17 अक्टूबर 2020,शनिवार से शुरु हो रही हैं। नवरात्र में 9 दिनों तक व्रत रखने वाले देवी माँ के भक्तों को इस मंत्र के साथ पूजा का संकल्प करना चाहिए:
आश्विनशुक्लप्रतिपदे अमुकवासरे प्रारभमाणे नवरात्रपर्वणि एतासु नवतिथिषु
अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ं पालयन् अमुकगोत्रः
अमुकनामाहं भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये। खास बात: ध्यान रखें, मंत्र का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए। इस मंत्र में कई जगह अमुक शब्द आया है। जैसे- अमुकनामसम्वत्सरे, यहाँ पर आप अमुक की जगह संवत्सर का नाम उच्चारित करेंगे। यदि संवत्सर का नाम सौम्य है तो इसका उच्चारण सौम्यनामसम्वत्सरे होगा। ठीक ऐसे ही अमुकवासरे में उस दिन का नाम, अमुकगोत्रः में अपने गोत्र का नाम और अमुकनामाहं में अपना नाम उच्चारित करें।
अमुकनामसम्वत्सरे आश्विनशुक्लप्रतिपदे अमुकवासरे प्रारभमाणे नवरात्रपर्वणि सप्तम्यां तिथौ
अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ं पालयन्
अमुकगोत्रः अमुकनामाहं भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये। ऐसे ही अष्टमी तिथि के लिए सप्तम्यां की जगह अष्टम्यां का उच्चारण होगा।
यदि नवरात्रि के दौरान षोडशोपचार पूजा करना हो तो नीचे दिए गए मंत्र से प्रतिदिन पूजा का संकल्प करें: ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्राह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुकनामसम्वत्सरे
आश्विनशुक्लप्रतिपदे अमुकवासरे नवरात्रपर्वणि अखिलपापक्षयपूर्वकश्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये अमुकगोत्रः
अमुकनामाहं भगवत्याः दुर्गायाः षोडशोपचार-पूजनं विधास्ये।
06:23:22 से 10:11:54 तक
अवधि :3 घंटे 48 मिनट MUST READ : शारदीय नवरात्र 2020 – इस बार अश्व पर आएंगी देवी मां, जानें इसका असर
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घटस्थापना के नियम
: दिन के एक तिहाई हिस्से से पहले घटस्थापना की प्रक्रिया संपन्न कर लेनी चाहिए
: इसके अलावा कलश स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त को सबसे उत्तम माना गया है
: घटस्थापना के लिए शुभ नक्षत्र इस प्रकार हैं: पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद, हस्त, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, मूल, श्रवण, धनिष्ठा और पुनर्वसु
घटस्थापना के लिए आवश्यक सामग्री
: सप्त धान्य (7 तरह के अनाज)
: मिट्टी का एक बर्तन जिसका मुँह चौड़ा हो
: पवित्र स्थान से लायी गयी मिट्टी
: कलश, गंगाजल (उपलब्ध न हो तो सादा जल)
: पत्ते (आम या अशोक के)
: सुपारी
: जटा वाला नारियल
: अक्षत (साबुत चावल)
: लाल वस्त्र
: पुष्प (फ़ूल)
अक्टूबर 23, 2020 को 06:58:53 से अष्टमी आरम्भ
अक्टूबर 24, 2020 को 07:01:02 पर अष्टमी समाप्त महाअष्टमी को दुर्गा पूजा का मुख्य दिन माना जाता है। महाअष्टमी पर संधि पूजा होती है। यह पूजा अष्टमी और नवमी दोनों दिन चलती है। संधि पूजा में अष्टमी समाप्त होने के अंतिम 24 मिनट और नवमी प्रारंभ होने के शुरुआती 24 मिनट के समय को संधि क्षण या काल कहते हैं। संधि काल का समय दुर्गा पूजा के लिए सबसे शुभ माना जाता है। क्योंकि यह वह समय होता है जब अष्टमी तिथि समाप्त होती है और नवमी तिथि का आरंभ होता है। मान्यता है कि, इस समय में देवी दुर्गा ने प्रकट होकर असुर चंड और मुंड का वध किया था।
2. त्रिमूर्ति
3. कल्याणी
4. रोहिणी
5. काली
6. चंडिका
7. शनभावी
8. दुर्गा
9. भद्रा या सुभद्रा
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इसके अलावा इसी दिन दुर्गा महा नवमी पूजा भी है। महानवमी दुर्गा पूजा के दिन की शुरुआत महास्नान और षोडशोपचार पूजा से होती है। महानवमी पर देवी दुर्गा की आराधना महिषासुर मर्दिनी के तौर पर की जाती है। इसका मतलब है असुर महिषासुर का नाश करने वाली। मान्यता है कि इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। इस दिन महानवमी पूजा, नवमी हवन और दुर्गा बलिदान जैसी परंपरा निभाई जाती है।
महानवमी के दिन नवमी हवन का बड़ा महत्व है। यह हवन नवमी पूजा के बाद किया जाता है। नवमी हवन को चंडी होम भी कहा जाता है। मां दुर्गा के भक्त नवमी हवन आयोजित कर देवी शक्ति से बेहतर स्वास्थ और समृद्धि की कामना करते हैं।
दुर्गा महा नवमी पूजा…
अक्टूबर 24, 2020 को 07:01:02 से नवमी आरम्भ
अक्टूबर 25, 2020 को 07:44:04 पर नवमी समाप्त
इस दिन मनाई जाती है महानवमी –
: यदि नवमी तिथि अष्टमी के दिन ही प्रारंभ हो जाती है तो नवमी पूजा और उपवास अष्टमी को ही किया जाता है।
: शास्त्रों के अनुसार यदि अष्टमी के दिन सांयकाल से पहले अष्टमी और नवमी तिथि का विलय हो जाता है, तो ऐसी स्थिति में अष्टमी पूजा, नवमी पूजा और संधि पूजा उसी दिन करने का विधान है।
विजय मुहूर्त :13:57:06 से 14:41:57 तक
अवधि :0 घंटे 44 मिनट
अपराह्न मुहूर्त :13:12:15 से 15:26:49 तक पौराणिक मान्यतानुसार यह उत्सव माता विजया के जीवन से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा कुछ लोग इस त्योहार को आयुध पूजा(शस्त्र पूजा) के रूप में मनाते हैं।
1. दशहरा पर्व अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपराह्न काल में मनाया जाता है। इस काल की अवधि सूर्योदय के बाद दसवें मुहूर्त से लेकर बारहवें मुहूर्त तक की होती।
2. यदि दशमी दो दिन हो और केवल दूसरे ही दिन अपराह्नकाल को व्याप्त करे तो विजयादशमी दूसरे दिन मनाई जाएगी।
3. यदि दशमी दो दिन के अपराह्न काल में हो तो दशहरा त्यौहार पहले दिन मनाया जाएगा।
4. यदि दशमी दोनों दिन पड़ रही है, परंतु अपराह्न काल में नहीं, उस समय में भी यह पर्व पहले दिन ही मनाया जाएगा।
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दशहरा पूजा और महोत्सव
अपराजिता पूजा अपराह्न काल में की जाती है। इस पूजा की विधि इस प्रकार है:
1. घर से पूर्वोत्तर की दिशा में कोई पवित्र और शुभ स्थान को चिन्हित करें। यह स्थान किसी मंदिर, गार्डन आदि के आस-पास भी हो सकता है। अच्छा होगा यदि घर के सभी सदस्य पूजा में शामिल हों, हालाँकि यह पूजा व्यक्तिगत भी हो सकती है।
2. उस स्थान को स्वच्छ करें और चंदन के लेप के साथ अष्टदल चक्र (आठ कमल की पंखुडियाँ) बनाएँ।
3. अब यह संकल्प लें कि देवी अपराजिता की यह पूजा आप अपने या फिर परिवार के ख़ुशहाल जीवन के लिए कर रहे हैं।
4. उसके बाद अष्टदल चक्र के मध्य में अपराजिताय नमः मंत्र के साथ माँ देवी अपराजिता का आह्वान करें।
5. अब मां जया को दायीं ओर क्रियाशक्त्यै नमः मंत्र के साथ आह्वान करे।
6. बायीं ओर मां विजया का उमायै नमः मंत्र के साथ आह्वान करें।
7. इसके उपरांत अपराजिताय नमः, जयायै नमः, और विजयायै नमः मन्त्रों के साथ शोडषोपचार पूजा करें।
8. अब प्रार्थना करें, हे देवी मां! मैनें यह पूजा अपनी क्षमता के अनुसार संपूर्ण की है। कृपया जाने से पूर्व मेरी यह पूजा स्वीकार करें।
9. पूजा संपन्न होने के बाद प्रणाम करें।
10. हारेण तु विचित्रेण भास्वत्कनकमेखला। अपराजिता भद्ररता करोतु विजयं मम। मंत्र के साथ पूजा का विसर्जन करें।
अपराजिता पूजा को विजयादशमी का महत्वपूर्ण भाग माना जाता है, हालांकि इस दिन अन्य पूजाओं का भी प्रावधान है जो इस प्रकार हैं:
1. जब सूर्यास्त होता है और आसमान में कुछ तारे दिखने लगते हैं तो यह अवधि विजय मुहूर्त कहलाती है। इस समय कोई भी पूजा या कार्य करने से अच्छा परिणाम प्राप्त होता है। कहते हैं कि भगवान श्रीराम ने दुष्ट रावण को हराने के लिए युद्ध का प्रारंभ इसी मुहुर्त में किया था। इसी समय शमी नामक पेड़ ने अर्जुन के गाण्डीव नामक धनुष का रूप लिया था।
2. दशहरे का दिन साल के सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है। यह साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है (साल का सबसे शुभ मुहूर्त – चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्विन शुक्ल दशमी, वैशाख शुक्ल तृतीया, एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (आधा मुहूर्त))। यह अवधि किसी भी चीज़ की शुरूआत करने के लिए उत्तम है। हालांकि कुछ निश्चित मुहूर्त किसी विशेष पूजा के लिए भी हो सकते हैं।
3. क्षत्रिय, योद्धा एवं सैनिक इस दिन अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं; यह पूजा आयुध/शस्त्र पूजा के रूप में भी जानी जाती है। वे इस दिन शमी पूजन भी करते हैं। पुरातन काल में राजशाही के लिए क्षत्रियों के लिए यह पूजा मुख्य मानी जाती थी।
4. ब्राह्मण इस दिन मां सरस्वती की पूजा करते हैं।
5. वैश्य अपने बहीखाते की आराधना करते हैं।
6. कई जगहों पर होने वाली नवरात्रि रामलीला का समापन भी आज के दिन होता है।
7. रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ का पुतला जलाकर भगवान राम की जीत का जश्न मनाया जाता है।
8. ऐसा विश्वास है कि मां भगवती जगदम्बा का अपराजिता स्त्रोत करना बड़ा ही पवित्र माना जाता है।
9. बंगाल में मां दुर्गा पूजा का त्यौहार भव्य रूप में मनाया जाता है।
अक्टूबर 30, 2020 को 17:47:55 से पूर्णिमा आरम्भ
अक्टूबर 31, 2020 को 20:21:07 पर पूर्णिमा समाप्त आश्विन पूर्णिमा व्रत और पूजा विधि…
शरद पूर्णिमा पर मंदिरों में विशेष सेवा-पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन होने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं-
: आराध्य देव को सुंदर वस्त्र, आभूषण पहनाएं। आवाहन, आसन, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, सुपारी और दक्षिणा आदि अर्पित कर पूजन करें।
: रात्रि के समय गाय के दूध से बनी खीर में घी और चीनी मिलाकर आधी रात के समय भगवान भोग लगाएं।
: रात्रि में चंद्रमा के आकाश के मध्य में स्थित होने पर चंद्र देव का पूजन करें तथा खीर का नेवैद्य अर्पण करें।
: रात को खीर से भरा बर्तन चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें और सबको प्रसाद के रूप में वितरित करें।
: इस दिन भगवान शिव-पार्वती और भगवान कार्तिकेय की भी पूजा होती है।