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गोरखपुर विविः शोध पीठ खुलवाने की होड़, शोधार्थी फेलोशिप के लिए दर-ब-दर

Fellowship

गोरखपुरNov 13, 2018 / 03:55 pm

धीरेन्द्र विक्रमादित्य

ddu

डीडीयू

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के जिम्मेदार समारोह-जयंती आदि कार्यक्रमों में शोध को बढ़ावा देने के दावे में व्यस्त हैं तो विवि के शोधार्थी फेलोशिप पाने के लिए महीनों से दर-ब-दर हो रहे। विवि के साढ़े तीन सौ शोधार्थियों को आठ महीने से कागजी कार्रवाई में फंसकर फेलोशिप पाने को भटक रहे।
दरअसल, शोध करने वाले शोधार्थियों को फेलोशिप पाने के लिए हर तीन महीने पर रिपोर्ट यूजीसी को देनी होती है। त्रैमासिक इस रिपोर्ट पर रिसर्च गाइड व विभागाध्यक्ष द्वारा प्रमाणित करते हुए हस्ताक्षर करना अनिवार्य होता है। मार्च में नई व्यवस्था के तहत इस रिपोर्ट को विवि द्वारा यूजीसी की वेबसाइट पर अपलोड की जाती है। रिपोर्ट अपलोड होने के बाद शोधार्थियों के खातों में फेलोशिप आती है।
लेकिन गोरखपुर विवि में पिछले आठ महीने से जिम्मेदारों को इस कार्य के लिए फुर्सत तक नहीं मिला कि वे इस बाबत कोई समीक्षा कर सकें। यह बात दीगर है कि इन आठ महीनों में न जाने कितने सेमीनार, जयंती और समारोह आयोजित हुए जिसमें इन विद्वानों ने शोध को बढ़ावा देने के लिए तरह तरह के बात कहे।
ऐसा भी नहीं कि इन जिम्मेदारों तक किसी ने बात न पहुंचायी हो। कई बार शोधार्थी यूजीसी सेल से लेकर डीएसडब्लयू तक अपनी बात पहुंचा चुके हैं। शोधार्थी बताते हैं कि हर बार जानकारी लेने जाने पर यूजीसी सेल टरकाने वाले बहाने बनाता है। ज्यादा पूछताछ करने पर कर्मचारी आक्रोशित हो जाते हैं।
इतने तरह की फेलोशिप मिलती

शोध करने वाले शोधार्थियों को कई प्रकार की फेलोशिप मिलती है। एससी/एसटी शोधार्थियों को राजीव गांधी फेलोशिप तो अल्पसंख्यक छात्रों को मौलाना अबुल कलाम आजाद फेलोशिप दिया जाता है। विभिन्न वर्गाें के लिए जेआरएफ व एसआरएफ भी दिया जाता है।
जिम्मेदारी बढ़ती जा रही और…

विवि में शोध कार्य को बढ़ावा देने के लिए नित नए शोध पीठ की स्थापना की जा रही है। अभी कुछ दिन पूर्व ही सरकार ने विवि में गुरु गोरक्षनाथ शोध पीठ की स्थापना की है। सरकार इसके लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही। डीएसडब्ल्यू को इसकी जिम्मेदारी दी गई है। इसके अलावा कर्इ शोधपीठ स्थापित है। लेकिन सरकार द्वारा शोध पीठ स्थापना के लिए मिलने वाले धन को खर्च करने में विवि के जिम्मेदार तेजी तो दिखाते हैं, पद पाने के लिए होड़ तो दिखती है लेकिन शोधार्थियों को मिलने वाली सहायता समय से मिल सके इसके लिए कोर्इ स्वतः रूचि नहीं दिखाता न ही किसी की भी जवाबदेही तय ही होती।

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