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गुरदासपुर

नशा छुड़ाने के लिए काम आया आध्यात्मिक तरीका, पंजाब के गांवों में अनूठी पहल

नसों में घुलता नशे का यह जहर कई युवाओं का भविष्य ख़राब कर चुका है, कई (Punjab Drug Issue) परिवार नशे के (How To Control Drug Addiction) चक्कर में (How To Leave Addiction) बर्बाद हो (Nasha Mukti) चुके (Punjab News) है (Gurdaspur News) …

गुरदासपुरJan 07, 2020 / 05:15 pm

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नशा छुड़ाने के लिए काम आया आध्यात्मिक तरीका, पंजाब के गांवों में अनूठी पहल

नशा छुड़ाने के लिए काम आया आध्यात्मिक तरीका, पंजाब के गांवों में अनूठी पहल

(गुरदासपुर,धीरज शर्मा): पंजाब में नशे की समस्या कोई नई नहीं है। नसों में घुलता नशे का यह जहर कई युवाओं का भविष्य ख़राब कर चुका है। कई परिवार नशे के चक्कर में बर्बाद हो चुके है। लेकिन अब सरकार के प्रयास रंग ला रहे हैं। वहीं गुरदासपुर जिले के कई गांव ऐसे है जहां आस्था के दम पर लोगों ने नशे से किनारा किया है। बरसों से इन गांवों का कोई केस थाने में नहीं पहुंचा है।


हम बात कर रहे हैं जिले के बलरामपुर और नवां पिंड मल्लियांवाल गांव की। यहां के ग्रामीणों का कहना है कि सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के उपदेशों और पवित्र अमृतवाणी के संचार से लोग सुखी जीवन जी रहे है। आध्यात्मिक माहौल के जरिए लोगों ने नशे से पार पाई है।

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बटाला इलाके में मेहता-श्री हरगोबिंदपुर रोड पर स्थित नवा पिंड मल्लियांवाल और बलरामपुर को बंटवारे के दौरान पाकिस्तान से आए सिखों ने बसाया था। इस वक्त इन दोनों गांवों की आबादी करीब 2 हजार है और एक सांझी पंचायत है। यहां पिछले 20 साल से सरपंच कांग्रेस के खेमे से आते रहे हैं। गांव के सरपंच हरजिंदर सिंह की मानें तो पिछले 15 साल से गांव के किसी भी व्यक्ति के खिलाफ न तो नशा तस्करी का कोई केस दर्ज हुआ है और न ही किसी तरह का कोई लड़ाई-झगड़ा कभी थाने में पहुंचा है। गांव में इतना भाइचारा है कि अगर कभी-कभार कोई मामूली कहासुनी भी हो जाती है तो आपस में बैठकर ही सुलझा लिया जाता है।

 

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गांव के किसी भी वर्ग में युवा चिट्टे, स्मैक और शराब का चलन तो दूर, गांव की किसी भी दुकान पर बीड़ी-सिगरेट, जर्दा-खैनी या दूसरा तम्बाकू उत्पाद नहीं बिकता। सरपंच हरजिंदर सिंह बताते हैं कि गांव में बसे ज्यादातर लोग दस्तकार हैं, सबके अपने-अपने काम हैं। इसके अलावा गांव की 80 प्रतिशत आबादी अमृतधारी सिखों की है, वहीं बाकी भी किसी न किसी डेरे वगैरह से नामदान लिए हुए हैं। न तो लोगों के पास नशा करने का वक्त और न ही ऐसी कोई वजह। असल में नशा नहीं तो झगड़ा नहीं और झगड़ा नहीं तो फिर थाने-तहसील के चक्कर कोई क्यों लगाए।

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