हालांकि यह बताने की जरूरत नहीं है कि ऐसा यह कष्टों के बीच कर पा रहे हैं। क्योंकि नाबालिग बालकों को मजदूरी भी ठीक से नहीं मिलती है। इसदौरान कई बार पडोसियों से भी रोटी मांगना पड़ती है तो कई बार भूखा भी सोना पड़ता है। संजय पुत्र कमलेश आदिवासी उम्र 11 साल छह भाई बहन हैं। जिसके पिता और मां दोनों ही छह माह पूर्व चल बसे। तब से यह लोग गांव वालों के सहारे और संजय द्वारा मजदूरी कर लाए जाने वाले रुपयों के सहारे जीवन जी रहे हैं।
कमलेश कहता है कि वह हसीना 9 , रानी 7 ,मछुला 6 , सीता 4 और शैतान 2 साल को पढ़ाना चाहता है। लेकिन वह इन बच्चों को इन दुश्वारियों के चलते पढ़ा नहीं पा रहा है। कुछ ऐसी ही कहानी किशनपुरा पंचायत के नयागांव निवासी रामकेश 13 वर्ष की है। जिसके ऊपर मां बाप के गुजरने के बाद दो बहनों मनीषा 11 और श्रीवती 9 वर्ष की और जिम्मेदारी आ गई है, जो इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए स्वयं तो मजदूरी करता ही है, लेकिन पेट पूर्ति लायक रुपए नहीं हो पाते हैं, ऐसे में कई दफा परिवार के सदस्यों को भूखा भी सोना पड़ता है, यही वजह है कि अब रामकेश के साथ उसकी दोनों छोटी बहनें भी खदान पर पत्थर तोडऩे का काम करती हैं। किशनपुरा में एक और बालक है दिलखुश ५ वर्ष, जो मां बाप के गुजर जाने के बाद अपने चाचा के भरोसे रह रहा है।
“दो परिवार हैं, जिनमें अब बच्चे ही रह गए हैं। बच्चे मजदूरी करके ही गुजर बसर करते हैं। हम उनकी कोई मदद भी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि हमारे पास तो कोई योजना ही नहीं है।”
मीरा जाटव, सरपंच किशनपुरा