इटावा जिला जेल के अधीक्षक राजकिशोर सिंह ने बताया कि डिप्टी जेलर एस.एच.जाफरी जेल से साढ़े 9 बजे अपने आवास पर पहुंचे थे । 10 बजकर 45 मिनट पर जाफरी के मेन गेट नॉक किया गया । जब जाफरी ने घर के अंदर से आवाज दी कि नहीं कौन है तो बाहर से जयहिन्द सर की आवाज लगाई गई । ऐसा प्रतीत हुआ कि आवाज लगाने वाले दो शख्स हैं। जिससे जाफरी ने एहसास किया कि निश्चित आवाज देने वाली जेल कर्मी है जिस पर उन्होंने तत्काल तौर पर गेट खोल दिया । गेट खोलने पर देखा कि एक शख्स मुंह ढके हुए है और एक चेहरा खोले हुआ है। जाफरी कुछ समझ पाते तब तक मुंह ढके हुए शख्स ने तमंचा निकालकर गोली चला दी लेकिन तमंचा मिस हो गया । इसके बाद दोनों ने जाफरी पर बट से प्रहार कर दिया और गला दबा कर मौत का घाट उतारने का प्रयास किया। किसी तरह जाफरी बच करके भागे और अपनी सरकारी पिस्टल को मुकाबले के लिए लेकर आये। तब तक दोनों शख्स मौके वारदात से फरार हो चुके थे। दोनों बदमाशों के हमले से जाफरी के सिर पर शरीर पर कई स्थान पर भीतर चोटे आई हुई है। जाफरी के डायनिंग हाल मे रखी मेज का शीशा भी टूट गया है ।
जाफरी में अपने साथ हुए हादसे की जानकारी तत्कालिक तौर पर जेल परिसर में उपस्थित सभी जेल अधिकारियों और कर्मियों को दी तो मौके पर जेल अधीक्षक राज किशोर सिंह , डिप्टी जेलर जगदीश प्रसाद और डिप्टी जेलर राम कुबेर सिंह समेत कई जेल कर्मी मौके पर आ गए।
अज्ञात बदमाशों के हमले के शिकार होने से बाल-बाल बचे डिप्टी जेलर जाफरी ने बताया कि इस हमले का शक मैनपुरी के कुख्यात अपराधी विश्राम सिंह यादव पर जाता हुआ नजर आ रहा है क्योंकि 20 दिन पहले ही विश्राम सिंह यादव इटावा की जिला जेल से छूटा है जिसने जेल परिसर में कैदी के दरम्यान इस बात की धमकी दी थी कि जेल से छूटने के बाद उसे मौत के घाट उतारेगा । उन्होंने बताया कि इस बात की संभावना से कतई इंकार नहीं किया जा सकता है कि हमला करने वाले लोग विश्राम सिंह यादव के ही करीबी रहे होंगे।
जाफरी पर हमले की सूचना के बाद सिविल लाइन थाना प्रभारी मदन गोपाल गुप्ता मौके पर पुलिस दल के साथ पहुंच गए हैं । जो पूरे मामले को जनता से पड़ताल करने में जुटे हुए हैं लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि जिला जेल परिसर में जहॉ कड़ी सुरक्षा के बीच में कैदियों को रखा जाता है वहीं पर डिप्टी जेलर जेल अधीक्षक जैसे प्रमुख अधिकारियों का आवास भी है और ऐसे में कोई अनजान शख्स आकर के हमले जैसी वारदात को अंजाम देकर के बड़ी आसानी से फरार हो जाए । इसमें कहीं ना कहीं संदेह बात का लग रहा है कि जेल कर्मियों की मिलीभगत भी अपराधियों से हो सकती है । बताते चले कि साल 2003 में मथुरा में तैनाती के दौरान भी जाफरी पर इसी तरीके का हमला हो चुका है जिसमें वह बाल-बाल बच चुके है।