बड़ी से बड़ी समस्या दूर कर देंगे महावीर हनुमान, एक बार करके देखें इस स्तुति का पाठ
उड़िसा की रथयात्रा देश और दुनिया में प्रसिद्ध है, पुरी के जगन्नाथ जी की रथ यात्रा के बाहरी व आंतरिक कारण अलग-अलग मिलते हैं। इस रथयात्रा के बाहरी कारण के बारे में ब्रह्माण्ड पुराण में उल्लेख आता है कि- “रथे चागमनं दृष्ट्वा पुनर्जन्म न विद्यते” अर्थात्- जो भी मनुष्य रथ के ऊपर बैठे हुए भगवान श्री जगन्नाथ जी का दर्शन करता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता और उसकी सभी इच्छित कामनाएं भी पूरी हो जाती है।
वैसे भी भगवान जगन्नाथ तो किसी व्यक्ति विशेष या जाति विशेष के नहीं है, वे तो जगत के नाथ है। इसलिए जगतवासियों के कल्याणार्थ उन्हें दर्शन देने के लिये, जन्म-मृत्यु रूपी बंधनों से मुक्ति दिलाने के लिए, श्री भगवान रथ में बैठकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं, जो भी श्रद्धाभाव से उनके दर्शन कर उन्हें नमन करते हैं उनका मनुष्य जीवन सफल हो जाता है।
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जगन्नाथ रथयात्रा के बारे में प्रभास खण्ड ग्रन्थ एवं अन्य पुराणों में भी बहुत कुछ उल्लेख मिलता है। ऐसी कथा आती है कि वर्षों बाद कुरुक्षेत्र में जब ब्रजवासियों की भगवान श्रीकृष्ण से भेंट हुई तो वे भगवान को वृन्दावन ले जाने की जिद करने लगे। यहां तक कि ब्रज की गोपियों ने श्री कृष्ण के रथ को खींचकर वृन्दावन की ओर ले जाने लगीं, पुराणों के आधार पर रथयात्रा भगवान गोपीनाथ जी (श्रीकृष्ण) की मधुर-रस वाली एक विशिष्ट लीला मानी जाती है।
rath yatra puri : मनोकामना पूर्ति श्री जगन्नाथ स्तोत्र
हर साल, अषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को उड़ीसा की जगन्नाथ पुरी में विशाल रथ-यात्रा का आयोजन होता हैं जिसमें हजारों नहीं, बल्कि लाखों श्रद्धालु भक्त भाग लेते हैं। चमकदार दर्पणों, चामरों, छत्रों, झण्डों व रेशमी वस्त्रों से सुसज्जीत, लगभग 50 फुट ऊंचे भगवान जगन्नाथ जी, बलदेव जी, व सुभद्रा जी के रथ अपने आप में अद्भुत एवं मनमोहक लगते हैं।
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