35-37 वर्ष पहले इटावा के यादव बाहुल्य गांवों में फाग जमकर होती थी। बूढ़े-बड़ों और युवाओं में इसके प्रति न केवल लगाव था, बल्कि होली आने से पहले खेतों पर काम करते, हल चलाते और बुआई-कटाई करते समय फाग गाने की प्रैक्टिस करते थे। मुलायम सिंह यादव भी युवा अवस्था से ही फाग गायन के शौकीन रहे हैं। उनके गांव सैफई में फाग की जो टोलियां उठती थीं, उनमें वह शरीक होते थे। अपने हमसंगी सैफई गांव के प्रधान दर्शन सिंह यादव के साथ मुलायम सिंह यादव फाग गाते थे। फाग विशेष तौर से इटावा, मैनपुरी, एटा, फिरोजाबाद, आगरा, मथुरा आदि जनपदों में होता है। फाग को भुला न दिया जाये, इसके लिए मुलायम सिंह यादव हर वर्ष सैफई महोत्सव में दो दिन तक फाग गायन का मुकाबला करवाते थे, लेकिन पिछले सालों से परिवारिक विवाद के कारण सैफई महोत्सव का आयोजन नहीं हो सका है।
साल 2009 मे संसदीय चुनाव के दौरान भी मुलायम की होली पर चुनाव आयोग की छाया पड़ी थी। उस समय मुलायम सिंह यादव मैनपुरी संसदीय सीट से सपा प्रत्याशी थे और उनके सामने ही वहां पर फाग गायकों को पैसे बांटे जा रहे थे। आयोग की नोटिस मिलने के बाद इसे आचार संहिता के दायरे में नहीं माना गया था।
40-45 वर्षों से होली का लुत्फ उठाते हैं रामगोपाल यादव
मुलायम सिंह यादव के भाई रामगोपाल यादव भी ऐसे ही राजनेताओं में से एक हैं, जो पिछले 40-45 सालों से अपने गांव सैफई में होली का लुत्फ उठाने के अलावा फाग गाने में अपने आप को सबसे आगे रखते हैं। रामगोपाल यादव होली पर्व को बेहद ही महत्वपूर्ण मानते हैं। उनका कहना है कि इस देश में और खासकर उत्तर भारत में होली सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। क्योंकि यह ऐसा अवसर होता है जब फसल किसान के घर आती है। उसकी सारी उम्मीदें उस पर होती हैं। इसमें इतना उल्लास होता है, इसके पीछे एक थ्योरी होती है कि होली के अवसर पर व्यक्ति पिछली सारी लड़ाइयों-झगड़ों को भूल कर गले मिलते हैं। फॉरगिवेन फॉर गेट….मॉफ करो और भूल जाओ। इस सिद्धांत के आधार पर ही लोग काम करते हैं। इस दृष्टि से यह बहुत ही प्रेरणादाई त्यौहार तो है ही, लोगों के बीच में समन्वय बनाने और समरसता बनाने का भी एक त्यौहार है।
होली पर फाग गाते हुए रामगोपाल यादव को करीब 40-45 साल हो गये हैं। फाग तो हमेशा से गा रहे हैं। होली पर घर-घर जाकर फाग गाया जाता था और अब भी गाया जाता है।