प्लास्टर के सामान के लिए 700 रुपए और सर्जरी के सामान पर मरीजों को 5 हजार रुपए से अधिक खर्च करने पड़ रहे हैं। अस्पताल प्रबंधन द्वारा सर्जिकल सामान सहित दवा खरीदी में अब तक 7 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं, 2 करोड़ 35 लाख अभी भी खाते में हैं, लेकिन कमीशन के फेर में डॉक्टरों द्वारा सरेआम मरीजों को लूटा जा रहा है। अस्पताल में सर्जरी कराने से पहले डॉक्टर की ओर से जरूरी सामान की जो लंबी-चौड़ी लिस्ट थमाई जाती है, उसकी खरीदारी बाजार के मेडिकल स्टोर से करने पर मरीज को अच्छा-खासा चूना लगता है। सर्जिकल सामान के रेट में 10 गुना अंतर है।
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बाहर रोजाना एक लाख के सर्जरी के सामान की बिक्री
जानकारों के मुताबिक सर्जरी के लिए अस्पताल में भर्ती होने वाले हर मरीज को औसतन पांच हजार रुपए तक का सामान खरीदना पड़ता है। अगर यह मान लिया जाए कि एक दिन में औसतन 20 मरीजों को पर्ची थमाई जाती है, तो बाजार से सर्जिकल सामानकी बिक्री का आंकड़ा करीब 1 लाख रुपए होता है। इसमें कमीशन के फेर में मरीजों से बाहर से सामान मंगाया जाता है।
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प्रिंट रेट दस गुना तक ज्यादा
थोक कारोबारियों को कंपनियों से जो आइटम छह से नौ रुपए में मिलते हैं, उसे वह खुदरा दुकानदारों को दो से तीन रुपए के मार्जिन पर बेचते हैं, लेकिन आइटम पर प्रिंट रेट दस गुना अधिक होने के चलते खुदरा दुकानदार मरीजों को प्रिंट रेट पर बेचकर दस फीसदी अधिक मुनाफा कमाते हैं।
केस:1
पैर में फै्रक्चर होने पर टेकनपुर निवासी अमित सिंह ट्रॉमा सेंटर में पहुंचे। यहां डॉक्टरों ने चेकअप कर बाजार से सामान लाने की पर्ची थमा दी। बाजार से उन्हें प्लास्टर का सामान 700 रुपए में दिया गया, अस्पताल में यह उन्हें मुफ्त लगता
केस:2
ऑपरेशन थियेटर से मरीज के परिजन अखिलेश को पर्ची थमा दी इसे लेकर वह जेएएच के बाहर निजी मेडिकल स्टोर पर सामान खरीदने पहुंचे। उन्हें 5000 रुपए का सामान दिया गया, जिसमें ग्लब्स, आइबी सेट, टांके के धागे सहित अन्य सामान था।
तो सख्त कार्रवाई करेंगे
शिकायत मिलने पर तत्काल एक्शन लिया जाता है, फिर भी अगर कोई ऐसा करता है, तो सख्त कार्रवाई की जाएगी। सामान होने पर सभी मरीजों को उपलब्ध कराया जाता है।
डॉ.जेएस सिकरवार, अधीक्षक जेएएच