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परेशानी समझे कौन, पूर्वोत्तर की मुसीबत सिंगल टाइम जोन

North East: समय बड़ा बलवान होता है। समय मुट्ठी में बंद रेत के समान होता है। कब फिसल जाए पता ही नहीं चलता है। समय को पकड़ पाना इंसान के बस में नहीं, ऐसे में समय के...

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North East part of India is suffering with single time zone

परेशानी समझे कौन, पूर्वोत्तर की मुसीबत सिंगल टाइम जोन

गुवाहाटी. समय बड़ा बलवान होता है। समय मुट्ठी में बंद रेत के समान होता है। कब फिसल जाए पता ही नहीं चलता है। समय को पकड़ पाना इंसान के बस में नहीं, ऐसे में समय के अनुसार चला जा सकता है। हालांकि क्षेत्रफल में बड़े देशों में समय को अलग-अलग टाइम जोन में बांट कर समय प्रबंधन की कोशिश की जाती है। भारत के सिंगल टाइम जोन को एकता के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। लेकिन हर किसी को भारतीय मानक समय ( IST ) का आइडिया ठीक नहीं लगता। भारत की पूर्व-पश्चिम दूरी लगभग 2933 किलोमीटर है, जिसके कारण पूर्व में सूर्योदय और सूर्यास्त पश्चिम से 2 घंटे जल्दी होता है। ऐसे में उत्तर-पूर्वी राज्य के लोगों को उनकी घडिय़ां आगे बढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है, जिससे सूर्योदय के उपरांत ऊर्जा का क्षय न हो। टाइम जोन के कारण बड़ी संख्या में लोगों को मुसीबत का सामना करना पड़ता है, खासतौर पर उन लोगों को जो गरीबी में रह रहे हैं। पूर्व में पश्चिम से दो घंटे पहले सूर्योदय होता है।

सिंगल टाइम जोन में कई खामियां

सिंगल टाइम जोन के आलोचकों का कहना है कि पूर्वी भारत में दिन की रोशनी का इस्तेमाल ठीक से हो सके, इसके लिए भारत को दो अलग मानक समय के बारे में सोचना चाहिए। जिसके कारण पूर्व में रहने वाले लोगों को दिन की शुरुआत में ही कृत्रिम रोशनी का इस्तेमाल करना पड़ता है, जिससे बिजली की अधिक खपत होती है। सूर्योदय और सूर्यास्त से शरीर की घडिय़ों और सर्कैडियन रिदम भी प्रभावित होती हैं। जैसे-जैसे शाम ढलती जाती है, वैसे ही शरीर स्लीप हार्मोन मेलाटोनिन प्रड्यूस करता है, जिससे सोने में मदद मिलती है। सिंगल टाइम जोन नींद की गुणवत्ता को कम करता है। जिसके कारण बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित होती है। जानकारों का कहना है कि वार्षिक औसत सूर्यास्त के समय में एक घंटे की देरी से शिक्षा में 0.8 साल की कमी आ जाती है।

चल रही दो टाइम जोन की चर्चा

देश में दो समय क्षेत्र अपनाने के बारे में चर्चा चल रही है। पूर्वोत्तर के राज्यों की मांग है कि उनका समय डेढ़ से दो घंटे आगे हो। जिससे ऊर्जा की बचत हो और उत्पादकता में इजाफा हो सके। बड़े देशों जैसे अमरीका, रूस और ऑस्ट्रेलिया में अलग-अलग टाइम जोन होते हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि भारत में दो टाइम जोन बनाने से कुछ व्यावहारिक कठिनाइयां भी आ सकती हैं। दुनिया में समय को हर कहीं किसी कठोर नियम के तहत ही नहीं बल्कि लोगों की सुविधा के अनुसार भी तय किया जाता हैं। वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो फ्रांस के 12 टाइम जोन हैं जो विश्व में किसी एक देश में सर्वाधिक हैं। वहीं अमरीका में 9 टाइम जोन हैं। रूस में 11 टाइम जोन हैं। सोवियत संघ टूटने के बाद 1992 में ये समय जोन तय किए गए थे। इस तरह रूस में एक ही समय में 10 घंटे का फर्क भी होता है। बर्फीले प्रदेश अंटार्कटिका में विशालता के कारण 10 समय जोन हैं। छोटे सा देश डेनमार्क भी 5 टाइम जोन में बंटा हुआ है। ब्रिटेन भी आकार में छोटा है, लेकिन समय जोन में बहुत बड़ा देश है। यह 9 टाइम जोन इस्तेमाल करता है। ऐसा दूर-दूर फैले अलग-अलग द्वीपों के कारण है। वहीं विशालकाय ऑस्ट्रेलिया में 8 टाइम जोन हैं। यहां के एक हिस्से में एक समय में सुबह के 5 बजते हैं तब दूसरी जगह सुबह के 11 बजे चुके होते हैं। दुनिया में चीन ही एक ऐसा देश है जो विशाल भूभाग पर फैला हुआ है और उसका एक ही टाइम जोन है।

अंग्रेज शासन में बना आइएसटी

भारतीय मानक समय ( IST ) वर्ष 1802 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मद्रास में निर्धारित किया। यह जीएमटी से 5.30 घंटे आगे है। इसी को ही 1947 में आजादी के बाद भारतीय सरकार ने स्वीकार कर लिया। हालांकि कोलकाता और मुंबई ने 1955 तक अपने स्थानीय समय को बनाए रखा था। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध और वर्ष 1965 और 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान डे-लाइट सेविंग्स टाइम का भी उपयोग हुआ। ब्रिटिशकाल में देश में तीन अलग-अलग टाइम जोन, बॉम्बे टाइम जोन, कलकता टाइम जोन और बागान टाइम जोन बने। पूरे देश के चाय बागान मजदूर बागान टाइम जोन के हिसाब से काम करते थे। आजादी के बाद संपूर्ण देश का टाइम जोन बदल कर एक रूप कर दिया गया। असम के चाय बागानों में अब भी अनौपचारिक रूप से बागान टाइम जोन लागू है। कई संगठन इसे ही अलग टाइम जोन बनाने की मांग भी करते रहे हैं। उत्तर पूर्वी राज्य असम में तो चाय के बगानों में काम करने वाले लोग अपनी घड़ी को एक घंटे आगे करके रखते हैं।

तो बचेगी अरबों की बिजली

पूर्वोत्तर में अलग टाइम जोन की मांग करने वाले संगठनों की दलील है कि यदि इलाके में घड़ी की सूइयों को महज आधे से एक घंटे पहले कर दिया जाए तो 2.7 अरब यूनिट बिजली बचाई जा सकती है। इनका कहना है कि पूर्वोत्तर इलाके में बिजली के फालतू खर्च के तौर पर सालाना 94 हजार 900 करोड़ रुपए का नुकसान होता है। 1980 में खोजकर्ताओं की एक टीम ने बिजली बचाने के लिए भारत को दो अथवा तीन समय मंडलों में विभाजित करने का सुझाव दिया। लेकिन ये सुझाव ब्रिटिश सरकार द्वारा स्थापित समय मंडलों को अपनाने के बराबर था, इसलिए इस सुझाव को नकारा दिया गया। साल 2002 में जटिलताओं के कारण सरकार ने ऐसे ही एक और प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया।

क्या है ग्रीनविच मीन टाइम

इंग्लैंड के कस्बे ग्रीनविच में सोलर ऑब्जरवेटरी है। 18वीं शताब्दी में इंग्लैंड ने समुद्री शक्ति के रूप में दुनिया भर में अपना परचम लहराया तो नाविक अपने साथ ग्रीनविच के अक्षांश से जुड़ा दिशायंत्र रखते थे।1676 में ग्रीनविच वेधशाला में दो सटीक घंडिय़ो के आधार पर ब्रिटेन में ग्रीनविच मीन टाइम शुरू हुआ। 1852 में ग्रीनविच वेधशाला में शैपर्ड क्लॉक से ग्रीनविच टाइम को आमजनता के लिए प्रदर्शित किया गया। 1884 में वॉशिंगटन में 25 देशों के सम्मेलन में ग्रीनविच को प्राइम मेरीडियन की मान्यता मिली। ग्रीनविच रेखा पूर्वी और पश्चिमी गोलाद्र्ध में तो भूमध्य रेखा दुनिया को उत्तरी और दक्षिणी गोलाद्र्ध में बांटती हैं। ग्रीनविच रेखा को आधार समय मान पूरी दुनिया के समय की धनात्मक और ऋणात्मक में गणना होती है।