१५ को पूरे दिन रहेगा सौभाग्य और शोभन योग, सुबह ५.५३ से शाम ५.५८ तक बहनें बांधेंगी राखी
उसके मन में भी अन्य युवाओं की तरह क्षितिज पर चमकने की चाह थी। वह खेल जगत में नाम कमाना चाहता था, देश के लिए मेडल पाने की ख्वाहिश रखता था। लेकिन एक घटना ने ऐसी झंझावत उसके जीवन में ला दिया कि वह जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह बन गया। एक ऐसा माफिया जो सामने हो तब भी उसे पकड़ने की हिमाकत पुलिस न करती। आलम यह कि कितनी भी सघन चेकिंग क्यों न हो, वह सरेआम वहां से गुजर जाता था लेकिन कोई पुलिसवाला उसे रोकने की हिम्मत तक नहीं कर पाता था।
Read this also: भारतीय राजनीति में यूपी का यह गांव रच रहा इतिहास, 52 साल से इस गांव के बेटों की गूंज रही संसद में आवाज यह कहानी गोरखपुर से जरायम की दुनिया में कुख्यात हुए श्रीप्रकाश शुक्ल की है। मामखोर गांव का यह 19 साल का युवक देखते ही देखते कैसे देशभर में खौफ का दूसरा नाम हो गया यह कहानी भी बेहद दिलचस्प है। कहानी उन दिनों की है जब गोरखपुर का नाम आते ही जेहन में माफिया और गैंगवार ही आता था। 90 के दशक मामखोर गांव में एक युवा भी अपने सपनों को लेकर जी रहा था। स्कूल मास्टर का यह बेटा पहलवानी में आगे बढ़ना चाहता था। लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था। एक दिन गांव में परिवार के लोग कहीं जा रहे थे। रास्ते में श्रीप्रकाश की बहन को किसी मनबढ़ ने सीटी मार दी। आए दिन मनबढ़ों की छेड़खानी अब हद से ज्यादा हो रही थी। श्रीप्रकाश ने मामले को रफा-दफा करने का मन बना लिया और युवक की हत्या कर दी। हत्या के बाद वह फरार हो गया। पुलिस की दबिश से परेशान बैंकाक चला गया लेकिन कबतक गैर मुल्क में रहता। वापस आया लेकिन कहते हैं न अपराध की दुनिया वनवे होती है। श्रीप्रकाश को भी इसका अंदाजा लग चुका था। जान बचानी थी तो कहीं न कहीं जाना ही था। उस समय बिहार से लेकर पूर्वी यूपी में सूरजभान का दबदबा था। गोरखपुर के माफिया गैंग से टकराने की हैसियत सूरजभान में ही थी। श्रीप्रकाश सीधे सूरजभान के पास पहुंचा। अपराध और राजनीति में बराबर की पकड़ रखने वाले सूरजभान श्रीप्रकाश को आंकने में देरी नहीं किए। इसके बाद सुनहरे भविष्य का सपना देखने वाला श्रीप्रकाश अब जरायम की दुनिया का माफिया श्रीप्रकाश शुक्ल बन गया। हत्या-फिरौती के साथ रेलवे के ठेकों पर उसने कब्जा जमाना शुरू किया। रंगदारी मांगने लगा। बेखौफ होकर बड़े नामवालों की सुपारी लेने लगा।
जब वीरेंद्र प्रताप शाही को सरेआम मार दिया पूर्वांचल में कभी पूर्व विधायक वीरेंद्र प्रताप शाही का दबदबा हुआ करता था। वीरेंद्र प्रताप शाही व पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी के बीच अदावत जगजाहिर है। गोरखपुर एक समय था जब गैंगवार के लिए ही जाना जाता था। लेकिन हर गैंगवार में वीरेंद्र प्रताप शाही बच निकले थे। लेकिन 1997 में लखनउ में श्रीप्रकाश शुक्ल से वह बच नहीं सके और उसकी गोली का शिकार हुए। श्रीप्रकाश ने उनको ऐसे समय मारा जब उनकी सुरक्षा में कोई नहीं था। इसके बाद तो उसका खौफ कई राज्यों में बढ़ गया। रेलवे के ठेके से लेकर हर छोटे-बड़े ठेकों पर उसका राज हो गया। राजनीतिक गठजोड़ ने उसको बेहद उंचाई पर पहुंचा दिया था।
जब बिहार के मंत्री को सरेआम भून डाला श्रीप्रकाश शुक्ल अपराध की दुनिया का सुनामी बन चुका था। बड़े से बड़ा माफिया गैंग उससे टकराने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। अब वह राजनैतिक हत्याएं भी करने लगा था। बिहार के बाहुबली मंत्री बृजबिहारी प्रसाद की हत्या कर उसने हलचल मचा दी थी। जून 1998 में वह पटना के एक अस्पताल में इलाज कराने गए। बृजबिहारी प्रसाद की सुरक्षा में सरकारी गनर लगे थे लेकिन श्रीप्रकाश शुक्ल ने सरेआम उनकी हत्या कर दी। इस हत्या में एके 47 का इस्तेमाल किया गया था।
मुख्यमंत्री की सुपारी लेने की भूल कर दी श्रीप्रकाश शुक्ल का खौफ बढ़ता जा रहा था तो वह बेखौफ भी होता जा रहा था। यूपी-बिहार में श्रीप्रकाश शुक्ल का खौफ बढ़ रहा था तो भाजपा सरकार में अंतर्कलह भी काफी बढ़ी थी। 1998 में अचानक से भाजपा के तत्कालीन सांसद साक्षी महराज ने एक बड़ी खबर सार्वजनिक कर दी। उन्होंने बताया कि छह करोड़ रुपये में माफिया श्रीप्रकाश शुक्ल को तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मारने की सुपारी दी गई है। यह खबर आते ही यूपी पुलिस सहित देश की सुरक्षा एजेंसियां भी चौक गई।
मुख्यमंत्री की सुपारी से सुरक्षा व्यवस्था को और पुख्ता किया गया लेकिन श्रीप्रकाश के बारे में जानने वाले सभी लोग सशंकित थे। यूपी में पहली बार स्पेशल टाॅस्क फोर्स का गठन किया गया। 43 कुख्यात अपराधियों की लिस्ट बनाई गई इसमें सबसे पहला नाम माफिया श्रीप्रकाश शुक्ला का था। बताया जाता है कि श्रीप्रकाश को एसटीएफ ने एनकाउंटर में मार गिराया लेकिन दबी जुबान लोग यह भी कहते हैं कि एसटीएफ ने श्रीप्रकाश को जिंदा ही गिरफ्तार कर लिया था लेकिन मुख्यमंत्री की सुपारी में ऐसे नाम सामने आए जिनको सार्वजनिक नहीं किया जा सकता था। सत्ता के दबाव में सारी जानकारियां दबाने के साथ श्रीप्रकाश का एनकाउंटर कर दिया गया।
महज पांच साल थी जरायम की दुनिया श्रीप्रकाश शुक्ल के जरायम की दुनिया महज पांच साल की रही। पांच साल में उसने जो खौफ पैदा किया, देश के इतिहास में शायद ही कोई माफिया ने ऐसा किया। 22 सितंबर 1998 में उसे गाजियाबाद के पास एनकाउंटर की बात सामने आई थी।