ऊपरी असम ( Assam ) के अज्ञात नेक इंसान इनकी मदद के लिए आगे आए। बहतन खानम (35) कहती है कि हम सब कुछ खो चुके हैं। हमने सोच लिया कि यह दुनिया में हमारा अंतिम समय है। हमारे पास ज्यादा पैसे भी नहीं बचे थे। हाल की बाढ़ में हमारे घर भी बह गए। हमें लगा था कि सुनवाई में भी हम उपस्थित रह सकेंगे। लेकिन मैं अल्लाह की शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मनुष्य के रुप में हमारे पास फरिश्ते भेजे। कुछ लोगों की मदद के बिना, जिनसे हम पहले कभी नहीं मिले थे, हम सुनवाई में उपस्थित नहीं रह सकते थे।खानम बरपेटा जिले के दक्षिण गोधानी गांव की निवासी है।उसे सोमवार को नोटिस मिला था।
गोलाघाट के सरुपथार में सुनवाई के लिए उसे कम समय में लगभग चार सौ किमी का सफर तय करना था। वह ब्रह्मपुत्र को रात में पार कर दूसरी ओर तड़के 3.15 बजे पहुंची। कुछ कार्यकर्ताओं ने पहले से वहां बस तैयार कर रखी थी। उसमें सवार होकर वह सरुपथार पहुंची।गोलाघाट में सोनेश्वर जैसे लोग पहले ही तैयार थे। उन लोगों ने सुनवाई स्थल जाने में मदद करने के साथ ही उनकी सामान्य जरुरतों को पूरा किया।
कामरुप(ग्रामीण) जिले के बोको के युवा लेखक सलीम एम हुसैन ने कहा कि पिछले कुछ दिनों में जो त्रासद घटनाएं हुईं हैं उसके बाद भी सुनवाई से लौटे लोगों के पास दिल को छू जानेवाले किस्से हैं। वे बताते कि किस तरह अनजान लोगों ने अपने घर हमारे लिए खोल दिए। खाना, पानी और जरुरत का सामान मुहैया कराया। वह भी शराफत और उदारता के साथ। हमें उन पर गर्व है। वे इन त्रासदियों के असली हीरो हैं। उनका प्यार और लगाव सदैव हमारे दिल में रहेगा। हुसैन के कई पड़ोसियों ने 12 से 15 घंटे की यात्रा भूखे-प्यासे की थी,जहां पहुंचते ही वहां के लोगों ने खाना दिया।
…लेकिन आप मानवता की हत्या नहीं कर सकते
लोगों की मदद के लिए आगे आई जोरहाट की बंदिता आचार्य ने कहा कि आप लोकतंत्र की हत्या कर सकते हैं पर मानवता की नहीं। यह देखकर अच्छा लगा कि मरियानी, आमगुड़ी और जोरहाट के लोग सैकड़ों दूर से सुनवाई के लिए आनेवालों को खाना मुहैया करा रहे हैं तथा हरसंभव मदद कर रहे हैं। अल्पसंख्यक युवा नेता जेहिरुल इस्लाम ने कहा कि यही असल असम है। हमने असमिया लोगों का दिल देखा। हमें डर लगा रहा था कि बसों में अल्पसंख्यक लोगों को देखकर ऊपरी असम के लोग आतंकित होंगे,पर इसके विपरीत वे मदद को ही आगे आए। यह सब हिंदू लोगों ने ही किया है।