क्या है परफार्मेंस ग्रांट राज्य वित्त आयोग निकायों को जो धनराशि आवंटित करता है उसका दस प्रतिशत हिस्सा रोक लेता है। यह धनराशि पंचायती राज विभाग की ओर से जिला पंचायतों को सलाना वित्तीय सत्र में परफार्मेंस ग्रांट के रूप में दी जाती है। नियम है कि ग्रांट तभी किसी जिले को मिलेगी जब संबंधित निकाय नामित आॅडिट एजेंसी से प्रमाण पत्र प्रस्तुत करे। जानकार बताते हैं कि ग्रांट तभी रिलीज हो सकता जब मार्च तक समस्त बिल-बाउचर का आडिट रिपोर्ट प्रमाण पत्र के साथ शासन तक पहुंच जाएगा। जो भी निकाय ऐसा नहीं कर पाते उनका दस प्रतिशत धन लैप्स हो जाता है।
जांच में यह सामने आया जांच रिपोर्ट के अनुसार गोरखपुर, महराजगंज, बस्ती, सिद्धार्थनगर, वाराणसी, चंदौली, कौशांबी, आजमगढ़, बलिया, हाथरस , शाहजहांपुर, उन्नाव, फैजाबाद, अमेठी, बहराइच, सोनभद्र, कानपुर देहात, इटावा, ललितपुर, बांदा और चित्रकूट आदि जिलों को वित्तीय सत्र 2016-17 का ग्रांट दे दिया गया है। इन 21 जिला पंचायतों ने 2014-15 की ऑडिट करवाई और फरवरी, 2017 तक की डिटेल प्रियासाफ्ट पर दर्ज करवाई गई। इसी सूचना को आधार मानकर इन निकायों को परफार्मेंस ग्रांट का पांच प्रतिशत करीब 85 करोड़ जारी की गई। जांच रिपोर्ट के अनुसार इन जिलों में केवल छह जिला पंचायतों का आवंटन ही जांच में सही पाया गया है। जिन जिलों को सही ग्रांट दिया गया उनमें वाराणसी, चंदौली, बलिया, बहराइच, ललितपुर और बांदा जिला पंचायत शामिल है।
यह हुआ है खेल, करोड़ों का हो गया वारान्यारा पत्रिका के पास उपलब्ध साक्ष्यों के अनुसार 21 जिला पंचायतों को परफार्मेंस ग्रांट के तौर पर वित्तीय वर्ष 2016-17 में विशेष अनुदान जारी किया गया। जांच रिपोर्ट के अनुसार हाथरस और महामाया नगर एक ही जनपद हैं और इसको दो जिला मानकर ग्रांट जारी कर दिया गया है। मैनपुरी और मऊ को अनुदान दिया नहीं गया। सिद्धार्थनगर, आजमगढ़, शाहजहांपुर, अमेठी, कौशांबी और चित्रकूट को धन आवंटन का आधार भी नहीं बताया गया और यहां 2523.66 लाख रुपये जारी कर दिया गया। 9 जून, 2017 की जांच रिपोर्ट के अनुसार जिन 21 जनपदों को परफार्मेंस ग्रांट का आवंटन किया गया उनमें बहराइच, वाराणसी, चंदौली, बलिया, ललितपुर और बांदा को छोड़कर बाकी 15 जनपदों के निकायों को गलत तरीके से परफार्मेंस ग्रांट आवंटित की गई।
आरोपों के घेरे में एक अधिकारी पंचायती राज विभाग में उपनिदेशक पद पर आसीन एक अधिकारी पर इन अनियमितताओं का आरोप लग रहा। लेकिन जांच रिपोर्ट शासन स्तर पर लंबित है। एक साल से अधिक समय बीतने के बाद भी जांच रिपोर्ट शासन के टेबल पर धूल फांक रही।