scriptPHE SCAM: बुक सेलर से खरीदा 15 करोड़ का क्लोरीन, 81 करोड़ तक पहुंच सकता है घोटाला | Chlorine worth Rs 15 crore purchased from Jhafabook seller, scam estimated to reach Rs 81 crore | Patrika News
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PHE SCAM: बुक सेलर से खरीदा 15 करोड़ का क्लोरीन, 81 करोड़ तक पहुंच सकता है घोटाला

पीएचई घोटाला: कोषालय की जांच में लगाया गया अनुमान फर्मों के खाते में एक बार में करोड़ों रुपए पहुंचे, कर्मचारी का पैसा खाते में जाने से सामने आ गए नाम

ग्वालियरApr 28, 2024 / 09:20 am

Sanjana Kumar

BIG SCAM IN MP
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (पीएचई) के घोटाले में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। पता चला है कि महाराज बाड़ा स्थित एक बुक सेलर (किताब विक्रेता) के यहां से 15 करोड़ रुपए का क्लोरीन खरीद लिया। बुक सेलर को एक बार में नौ करोड़ व छह करोड़ का भुगतान भी किया गया।
कोषालय की जांच में 10 ऐसी फर्मों के नाम सामने आए हैं, जिनके खातों में पैसा भेजा गया है, और खरीद संदिग्ध है। घोटाला 16 करोड़ से बढ़कर 81 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। कोषालय की अंतिम फाइनल रिपोर्ट में घोटाले का सच सामने आ सकेगा।
रोशनी घर स्थित पीएचई कार्यालय में आठ महीने पहले 16.42 करोड़ रुपए का घोटाला सामने आया था। वेतन, एरियर व क्लोरीन खरीदने में घोटाला किया गया। सेवानिवृत्त व मृतक कर्मचारियों को नौकरी में दिखाया गया, उनके नाम से वेतन निकाला गया।
जब वेतन व एरियर का भुगतान लंबे समय तक नहीं पकड़ा गया तो क्लोरीन खरीद में भी बड़ा खेल कर दिया। बोगस फर्मों में भुगतान किया गया। जब इस घोटाले का खुलासा हुआ तो अधिकारी भी हैरान रह गए। एक के बाद एक नई जानकारी सामने आई। फिलहाल क्राइम ब्रांच इसकी जांच कर रही है।


ऐसे पकड़ा गया क्लोरीन का फर्जीवाड़ा

  • मृतक व सेवानिवृत्त कर्मचारियों के नाम से जो वेतन निकाला जा रहा था, उस पैसे से क्लोरीन की आपूर्ति करने वाली फर्म को भुगतान किया गया। जब कोषालय में कर्मचारियों के वेतन भुगतान के ट्रांजेक्शन की जांच की गई तो क्लोरीन आपूर्ति करने वाली फर्में भी सामने आ गईं, जिसमें महाराज बाड़ा की किताब दुकान भी शामिल है।
  • 2023 में हुए घोटाले की जांच की गई, लेकिन पिछले सालों का रिकॉर्ड खंगाला गया तो जांच में 2011 से यह घोटाला शुरू होने की जानकारी सामने आई। 2011 से लेकर 2023 के बीच की लेनदेन की जांच की जा रही है, जिसमें क्लोरीन खरीद के बड़े भुगतान हैं।
  • रिकॉर्ड बना बाधा, क्योंकि 2019 के पहले के बिल नहीं: 2019 से पहले जो भी भुगतान हो रहे थे, उनके बिलों की फाइल बनकर आती थी। कोषालय से फाइल पास होने के बाद बिल का भुगतान हो जाता था, इसके बाद फाइल ऑडिट के लिए चली जाती थी। ऑडिट के बाद रिकॉर्ड को नष्ट कर दिया था।
  • एक फाइल पीएचई के पास रहती है, लेकिन पीएचई का जो रिकॉर्ड है, वह नहीं मिल सका है। रिकॉर्ड गुम होने का हवाला दिया जा रहा है।
  • 2019 के बाद के भुगतानों के बिल कंप्यूटर में स्कैन हैं। इससे 2019 के बाद का पूरा रिकॉर्ड मौजूद है।
  • 2011 से 2018 के बीच का रिकॉर्ड मिलने में मुश्किल हो रही है। इस बीच ही सबसे ज्यादा घोटाला हुआ है।
    मुख्यालय से फाइनल रिपोर्ट आनी है
2011 से लेकर अब तक की जांच की जा रही है। मुख्यालय से फाइनल रिपोर्ट आना शेष है। इसके बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी।
-अरविंद शर्मा, वरिष्ठ कोषालय अधिकारी
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