रूप में कभी नहीं देखा है। इरफान खान ने अपनी अभिनय की कला का प्रदर्शन किया है, जिसमें एक आशिक के साथ-साथ संजीदा इंसान छुपा हुआ है और वो आपको कार के भीतर और बाहर दोनों तरफ मुस्कुराने पर मजबूर कर देता है। कभी-कभी तो ठहाकों को रोक पाना मुश्किल हो जाता है। दीपिका पादुकोण ने यह साबित कर दिया कि उन्हें क्यों उच्च श्रेणी की अदाकारा कहा जाता है.

पहले फ्रेम से आखिर तक दीपिका ने हरेक सीन को इतने बखूबी तरीके से निभाया है कि आपको वो अपने आस-पास की करीबी दोस्त लगने लगती है. हर फिल्म के साथ दीपिका का रुतबा बढ़ता जा रहा है। इस फिल्म में भी उनकी एक्टिंग सराहनीय है।

फिल्म में डॉक्टर के रूप में रघुबीर यादव और मौसी के किरदार में मौशमी चटर्जी ने चार चांद लगा दिए हैं। छोटे-छोटे वाकयों को बहुत ही उच्च तरीके से शूजित ने सजाया है। हमेशा की तरह महानायक अमिताभ के अभिनय की सराहना करनी पड़ेगी। एक बार फिर से वह अपनी बेमिशाल एकि्टग करके सब पर भारी पड़ते नजर आए हैं।


देखें कि नहीं

आपको इस फिल्म में दिल्ली, कोलकाता और वाराणसी का बहुत फ्लेवर मिलेगा। इस फिल्म को आप किसी भी कीमत पर मिस नहीं करेंगे, क्योंकि कई वर्षों बाद ऐसी फिल्म बनी है, जिसे आप चाहते ही नहीं हैं कि कभी वो खत्म हो, बस चलती जाए। यह फिल्म सिर्फ उन लोगों के लिए नहीं है जो मारधाड़ वाली फिल्म को अधिक पसंद करते हैं।

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