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डिफॉल्टर जैसा बर्ताव
याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट राजीव दत्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि ईएमआई पर ब्याज लगाकर बैंक अपने कस्टमर के साथ डिफॉल्टर जैसा बर्ताव करने में लगे हुए हैं। जबकि लोन ना देने की छूट आरबीआई की ओर से दी गई थी। ऐसे मुश्किल समय में बैंक अपने ग्राहक को राहत देने की जबह ब्याज पर ब्याज वसूल रहे हैं। जोकि पूरी तरह गलत है। वहीं सीआरईएआई की ओर से एडवोकेट आर्यमा सुंदरम ने कोर्ट में कहा कि यह बात सही है कि एनपीए में इजाफा होगा, लेकिन अपने ग्राहकों को राहत देते हुए कम से कम ब्याज ले।
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माफ हो ब्याज पर ब्याज
वहीं सुुप्रीम कोर्ट में सीनीयर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि बीते 6 महीने की ईएमआई पर ब्याज पूरी तरह से माफ होना चाहिए, तभी आम लोगों को राहत मिलेगी। इसके अलावा क्रेडाई की ओर से सीनीयर एडवोकेट केवी विश्वनाथन ने कोर्ट में कहा कि कोरोना वायरस की वजह से इस तरह के हालात पैदा हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट आरबीआई को आदेश दे कि वो डिजास्टर मैनेज्मेंट एक्ट के तहत काम करे।
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कल सरकार की ओर से रखा गया था पक्ष
लोन मोराटोरियम को लेकर केंद्र सरकार की ओर से भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को सोमवार को जानकारी दी थी कि लोन मोराटोरियम को 24 महीने के लिए यानी दो साल तक के लिए बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कर्ज के भुगतान पर मोराटोरियम की सुविधा को 2 साल के लिए बढ़ाई जा सकती है। सरकार ज्यादा परेशानी वाले सेक्टर्स की पहचान करने में जुटी हुई है।
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बैंकों ने 6 महीने का दिया था मोराटोरियम
कोरोना वायरस के दौर में जब करोड़ों को नौकरी चली गई और सैलरी आधी हो गई थी तो रिजर्व बैंक ने राहत देने के लिए से ईएमआई वसूलने में नरमी दिखाई थी। रिजर्व बैंक ने बैंकों से लोन मोराटोरियम देने की बात कही थी, जिसकी मियाद 31 अगस्त को खत्म हो चुकी है। इस दौरान ग्राहकों से सामान्य दर से ब्याज वसूलने की भी अनुमति बैंकों को दी गई थी। अब हो सकता है कि इस सुविधा को सीधे 2 साल के लिए बढ़ा दिया जाए।